अक्षांश देशांतर एवं अन्तराष्ट्रीय तिथि रेखा

अक्षांश देशांतर एवं अन्तराष्ट्रीय तिथि रेखा

ग्लोब

  • हमारी पृथ्वी गोलाभ है जो सूर्य की परिक्रमा अपने दीर्घवृत्ताकार पथ पर करती है ग्लोब पृथ्वी का यथार्थ निरूपण है यदि ग्लोब पर धरातल की आकृतियों एवं दिशाओं का प्रदर्शन शुद्धता पूर्वक किया जा सकता है तथापि ग्लोब के प्रयोग में कई असुविधाए आती है मानचित्र पर सभी स्थान अक्षांश एवं देशांतर रेखा (जो काल्पनिक रेखा है) की सहायता से दर्शाए जाते है |

अक्षांश रेखा

  • किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर तथा दक्षिण की ओर गुणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं एक ही कोणात्मक दूरी वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं भूमध्य  रेखा से ध्रुवो  तक 90 डिग्री अक्षांश होते हैं |
  • भूमध्य रेखा से हम जैसे जैसे ध्रुवों की ओर जाएंगे अक्षांश रेखा का मान बढ़ता जाएगा यदि हम भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर जाएंगे तो उस स्थान का अक्षांशीय मान लिखेंगे सभी अक्षांश देखा समांतर होती है |
  • दो अक्षांशो के मध्य की दूरी 111 किमी होती है विषुवत रेखीय वृत्त सबसे बड़ी अक्षांश(40069किमी) है |
  • उत्तरी  गोलार्द्ध मैं विषुवत रेखा से साढ़े 23 डिग्री अंश पर खींचा गया  काल्पनिक वृत्त  कर्क रेखा है दक्षिणी  गोलार्द्ध में विषुवत रेखा से साढ़े 23 डिग्री अंश पर खींचा गया काल्पनिक वृत्त मकर रेखा है साढ़े 66 अंश अक्षांश रेखा को आकृटिक वृत्त कहते हैं |
  • भारत में माध्य प्रमाणिक समय साढ़े 82 डिग्री पूर्व (इलाहबाद के नैनी) से होकर गुजरता है जो ग्रीनविच मध्याहन से 5 घंटे 30 मिनट आगे है |
  • क्रोनोमीटर यंत्र की सहायता से ग्रीनविच समय के साथ-साथ किसी भी स्थान का देशांतर ज्ञात किया जाता है भूमध्य रेखा पर देशांतर रेखा के मध्य की दूरी = 111.32  किलोमीटर होती है |

देशांतर रेखा



  • उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों को  मिलाने वाली काल्पनिक रेखाओं को देशांतर रेखा कहते हैं यह रेखाएं सामांतर नहीं होती है ध्रुवों से विषुवत रेखा की ओर आगे बढ़ने पर देशांतरों के बीच की दूरी बढ़ती जाती है तथा विषवत रेखा पर इनके बीच की दूरी अधिकतम 111.32  किलोमीटर होती है बिट्रेन के ग्रीनविच से गुजरने वाली रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा के दोनों ओर 180 डिग्री अंशों में देशांतर रेखा विभाजित है चूंकि 1 डिग्री देशांतर रेखा को पार करने में 4 मिनट का समय लगता है अतः प्रधान मध्याहन रेखा से 90 डिग्री पर जाने में 6 घंटे का समय लगता है |
  • समय की सुविधा एवं देश में एकरूपता बनाए रखने के लिए अधिकांश देशों में एक ही माध्य प्रमाणिक समय निर्धारित किया गया है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में 7 एवं सर्वाधिक 9 टाइम जोन रूस में है वहीं ऑस्ट्रेलिया में तीन टाइम जोन है भारत एवं चीन में एक टाइम जोन निर्धारित है |
  • अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 1884 में  वॉशिंगटन में हुई संधि के बाद 180 डिग्री याम्योत्तर के लगभग एक काल्पनिक रेखा निर्धारित की गई है जिसे अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है इस रेखा के पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा या पार करने पर 1 दिन घट जाएगा जबकि पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करने पर एक दिन बढ़ जाएगा |

