मुगलकाल में भू राजस्व प्रणाली FOR UPSC IN HINDI

मुगल साम्राज्य के राजस्व को दो भागों में बाँटा जा सकता है- केंद्रीय अथवा शाही तथा स्थानीय अथवा प्रान्तीय। स्थानीय राजस्व स्पष्टत: बिना केन्द्रीय सरकार के वित्त-सम्बन्धी अधिकारियों से पूछे ही वसूला तथा खर्च किया जाता था। यह विभिन्न छोटे-छोटे करों से प्राप्त किया जाता था, जो उत्पादन एवं उपभोग, व्यापार एवं धंधों, सामाजिक जीवन की विभिन्न घटनाओं तथा सबसे अधिक परिवहन पर लगाये जाते थे। केन्द्रीय राजस्व के प्रधान साधन थे-भूमि-राजस्व चुंगी, टकसाल, उत्तराधिकार, लूट एवं हर्जाना, उपहार, एकाधिकार तथा प्रत्येक मनुष्य पर लगने वाला कर (पॉल-टैक्स)। इनमें पुराने जमाने की तरह राज्य की आय का सबसे महत्वपूर्ण साधन था भू-राजस्व।

मुगलों के समय भू-राजस्व उत्पादन का हिस्सा होता था। यह भूमि पर कर नहीं वरन् उत्पादन और उपज पर कर होता था। आइन-ए-अकबरी के अनुसार भू-राजस्व राजा द्वारा दिये जाने वाले संरक्षण और न्याय

Mughal Land Revenue System

व्यवस्था के बदले लिए जाने वाला संप्रभुता शुल्क था। मुगल शासन में भू-राजस्व के लिए फारसी शब्द माल और मालवाजिब का प्रयोग किया जाता था। खराज शब्द की नियमित रूप से चर्चा नहीं मिलती थी।

अकबर के समय प्रयोग-1563 ई. में एतमद खाँ के अधीन संपूर्ण साम्राज्य का 18 परगनों में विभाजन हुआ और प्रत्येक परगने में एक करोड़ी नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई। 1564 ई. में मुज्जफर खाँ के अधीन दूसरा प्रयोग किया गया। 1568 ई. में शिहाबुद्दीन के अधीन तीसरा प्रयोग किया गया। इसने नसक प्रणाली पर बल दिया। 1571 ई. में मुज्जफर खाँ और उसके अधीन अधिकारी के रूप में टोडरमल की नियुक्ति की गई। इस प्रयोग में भूमि माप पर बल दिया गया। गुजरात विजय के बाद 1573 ई. में टोडरमल ने गुजरात में भूमि माप की पद्धति अपनायी। अकबर इस पद्धति से संतुष्ट हुआ। 1582 ई. में टोडरमल की नियुक्ति दीवान ए आला के रूप में हुयी और कई प्रयोगों के बाद टोडरमल के द्वारा जब्ती या आइन-ए-दहशाला पद्धति को अपनाया गया।

जब्ती पद्धति में पाँच चरण होते थे।

1. भूमि की माप- भूमि माप की इकाई के रूप में पहले शेरशाह के द्वारा अपनाये गए गज-ए-सिकन्दरी के बदले इलाही गज का प्रयोग किया। इलाही गज 33 ईंच और 41 अंगुल का होता था।

जब्ती व्यवस्था के लाभ-

  • भूमि की माप को कभी भी जाँचा जा सकता था।
  • निर्धारित दस्तूरों के कारण पदाधिकारियों की मनमानी नहीं चल सकती थी।
  • स्थायी दस्तूरों के निर्धारण के बाद भू-राजस्व की अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव में कमी आ गई।
  • भूमि की उर्वरता समान न होने पर उसे लागू नहीं किया जा सकता था।
  • उत्पादकता की अनिश्चितता का दण्ड केवल किसानों को भुगतान करना पड़ता था और यह किसानों के लिए हानिकारक था।
  • यह एक महगी प्रणाली थी क्योंकि इसमें माप करने वाले दल को पारिश्रमिक के रूप में प्रति बीघा 1 दाम की दर से जरीवाना देना पड़ता था।
  • माप करते समय कर्मचारियों के द्वारा गड़बड़ी एवं धोखाधड़ी की समस्या भी बनी रहती थी।

2. भूमि का वर्गीकरण- शेरशाह ने उत्पादकता के आधार पर भूमि का श्रेणीकरण किया था कितु अकबर ने उत्पादकता के बदले बारंबारता पर अधिक बल दिया कितु बारंबारता पर बल देते हुए भी उसने उत्पादकता के आधार को भी बनाये रखा। बारंबारता के आधार पर भूमि चार प्रकार की होती थी।

  • पोलज– इसमें एक वर्ष में दो फसलें होती थी।
  • परती- इसमें दो फसलों के बाद किन्हीं कारणों से एक वर्ष के लिए भूमि को खाली छोड़ दिया जाता था।
  • चाचर- इसमें तीन या चार वर्षों में खेती होती थी।
  • बंजर- इसमें पाँच वर्षों तक खेती नहीं होती थी।

उत्पादकता के आधार पर भूमि को तीन भागों में विभाजित किया गया- 1. उत्तम 2. मध्यम 3. निम्न। अगर हम बंजर भूमि को बाहर कर देते हैं तो दोनों के जोड़ने पर भूमि के कुल 9 प्रकार होते हैं।

3. भू-राजस्व का निर्धारण- भू-राजस्व के निर्धारण के लिए एक दर तालिका बनायी गयी। उस दर तालिका को रय के नाम से जाना जाता था। भू-राजस्व के निर्धारण में निचले स्तर पर बीघा को और ऊँचे स्तर पर परगना को इकाई माना जाता था। भू-राजस्व के निर्धारण के लिए संबंधित क्षेत्र के दस वर्षों के उत्पादन का औसत निकाला जाता था। यह औसत 1571-81 के बीच के वर्षों को बनाया गया था। जब्ती व्यवस्था में भू-राजस्व का निर्धारण करते समय नाबाद क्षेत्र (जिसमें फसल न हुई हो) को छोड़ दिया जाता था।

4. अनाजों का नगद में परिवर्तन- अनाजों के नगद में परिवर्तन के लिए स्थानीय बाजार के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए साम्राज्य की दस्तूर में बाँट दिया जाता था और प्रत्येक दस्तूर में अनाजों के मूल्यों का दस वर्षों का औसत निकाला जाता था। नील, पान, हल्दी और पोस्त नगदी फसलों में अपवाद था। उनकी दरें कुछ अच्छे वर्षों की फसल को ध्यान में रखकर तय की जाती थी।

5. भू-राजस्व का संग्रह- भू-राजस्व के संग्रह के लिए सरकारी अधिकारियों को दस्तूर अल अमल (निर्देश) दिया जाता था। भू-राजस्व की वसूली करने वाले अधिकारी में सरकार के स्तर पर अमाल गुजार और परगने के स्तर पर आमिल होता था। प्रत्येक परगने में कानूनगी होता था जो गाँव के पटवारियों का प्रमुख होता था। भू-राजस्व के संग्रह में सबसे छोटी इकाई गाँव था। ग्रामीण अधिकारियों में मुकद्दम और पटवारी होता था। मुकद्दम गाँव का मुखिया होता था और अपनी सेवा के बदले उसके द्वारा वसूले गये राजस्व में से उसे 2.5 प्रतिशत प्राप्त होता था। अमीन एक प्रमुख अधिकारी था। अमीन का पद शाहजहाँ के शासन काल में आया। अमीन का मुख्य कार्य भू-राजस्व का निर्धारण था।

सामान्यत: भू राजस्व की दर कुल उपज की 1/3 थी। किंतु मोरलैण्ड और इरफान हबीब का मानना है कि भू राजस्व की दर उत्पादन का आधा या तीन चौथाई थी। कश्मीर में अकबर ने कुल उत्पादन के आधे भाग की वसूली का आदेश दिया था। आई.ए.एच. कुरैशी का मानना है कि संभवत: भू-राजस्व एक तिहाई ही लिया जाता था। अगर इस तरह की बात न होती तो किसानों का विद्रोह शाहजहाँ के समय न होकर अकबर के समय हुआ होता। औरंगजेब ने स्पष्ट घोषणा की कि भू-राजस्व शरियत के अनुसार कुल उत्पादन के आधे से अधिक नहीं होना चाहिए। जब्ती या आइन-ए-दहशाला आगरा, लाहौर और गुजरात में लागू की गयी। जब्ती प्रणाली के अतिरिक्त अन्य पद्धतियाँ भी प्रचलित थीं। उदाहरण के लिए बँटाई या गल्लाबख्शी निगार-नामा-ए-मुंशी के अनुसार फसल के बँटवारे को सर्वोत्तम प्रणाली कहा गया है। इसके अतिरिक्त नसक या कानकूत प्रणाली भी प्रचलित थी। कानकूत संभवत: व्यक्तियों पर न लगाकर व्यक्तियों के समूह पर लगाया जाता था।

कृषि उत्पादन एवं कृषि संबंध

सम्पूर्ण साम्राज्य का विभाजन खालिसा, जागीर, सयूरगल या मदद-ए-माश में होता था। मदद-ए-माश की देखभाल सद्र-उस-सुद्र के अंतर्गत एक विभाग करता था। नकद सहायता को वजीफा कहा जाता था। इस प्रकार के अनुदान पाने वाले व्यक्ति का भूमि पर कोई अधिकार नहीं होता था। अकबर ने इस प्रकार के अनुदान पर 100 बीघा प्रति व्यक्ति की सीमा निर्धारित की। अकबर ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए आधी खेती योग्य भूमि और आधी जुती या बंजर भूमि देने की प्रथा चलाई। अनुदान प्राप्तकर्ता को पूरे जीवन के लिए अनुदान प्राप्त होता था और उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी अनुदान के नवीनीकरण के लिए आवेदन कर सकते थे। आम तौर पर उत्तराधिकारियों को अनुदान का एक अंश प्राप्त होता था। जहाँगीर के द्वारा अकबर के दिए गये अनुदानों का नवीनीकरण किया गया। परन्तु शाहजहाँ के द्वारा इसकी सीमा 30 बीघा और औरंगजेब के द्वारा इसकी सीमा 20 बीघा कर दी गई। औरंगजेब ने अपने शासन के 30वें वर्ष में सारे अनुदानों को आनुवांशिक बना दिया। किंतु उसने उन अनुदानों को एक प्रकार का ऋण माना न की संपत्ति। उसके शासन के उत्तरार्ध में और उसकी मृत्यु के बाद अनुदान प्राप्तकर्ता जमीन को खरीदने, बेचने या हस्तांतरित करने लगे। इस कारण धीरे-धीरे इन अनुदानों का अधिकार-क्षेत्र जमींदारी अनुदानों के समकक्ष हो गया।

अकबर के शासन-काल में इस प्रकार के अनुदानों का राजस्व कुल राजस्व का 5.84 प्रतिशत हो गया। अधिकांश अनुदान उपरी गंगा प्रदेश अर्थात् दिल्ली और इलाहाबाद के क्षेत्र में थे। लगभग 70 प्रतिशत सयुरगल अनुदान उन परगनों में केन्द्रित थे जो गैर मुसलमानों जमींदार के अधिकार में थे। एक दूसरे प्रकार का अनुदान वक्फ कहलाता था जो धार्मिक कार्यों के लिए दिया जाता था। इसकी आमदनी मकबरों, समाधियों एवं मदरसों के रख-रखाव पर खर्च होती थी। मदद ए मास अनुदान की सहायता से बंजर भूमि को विकसित करने में मदद की जाती थी। 18वीं शताब्दी के आरंभ तक ये अनुदान सभी प्रकार के लेनदेन में जमींदार भूमि के रूप में प्रयुक्त किए जाने लगे।

जमींदार दो शब्दों से बना है- जमीन (भूमि) और दार (ग्रहण करना)। मुगल काल से पहले जमींदार शब्द का प्रयोग इलाके के प्रधान के लिए किया जाता था कितु अकबर के समय से यह शब्द किसी भी व्यक्ति के उत्पादन से सीधा हिस्सा ग्रहण करने के लिए आनुवांशिक दावों के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा था। जमींदार शब्द के कई स्थानीय शब्द प्रचलित थे- उदाहरण के लिए दोआब में खूत और मुकद्दम अवध में राजस्थान और गुजरात में बैठ या वन्ठ। जमींदारी का मतलब भूमि पर संपत्ति का अधिकार नहीं था। यह मात्र भूमि उत्पादन पर जमींदारों का दावा था जो राज्य के भू-राजस्व के साथ-साथ था किंतु उसका क्रय-विक्रय किया जा सकता था। यह अनुवांशिक एवं विभाज्य था। जब जमींदारों को भू-राजस्व की वसूली का अधिकार नहीं दिया जाता था वहाँ भी उन्हें मालिकाना के रूप में भू-राजस्व का 10 प्रतिशत प्राप्त हो जाता था।

इसके अतिरिक्त वे दस्तूरी सुमारी (पगड़ी), खाना सुमारी (गृहकर) विवाह, जन्म आदि पर भी कर लगाते थे। आइन ए अकबरी के अनुसार मुगल साम्राज्य में जमींदारों की सेना में 44 लाख से अधिक सिपाही थे। बंगाल में उनके पास हजारों नावे थे। उनकी स्थिति स्वायत्त शासकों की तरह थी। वे राजा, राव, राणा, रावत आदि कहलाते थे। चौधरी परगने का अधिकारी होता था और परगने के अन्य जमींदारों से कर वसूलता था। अपने परंपरागत नानकार के अतिरिक्त चौधरियों का वसूले गये भू-राजस्व में भी अलग से हिस्सा मिलता था जिसे चौधराई कहा जाता था जो कुल राजस्व का 2.5 प्रतिशत होता था। जमींदारों के विपरीत चौधरी की नियुक्ति राज्य द्वारा होती थी और उसे ठीक ढंग से काम न करने पर किसी भी समय हटाया जा सकता था।

प्रत्येक गाँव में आनुवांशिक पदाधिकारी होता था। गाँव का मुखिया उत्तर भारत में मुकद्दम तथा पटेल कहलाता था। उसे गाँव में राजस्व मुक्त भूमि मिलती थी और वसूले गये राजस्व में नगद हिस्सा मिलता था। उनकी सहायता के लिए लेखपाल भी होते थे जो उत्तर भारत में पटवारी तथा दक्षिण भारत में कुलकर्णी कहलाते थे। मुकद्दम और पटवारी के पद तथा उनसे जुड़े हुए अधिकार वंशानुगत होते थे। कृषकों के भूमि संबंधी अधिकार स्पष्ट नहीं थे जब तक वे खेती करते थे तब तक उनका अधिकार होता था। धनी किसानों को उत्तर भारत में खुदकाश्त, राजस्थान में घरहुल और महाराष्ट्र में मिरासदार कहा जाता था। उसी तरह गरीब किसानों को उत्तर भारत में रेजा और रियाजा, राजस्थान में पालती और महाराष्ट्र में कुन्वी कहा जाता था।

किसान वर्ग के विभाजन का आधार केवल आर्थिक ही नहीं होता था। गाँव के स्थायी निवासी उत्तर भारत में खुदकाश्त, महाराष्ट्र में मिरासहार और दक्कन में थालकर कहा जाता था और अस्थायी निवासी को उत्तर भारत में पाहिकाश्त और महाराष्ट्र में उपरी कहा जाता था।

  • खुदकाश्त- वे किसान जो अपनी भूमि पर खेती करते थे।
  • पाहिकाश्त- जिनके पास अपने हल बैल होते थे और वे दूसरे गाँव में जाकर खेती करते थे।
  • मुजारियन- उनकी स्थिति बटाईदारों जैसी होती थी और वे प्राय: इनाम की भूमि पर काम करते थे।

