मंत्री परिषद एवं मंत्रीमंडल के संरचना, कार्य एवं अंतर UPSC NOTE

मंत्री परिषद

  • भारतीय संविधान में केवल मंत्रिपरिषद का उल्लेख है मंत्रिमंडल का नहीं
  • मंत्रिमंडल तो संसदीय प्रणाली की परंपराओं की उपज है मंत्रिमंडल में केवल कैबिनेट मंत्री ही सम्मिलित होते हैं जबकि मंत्रिपरिषद में सभी प्रकार के मंत्री |
  • मंत्री परिषद देश की वास्तविक कार्यपालिका होती है जिसको कार्यकारी वैधानिक वित्तीय आदि शक्तियां प्राप्त हैं |
  • 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 352 में कैबिनेट शब्द का प्रयोग किया गया है |

मंत्रिपरिषद का निर्माण

  • अनुच्छेद 75 के अंतर्गत राष्ट्रपति सर्वप्रथम मंत्री परिषद के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है
  • प्रधानमंत्री अपने दल के कुछ व्यक्तियों को राष्ट्रपति के माध्यम से मंत्री के रूप में नियुक्त करता है |
  • नियुक्त मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपना पद धारण करते हैं |
  • सामूहिक रूप से मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होती है |
  • कोई भी व्यक्ति बिना संसद की सदस्यता के अधिकतम 6 माह तक मंत्री रह सकता है |
  • 91 वे संविधान संशोधन 2003 के अनुसार संसद के किसी भी सदन के उस सदस्य को, जिसे दसवीं अनुसूची के अंतर्गत सदस्यता के अयोग्य सिद्ध कर दिया गया है, मंत्री बनने के लिए भी अयोग्य माना जाएगा तथा उसे मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकेगा जब तक की वह पुनर्निर्वाचित ना हो|
    प्रधानमंत्री पद के लिए राष्ट्रपति अनिवार्यता बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही आमंत्रित करता है |परंतु कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को अपने स्वविवेक का प्रयोग कर प्रधानमंत्री की नियुक्ति का अवसर मिल सकता है –
  • उस समय जब लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न हो |
  • उस समय जब बहुमत वाले दल का कोई निश्चित नेता न रहे या प्रधानमंत्री पद के दो प्रभावशाली दावेदार हैं |
  • राष्ट्रीय आपात की परिस्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर के कुछ समय के लिए स्वेच्छा से काम चलाऊ सरकार का नेता मनोनीत कर सकता है |

मंत्री परिषद की संरचना  

  • मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियां होती है – कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री |
  • इन मंत्रियों के बीच उनके पदक्रम, वेतन तथा राजनीतिक महत्व के आधार पर अंतर होता है |
  • कैबिनेट मंत्रियों के पास केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय जैसे गृह, रक्षा, वित्त विधान के सर्वेसर्वा होते हैं और विभाग संबंधी निर्णय स्वयं लेते हैं |
  • राज्य मंत्रियों को मंत्रालय विभागों का स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है या उन्हें कैबिनेट मंत्री के साथ सहयोगी बनाया जा सकता है |
  • सहयोग के रूप में उन्हें कैबिनेट मंत्री के मंत्रालय के विभागों का दायित्व दिया जा सकता है या मंत्रालय से संबंधित कोई विशेष कार्य सौंपा जा सकता है |
  • स्वतंत्र प्रभार के मामले में भी अपने मंत्रालय का कार्य, कैबिनेट मंत्री के समान ही पूरी शक्ति और स्वतंत्रता से करते हैं
  • यद्यपि वे कैबिनेट के सदस्य नहीं होते हैं और उनकी बैठकों में भाग नहीं लेते जब तक उन्हें उनके मंत्रालय से संबंधित किसी कार्य हेतु विशेष रूप से आमंत्रित नहीं किया जाए |
  • उप मंत्रियों को कैबिनेट अथवा राज्य मंत्रियों को उनके प्रशासनिक, राजनैतिक और संसदीय कार्य में सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है |
  • मंत्रियों की एक और श्रेणी जिन्हें संसदीय सचिव कहा जाता है उनके पास कोई विभाग नहीं होता है वे वरिष्ठ मंत्रियों के साथ उनके संसदीय कार्य में सहायता के लिए नियुक्त होते हैं |

मंत्री परिषद की शक्तियां एवं कार्य

मंत्री परिषद के कार्य एवं शक्तियां निम्न प्रकार हैं –

  • मंत्री परिषद राष्ट्रीय नीतियों की निर्माता होता है |
  • पूरे देश के शासन संचालन का कार्य मंत्रिपरिषद करती है |
    • पूरे राष्ट्र के धन का विनियमन मंत्रिपरिषद करती है |
    • कानून को लागू करना व व्यवस्था को बनाए रखना |
    • मंत्री परिषद अनेक विधायन संबंधित कार्य भी करती है –
    1. विधेयक तैयार करना व संसद में प्रस्तुत करना |
    2. संसद सदस्यों के प्रश्नों का जवाब दें |
    3. मंत्री परिषद की राष्ट्रपति के नाम से अध्यादेश जारी करती है |
    • देश के उच्च शासन अधिकारियों की नियुक्ति करना |
    • विदेश नीति निर्माण व क्रियान्वयन का कार्य करना |
      • राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा 44वें संशोधन अधिनियम के बाद मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श के बाद ही करता है |
    • मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में अंतर 

      1. मंत्रिमंडल में केवल कैबिनेट स्तर के मंत्री शामिल होते हैं इसका आकार छोटा एवं संरचना सुविधा की दृष्टि से की जाती है 44वें संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 352 3 के द्वारा इसे संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है मंत्रिपरिषद का आकार काफी बड़ा होता है इस में कैबिनेट मंत्री राज्य मंत्री तथा संसदीय सचिव शामिल होते हैं इसे एक संवैधानिक संस्था है |
      2. मंत्रिमंडल में सरकार के प्रमुख विभागों के मंत्री होते हैं जबकि मंत्रिपरिषद में मंत्रिमंडल का प्रत्येक सदस्य मंत्री परिषद का सदस्य होता है |
      3. मंत्रिमंडल का आकार छोटा होने के कारण अधिक बैठकों का आयोजन होता रहता है मंत्रिपरिषद का आकार बड़ा होने के कारण इस की बैठक यदा-कदा ही संभव है |
      4. मंत्रिमंडल प्रधानमंत्री के साथ मिलकर राष्ट्रीय नीति का निर्धारण एवं निर्देशन करता है नीति-निर्धारण से संबंधित कार्य मंत्री परिषद द्वारा नहीं किया जाता है |
      5. राष्ट्रपति के परामर्श का कार्य मंत्री मंडल द्वारा संपादित होता है जबकि अनुच्छेद 78 (c) के अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से परामर्श मांग सकता है किंतु व्यवहार में यह कार्य इसके द्वारा नहीं किया जाता है

 

भारत का प्रधानमंत्री  नियुक्ति  योग्यताएं शक्तियां विवाद

भारत का प्रधानमंत्री

  • सैद्धांतिक रूप से समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है जबकि यथार्थ में कार्यपालिका की वास्तविक सत्ता प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद में निहित होती है |
  • संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसकी शक्तियों के प्रयोग करने में सहयोग एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा |
  • परंतु 44 संशोधन अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई की मंत्री परिषद द्वारा दी गई सलाह को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है परंतु ऐसे पुनर्विचार के बाद भी गई सलाह को राष्ट्रपति मानने के लिए बाध्य है |

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

  • विधान के अनुसार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा |
  • अनुच्छेद 75 जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता चुना गया हो परंपरा अनुसार त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में राष्ट्रपति सबसे बड़ा दल या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है |
  • जैसे 1998 में 12वीं लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेई को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना |

प्रधानमंत्री की योग्यताएं

  • संविधान में प्रधानमंत्री पद की योग्यता का वर्णन नहीं किया गया क्योंकि प्रधानमंत्री के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है इसलिए उसमें उन योग्यता होना आवश्यक है जो संसद सदस्य में होती है इसके अतिरिक्त उसे सदन में बहुमत प्राप्त दल का नेता होना चाहिए |

प्रधानमंत्री का कार्यकाल अथवा अवधि

  • प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्ष होता है परंतु उसका कार्यकाल लोकसभा के बहुमत के समर्थन पर निर्भर है |
  • लोकसभा में बहुमत खो देने तथा अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाने पर प्रधानमंत्री को त्यागपत्र देना पड़ता है |
  • प्रधानमंत्री का त्यागपत्र संपूर्ण मंत्रिमंडल का त्यागपत्र समझा जाता है |
  • चौधरी चरण सिंह इंद्र कुमार गुजराल अटल बिहारी वाजपेई को अविश्वास प्रस्ताव के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था |

प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियां

प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियां निम्नलिखित हैं –

राष्ट्रपति के संबंध में

  • प्रधानमंत्री राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद के बीच संवाद की भूमिका निभाता है

मंत्री परिषद के संबंध में

केंद्रीय मंत्रिपरिषद प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री के कार्य एवं शक्तियां निम्नलिखित है |

  • जैसे मंत्रियों के बीच विभाग आवंटन व फेर बदल करना |
  • किसी व्यक्ति को मंत्री नियुक्त करने की सिफारिश राष्ट्रपति को करना या किसी मंत्री को त्यागपत्र देने अथवा राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त करने की सिफारिश करना
  • मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता तथा उनके निर्णय को प्रभावित करना स्वयं के त्याग पत्र द्वारा मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर देना |

संसद के संबंध में

प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है अतः इस संबंध में वह निम्न शक्तियों का प्रयोग करता है |

  • संसद सत्र को आहूत करने एवं सत्रावसान करने संबंधी सलाह राष्ट्रपति को देना |
  • राष्ट्रपति से किसी भी समय लोक सभा विघटित करने की सिफारिश करना |
  • संसद में सरकार की नीतियों की घोषणा करना आदि |

अन्य शक्तियां व कार्य

प्रधानमंत्री की उपरोक्त भूमिका के साथ-साथ अन्य भूमिकाएं भी है जैसे –

  • राष्ट्र की विदेश नीति को मूर्त रुप देने में प्रभावी भूमिका |
  • केंद्र सरकार का प्रमुख प्रवक्ता |
  • सेनाओं का राजनैतिक प्रमुख |
  • राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद, अंतर राज्य परिषद और राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद का अध्यक्ष होता है |

इस प्रकार प्रधानमंत्री की देश में राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था में अति महत्वपूर्ण एवं प्रभावी भूमिका है |

प्रधानमंत्री और गठबंधन सरकार

1990 के दशक से विशेषकर त्रिशंकु संसद की स्थिति और गठबंधन सरकार के दौर में प्रधानमंत्री की स्थिति और भूमिका में हास हुआ है जैसे –

  • मंत्रिमंडल के निर्माण में गठबंधन सरकार के युग में प्रधानमंत्री की भूमिका में हास आया है |
  • विभागों के बंटवारे में भी प्रधान मंत्री और स्वतंत्र निर्णय लेने में समक्ष नहीं रहे |
    • गठबंधन सरकार के युग में प्रधानमंत्री राष्ट्रपति व मंत्रिपरिषद के बीच की कड़ी के रुप में भी भली भांति कार्य नहीं कर पा रहे हैं |
    • प्रधानमंत्री के संसदीय नेतृत्व में कमी आई है गठबंधन सरकार के युग में प्रधानमंत्री को संसदीय कार्य व्यवहार के लिए अपने सहयोगी पर निर्भर रहना पड़ता है |
    • गठबंधन सरकार में दलों की समन्वय समिति भी प्रधानमंत्री के नियंत्रण में रहती है |
  • प्रधानमंत्री और विवाद

    • 39 संशोधन अधिनियम 1975 द्वारा व्यवस्था की गई है कि प्रधानमंत्री का चुनाव न्यायालय की आधिकारिता से बाहर है परंतु 44 वें संशोधन अधिनियम में 39 वें संशोधन अधिनियम के अंतर्गत जोड़े गए अनुच्छेद 329 ए को रद्द कर दिया गया है |
    • 44 वें संशोधन अधिनियम द्वारा व्यवस्था की गई कि प्रधानमंत्री के चुनाव संबंधी विवादों की सुनवाई उसी प्रकार की जाएगी जैसे संसद के सदस्य के विरुद्ध अनुच्छेद 329 के अधीन की जाती है |

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