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा में परिवर्तन

  • समूह दीप समूह से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा में दूसरी बार परिवर्तन हुआ है सन 1892 से पहले समोआ द्वीप समूह अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा के पश्चिम में था फिर सन 1892 में समोआ द्वीप समूह को तिथि रेखा  के पूर्व में कर दिया था किंतु 30 दिसंबर 2011 को  समोआ द्वीप समूह में समोआ द्वीप अब अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पश्चिम में आ गया है जबकि अमेरिकन समोआ अभी भी तिथि रेखा के पूर्व में है टोकेलाऊ द्वीप भी अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के दक्षिण में आ गया है
  • समोआ  द्वीप और टोकेलाऊ में इस परिवर्तन के कारण ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के समीप था तथा इनके साथ व्यापार की अधिकता बताया जाता है विषुवत रेखा के ध्रुवों की ओर जाने पर भार में बढ़ोतरी होती है, जो घूर्णन बलो में कमी के कारण होता है

केसलर सिंड्रोम क्या है?

  • हम अक्सर पूरी दुनिया में विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा लॉन्च किए जाने वाले उपग्रहों की खबरें देखते हैं। हर कोई इन दिनों उपग्रह लॉन्च कर रहा है |
  • 2017 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक ही रॉकेट से 104 से कम उपग्रहों को लॉन्च करके विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया, इस बारे में बहुत चर्चा हुई! इस साहसिक कदम के साथ, इसरो ने रूस द्वारा आयोजित पिछले रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया, जिसने 2014 में एक ही मिशन में 37 उपग्रहों को लॉन्च किया था।

    क्या है कैसलर सिंड्रोम

  • क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक उपग्रह निष्क्रिय हो जाता है, तो उसका क्या होता है? वह कहाँ जाता है? जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, एक मृत उपग्रह को कहीं भी नहीं जाना है, इसलिए यह अपनी कक्षा में रहता है ।
  • लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में इतने उपग्रहों के साथ, आप कल्पना कर सकते हैं कि अब तक कितनी भीड़ हो गयी होगी | तार्किक सवाल, ज़ाहिर है, तब क्या होता है जब कक्षा में बहुत सारे उपग्रह होते हैं?
  • एक अनुमान के अनुसार, अभी तक विभिन्न देश 23,000 से अधिक उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचा चुके हैं. जानकर हैरानी होगी कि इसमें से लगभग 12,00 सैटेलाइट ही सक्रिय हैं, यानी कुल छोड़े गए उपग्रहों में से मात्र 5 प्रतिशत ही वर्तमान में चालू अवस्था में हैं, जबकि बाकी 95 प्रतिशत उपग्रह कचरे का रूप ले चुके हैं.
  • बेकार हो चुके ये 95 प्रतिशत कृत्रिम उपग्रह अभी भी अपनी कक्षाओं में निरंतर चक्कर लगा रहे हैं और अंतरिक्ष में कचरा को बढ़ा रहे हैं.
  • क्या परिणाम हो सकते हैं ?

    • केसलर सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें पृथ्वी की निम्न कक्षा में वस्तुओं का घनत्व इतना अधिक बढ़ जाता है यानि इतनी ज़्यादा वस्तुएंं एक समय में कक्षा में होंगी कि उनमेंं टकराव होना अवश्यम्भावी हो जायेगा, फिल्म  में इसे बखूबी दर्शाया गया है !
    • नासा के अनुसार, 1 सेमी (0.4 इंच) से छोटे मलबे के कणों की संख्या लाखों में है। 1-10 सेमी (0.4-4 इंच) के आकार की सीमा में कणों की आबादी लगभग 50,000 होने का अनुमान है। वास्तव में बड़े वाले, यानी, 10 सेमी (4 इंच) से बड़ी वस्तुएं संख्या में 22,000 से अधिक हैं। ये वर्तमान में अमेरिकी अंतरिक्ष निगरानी नेटवर्क द्वारा मलबे के टुकड़े हैं।
    • केसलर सिंड्रोम आने वाले समय के लिये बेहद बुरी खबर साबित हो सकता है जब आप कोई नया उपग्रह छोडेंं और मलबे की वजह से वो खराब हो जाये, या वो मलबे की वजह से ठीक से काम ही ना कर पाये !
    • इसलिये समय रहते वैज्ञानिकोंं को इसका हल निकालना होगा जिससे भविश्य में आने वाली समस्याओंं से बचा जा सके



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *