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NCERT SCIENCE

Home » ईंधन FOR UPSC IN HINDI

ईंधन FOR UPSC IN HINDI

  • Posted by teamupsc4u
  • Categories NCERT SCIENCE
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वे सब पदार्थ जो अकेले या अन्य पदार्थों से प्रतिक्रिया करके ऊष्मा (Heat) प्रदान करते हैं, ईंधन कहलाते हैं। अधिकांश ईंधनों में कार्बन उपस्थित रहता है। इन ईंधनों को वायु में जलाने पर ऊष्मा प्राप्त होती है।

ईंधन की विशेषताएँ (Characteristics of Fuel): एक आदर्श ईंधन या उत्तम कोटि के ईंधन में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

(i) ईंधन सस्ता व आसानी से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए।

(ii) इसके भण्डारण और इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

(iii) वह आसानी से जलने लायक हो और जलने के फलस्वरूप किसी हानिकारक गैस की उत्पत्ति नहीं होनी चाहिए।

(iv) इसका ऊष्मीय मान उच्च होना चाहिए।

(v) इसका ज्वलन ताप उपयुक्त होना चाहिए।

(vi) इसका दहन न तो अत्यंत मंद और न अत्यंत तीव्र होना चाहिए।

(vii) इसमें अवाष्पशील पदार्थों की मात्रा कम होनी चाहिए।

नोट: ठोस व द्रव ईंधन की अपेक्षा गैसीय ईंधन अधिक अच्छा होता है।

गैसीय ईंधन की विशेषताएं (Characteristics of Gaseous Fuel):

(i) इन्हें आसानी से जलाया या बुझाया जा सकता है।

(ii) इनके प्रयोग से राख एवं धुआँ नहीं बनते हैं।

(iii) इन्हें ऐच्छिक स्थान पर ले जाकर ऊष्मा प्राप्त की जा सकती है।

(iv) इनसे अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त होती है।

(v) इनके प्रवाह को आसानी से कम या तेज किया जा सकता है।

(vi) इनसे प्राप्त ऊष्मा व्यर्थ नहीं जाती है।

सामान्य प्रयोग में आने वाली ईंधन गैसे

  1. कोल गैस (Coal gas)- यह कई दहनशील गैसों का मिश्रण होता है। इसका संघटन कोयले की किस्म और भंजक स्रवण के ताप पर निर्भर करता है। इसकी औसत प्रतिशत रचना इस प्रकार है-

हाइड्रोजन- 55%,

मिथेन- 30%,

कार्बन मोनोक्साइड- 4%,

असंतृप्त हाइड्रोकार्बन- 3% तथा

अज्वलनशील अशुद्धियाँ (CO2, N2, O2)- 8% ।

इनमें से प्रथम तीन अवयव जो तनुकारी पदार्थ कहलाते हैं, जलकर ऊष्मा देते हैं, जबकि असंतृप्त हाइड्रोकार्बन प्रकाश उत्पादक होता है और यह प्रदीपक अंग कहलाता है। यह जलाने (बुन्सेन बर्नर में), प्रकाश उत्पन्न करने में तथा धातुकर्म में अवकरण के लिए प्रयुक्त होती है।

  1. भाप अंगार गैस (Water Gas): यह कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोजन का आण्विक मिश्रण होता है। इसमें अशुद्धियों के रूप में CO2, H2O और N2 रहता है। इसे रक्त तप्त कोक पर भाप की धारा प्रवाहित करके प्राप्त किया जाता है। इसका कैलोरी मान प्रोड्यूशर गैस से अधिक होता है। यह अकेले अथवा कोल गैस के साथ मिलकर ईंधन के रूप में प्रयोग में लायी जाती है। यह हाइड्रोजन गैस बनाने के काम आती है, जो अमोनिया के औद्योगिक उत्पादन में उपयोगी है। इससे मिथाइल ऐल्कोहॉल भी बनाया जाता है।
  2. वायु अंगार गैस (Producer Gas): यह कार्बन मोनोक्साइड (CO) तथा नाइट्रोजन (N2) का मिश्रण होता है, जिसमें आयतनानुसार दो भाग नाइट्रोजन और एक भाग कार्बन-मोनोक्साइड होता है। इसमें अशुद्धि के रूप में थोड़ा कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद रहता है। इसका कैलोरी मान अन्य ईंधनों की तुलना में सबसे कम होता है। यह एक सस्ता ईंधन है, जो जलकर उच्च ताप देता है। काँच के निर्माण तथा धातु निष्कर्षण में इसका बहुधा उपयोग होता है।
  3. तेल गैस (Oil Gas): यह सरल, संतृप्त एवं असंतृप्त हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है। (जैसे- मिथेन, ऐसीटिलीन, इथिलीन आदि) यह मिट्टी के तेल (Kerosene Oil) या पेट्रोलियम के भंजक स्रवण द्वारा तैयार की जाती है। इस गैस में वायु मिलाकर प्रयोगशाला में बर्नर जलाये जाते हैं।
  4. प्राकृतिक गैस (Natural Gas): पेट्रोलियम के कुओं से निकलने वाली गैसों में मुख्य रूप से मिथेन तथा इथेन (क्रमशः 83% एवं 16%) होती है, जो ज्वलनशील होने के कारण ईंधन के रूप में प्रयुक्त की जाती है। प्राप्त ऊष्मा की मात्रा के आधार पर प्राकृतिक गैस सर्वश्रेष्ठ ईंधन है। प्राकृतिक गैस तेल के कुओं से भी उपफल (By Product) के रूप में प्राप्त किया जाता है। इस गैस का प्रधान अवयव मिथेन (CH4) होता है। प्राकृतिक गैस का उपयोग कृत्रिम उर्वरकों के उत्पादन में किया जाता है।
ईंधन किसे कहते है | Web Collection

जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel): जीवाश्म ईंधन से तात्पर्य उन ईंधनों से है, जो पेड़-पौधों और जानवरों के अवशेषों के धरती के अंदर लाखों वर्षों तक दबे रहने के फलस्वरूप बनते हैं। इन ईंधनों में ऊर्जा से भरपूर कार्बन के यौगिक विद्यमान रहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि जीवाश्म ईंधन के प्रमुख उदाहरण हैं।

  1. कोयला (Coal): कोयला पृथ्वी के अंदर व्यापक रूप से पाया जाने वाला जीवाश्मीय ईंधन है। कोयला को खनिज कोयला भी कहा जाता है। इसमें 60-90% मुक्त कार्बन तथा उसके यौगिक के अतिरिक्त नाइट्रोजन, गंधक, लोहा आदि के यौगिक भी उपस्थित रहते हैं। कोयला मुख्यतः 4 प्रकार के होते हैं- पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite) बिटुमिनस (Bituminous) तथा एन्थ्रासाइट (Anthracite)।

पीट कोयला निर्माण की प्रथम अवस्था होती है। एन्थ्रासाइट सर्वोत्तम किस्म का कोयला होता है, जबकि बिटुमिनस कोयले की सामान्य किस्म है। संसार का अधिकांश कोयला बिटुमिनस किस्म का होता है। लिग्नाइट को भूरा कोयला (Brown Coal) कहा जाता है। एन्थ्रासाइट कोयले की अंतिम अवस्था होती है। एन्थ्रासाइट कोयला जलने पर धुआँ नहीं देता है और काफी ऊष्मा उत्पन्न करता है। बिटुमिनस कोयला इंजन में जलाने तथा कोल गैस बनाने में काम आता है। वायु की अनुपस्थिति में कोयले को गर्म करने पर कोक, अलकतरा और कोल गैस प्राप्त होते हैं। इस प्रक्रिया में कोयले का भंजक स्रवण (Destructive Distillation of Coal) कहते हैं। कोयले का उपयोग बॉयलरों, इंजनों और भट्टियों में ईंधन के रूप में, कोल गैस बनाने में, धातुकर्म में अवकारक के रूप में तथा कई रासायनिक पदार्थों के निर्माण में किया जाता है।

  1. पेट्रोलियम (Petroleurn): पेट्रोलियम भूरे काले रंग का एक तैलीय द्रव होता है, जिसमें एक विशेष प्रकार की गंध होती है। यह वस्तुतः कई हाइड्रोकार्बनों (ठोस, द्रव और गैसीय) एवं गंधक का मिश्रण होता है। कच्चा पेट्रोलियम का प्रभाजी आसवन या स्रवण (Fractional Distillation) द्वारा शोधन करने पर यह हाइड्रोकार्बनों के कई भागों में अलग-अलग हो जाता है। एक प्रभाजक स्तम्भ (Fractionating Column) में इन अवयवों को उनके क्वथनांक बिन्दु पर अलग-अलग कर लिया जाता है। कच्चा पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन या स्रवण द्वारा निम्नलिखित पदार्थ प्राप्त होते हैं-ऐस्फाल्ट (Asphalt), स्नेहक तेल (Lubricating Oil), पैराफिन मोम (Paraffin wax), ईंधन तेल (Fuel Oil), डीजल तेल (Diesel Oil), मिट्टी का तेल (Kerosine Oil), पेट्रोल (Petrol), पेट्रोलियम गैस (Petroleum Gas) इत्यादि।

ईंधन तेल का उपयोग मुख्यतः उद्योगों के बॉयलरों और भट्टियों को गर्म करने में किया जाता है। यह कोयले से उत्तम किस्म का ईंधन होता है। इसका पूर्ण दहन होता है, अतः जलने के पश्चात् राख (Ash) नहीं बनता है। पेट्रोल और डीजल का उपयोग स्वचालित वाहनों (Automobiles) और इंजनों में किया जाता है। किरासन तेल का उपयोग घरों में प्रकाश उत्पन्न करने हेतु लालटेन, लैम्प आदि में किया जाता है। इसका उपयोग स्टीव (stove) जलाने में भी होता है।

पेट्रोलियम गैस इथेन, प्रोपेन और ब्यूटेन का मिश्रण होता है। इसका मुख्य अवयव नार्मल एवं आइसो ब्यूटेन होता है, जो तेजी से जलकर ऊष्मा प्रदान करता है। दाब बढ़ाने पर नार्मल एवं आइसो ब्यूटेन आसानी से द्रवीभूत हो जाता है। अतः द्रव रूप में इसे सिलिंडरों में भरकर द्रवित पेट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas) के नाम से जलावन के लिए उपभोक्ता को दिया जाता है।

ईधन का ऊष्मीय मान (Calorific Value of Fuels): किसी ईंधन का ऊष्मीय मान (Calorific value) ऊष्मा की वह मात्रा है, जो उस ईंधन के एक ग्राम को वायु या ऑक्सीजन में पूर्णतः जलाने के पश्चात प्राप्त होती है। उत्पन्न ऊष्मा को कैलोरी (Calorie), किलो कैलोरी (Kilo Calorie) या जूल (Joule) के पदों में व्यक्त किया जाता है। किसी भी अच्छे ईधन का ऊष्मीय मान अधिक होना चाहिए । सभी ईंधनों में हाइड्रोजन का उष्मीय मान सबसे अधिक होता है, लेकिन इसका उपयोग घरेलू या औद्योगिक ईंधन के रूप में सामान्यतः नहीं किया जाता, क्योंकि इसका सुरक्षित भंडारण कठिन होता है। इसका उपयोग अंतरिक्ष यानों में तथा उच्च ताप उत्पन्न करने वाले ज्वालकों में किया जाता है। हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन कहा जाता है।

ज्वलन ताप (Ignition Temperature): जिस न्यूनतम ताप पर कोई पदार्थ जलना शुरू करता है, उसे उस पदार्थ का ज्वलन ताप कहते हैं।

दहन (Combustion): किसी पदार्थ के ऑक्सीजन में जलने पर ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न होते हैं। जलने की इस क्रिया को दहन कहते हैं। दूसरे शब्दों में दहन वह रासायनिक अभिक्रिया है, जिसमें ऊष्मा और प्रकाश उत्पन्न होते हैं तथा उत्पन्न ऊष्मा अभिक्रिया को चालू रखने के लिए पर्याप्त होती है। दहन एक ऑक्सीकरण क्रिया है।

दहनशील या ज्वलनशील पदार्थ (Combustible Substances): वे पदार्थ जो जलते हैं, दहनशील या ज्वलनशील पदार्थ कहलाते हैं, जैसे- कार्बन, गंधक, मोमबत्ती, मैग्नीशियम इत्यादि।

अदहनशील या अज्ज्वलनशील पदार्थ (Incombustible Substances): वे पदार्थ जो नहीं जलते हैं, अदहनशील या अज्वलनशील पदार्थ कहलाते हैं, जैसे- बालू, पत्थर, ईट, मिट्टी आदि।

दहन के पोषक (Supporter of Combustion): जो पदार्थ दहन की क्रिया में सहायक होते हैं, उन्हें दहन का पोषक कहते हैं, जैसे- ऑक्सीजन।

दहन के अपोषक (Non Supporter of Combustion): जो पदार्थ दहन की क्रिया में सहायक नहीं होते हैं, उन्हें दहन का अपोषक कहते हैं, जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड।

नोट: सभी दहन क्रियाएँ ऑक्सीकरण क्रिया होती हैं, लेकिन सभी ऑक्सीकरण क्रियाएं दहन नहीं होती हैं।

दहन के लिए आवश्यक शर्ते: दहन की क्रिया के लिए निम्नलिखित तीन शर्ते आवश्यक हैं-

(1) दहनशील पदार्थ की उपस्थिति (2) दहन के पोषक पदार्थ की उपस्थिति (3) ज्वलन ताप की प्राप्ति

दहन के प्रकार: दहन के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-

  1. द्रुत दहन (Rapid Combustion): दहन की वह क्रिया जिसमें ऊष्मा एवं प्रकाश अल्प समय में उत्पन्न होते हैं, द्रुत दहन कहलाता है। जैसे- माचिस की तीली का जलना, पटाखों का फूटना आदि।
  2. मंद दहन (slow Combustion): दहन की वह क्रिया जो बहुत धीरे-धीरे सम्पादित होती है, मंद दहन कहलाता है। शवसन मंद दहन का अच्छा उदाहरण है।
  3. स्वतः दहन (Auto Combustion): दहन की वह क्रिया जो बिना किसी बाहरी ऊष्मा के सम्पादित होती है, स्वत: दहन कहलाता है, जैसे- फॉस्फोरस का ज्वलन।
  4. विस्फोट (Explosion): दहन की वह क्रिया जो बाहरी दाब या प्रहार के प्रभाव से होती है, विस्फोट कहलाता है, जैसे-पटाखों का फूटना, बम का फूटना आदि।

रॉकेट ईंधन (Rocket Fuels) – रॉकेट ईंधन को प्रणोदक (Propellants) कहते हैं। रॉकेट के प्रणोदन (Propulsion) के लिए प्रणोदक ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रणोदक वैसे ईंधन हैं, जिनके जलने पर अत्यधिक मात्रा में गैसें एवं ऊर्जा उत्पन्न होती हैं, तथा इनका दहन बहुत तीव्र गति से होता है एवं दहन के पश्चात कोई अवशेष नहीं बचता है। प्रणोदक के दहन के फलस्वरूप उत्पन्न गैसें रॉकेट के पिछले भाग से जेट (Jet) के रूप में बहुत तीव्र गति से बाहर निकलती हैं, जिससे रॉकेट का इच्छित दिशा में प्रणोदन होता है।

प्रणोदक दो प्रकार के होते हैं:

  1. द्रव प्रणोदक (Liquid Propellants) तथा
  2. ठोस प्रणोदक (Solid Propellants)

ऐल्कोहॉल, द्रव हाइड्रोजन, द्रव अमोनिया, किरोसिन, हाइड्राजीन आदि द्रव प्रणोदक के प्रमुख उदाहरण हैं।

बायो गैस (Bio Gas): जानवरों और पेड़-पौधों से प्राप्त व्यर्थ पदार्थ सूक्ष्म जीवों द्वारा जल की उपस्थिति में आसानी से सड़ते हैं और इस प्रक्रिया में मिथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड आदि गैसें निकलती हैं। इस गैसीय मिश्रण को बायो गैस कहते हैं। इसमें लगभग 65% मिथेन होता है। यह एक उत्तम गैसीय ईंधन है। बायो गैस जलने पर धुआँ उत्पन्न नहीं करता है, साथ ही साथ इसके जलने से पर्याप्त ऊष्मा प्राप्त होती है। इसे घरेलू उपयोग में लाने के लिए किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है। बायो गैस की समाप्ति के पश्चात संयंत्र में अवशिष्ट पदार्थ में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस के कई यौगिक रहते हैं। अतः अवशिष्ट पदार्थों का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है । अतः बायो गैस काफी उपयोगी गैस है।

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