सिंचाई और फसल के प्रकार- सिंचाई के लिए पर्शियन व्हील का प्रयोग होता था। कुएँ से जल निकालने के लिए लीवर का प्रयोग होता था। आइन-ए-अकबरी में 17 रबी फसल और 26 खरीफ फसल बतायी गयी है। मुगल काल में कलम लगाने की प्रणाली विकसित हुई। मुगल काल में खरीफ फसल के साथ-साथ रबी फसल का भी महत्त्व बढ़ने लगा। सभी मुगल शासकों में शाहजहाँ दो नहरें बनवायी- 1. नहर फैज 2. शाही नहरा 16वीं शताब्दी में पुर्तगली तंबाकू को भारत में लाये और महाराष्ट्र में तंबाकू की खेती शुरू हुई। 17वीं शताब्दी में ज्वार की खेती शुरू हुई। 18वीं सदी में मक्का की खेती महाराष्ट्र एवं पूर्वी राजस्थान में प्रारंभ हुई। 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में कॉफी का उत्पादन शुरू हुआ और 18वीं सदी में आलूलाल मिर्च और टमाटर की खेती शुरू हुई। अमेरिका को तंबाकू, अन्नानास, काजू, आलू का निर्यात होता था। मध्य एशिया को तरबूज, अमरूद और खरबूजे का निर्यात होता था। लैटिन अमेरिका को मक्का का निर्यात होता था।

नकदी फसल को जिस-ए-कामिल या जिंस-ए-आला कहा जाता था। नकदी फसलों में सबसे अधिक खेती गन्ना की होती थी। फिर कपास, नील, अफीम और तंबाकू की खेती होती थी। पुर्तगालियों द्वारा अन्नानासपपीता और काजू अमेरिका से लाए गए थे। काबुल से चेरी लाई गई और उसकी कलम लगाकर कश्मीर में उसकी खेती शुरू की गई। 1550 ई. में कलम लगाने की पद्धति विकसित हुई। बयाना और सरखेज में नील की माँग सबसे अधिक थी। आगरा के निकट बयाना में उपजाया जाने वाला नील उत्तम कोटी का माना जाता था और उसका मूल्य भी ज्यादा होता था। बिहार तथा मालवा में अच्छे प्रकार के अफीम की खेती होती थी।

  • खनिज-शोरा- आरंभ में अहमदाबाद, बड़ौदा, दिल्ली और आगरा में (17वीं सदी के उत्तरार्ध में पटना) बनता था।
  • सोना- फिच महोदय ने बिहार की नदी की रेत से सोना निकालने की विधि के बारे में बताया है।
  • ताँबा- राजस्थान की खानों से तांबा निकाला जाता था।
  • लोहा- अबुल फजूल के अनुसार-बंगाल, इलाहाबाद, आगरा, बिहार, गुजरात, दिल्ली, और कश्मीर में लोहा बनाया जाता था।
  • कागज बनाने की कला अहमदाबाद, दौलताबाद, सियालकोट, लाहौर और पटना में विकसित अवस्था में थी।

Related Posts

PW IAS प्राचीन भारत नोट्स हिंदी PDF

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

IAS प्रहार 3.0 मॉडर्न इंडिया मेन्स नोट्स 2023 हिंदी PDF

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

EG क्लासेस विश्व इतिहास नोट्स हिंदी PDF

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

PW IAS मध्यकालीन भारत नोट्स हिंदी PDF में

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

केवल IAS प्रहार 3.0 विश्व इतिहास मुख्य नोट्स 2023 हिंदी PDF में

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

केवल IAS प्रहार 3.0 मॉडर्न इंडिया मेन्स नोट्स 2023 हिंदी PDF

अब आपने आईएएस अधिकारी बनने का मन बना लिया है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुस्तकों और अध्ययन सामग्री की तलाश कर रहे हैं।…

This Post Has One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *