क्या है गंगा नदी अपवाह तन्त्र ?

गंगा नदी अपवाह तन्त्र

  • निर्धारित जलमार्गों का अनुसरण करते हुए बहते जल के द्वारा जो तंत्र बनाता है उसे अपवाह तन्त्र या नदी तंत्र प्रणाली कहते हैं
  • गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है तथा अलकनंदा नदी बद्रीनाथ के पास सतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है।
  • उत्तराखण्ड के देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी मिलती है और वहां से गंगा नदी के नाम से जानी जाती है ।
  • हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भाग को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
  • हिमालय से निकलने वाली बहुत सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती हैं, इनमें से कुछ प्रमुख नदियाँ हैं – यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी
  • यमुना नदी हिमालय के यमुनोत्री हिमानी से निकलती है। यह गंगा के दाहिने किनारे के समानांतर बहती है तथा इलाहाबाद(प्रयागराज) में गंगा में मिल जाती है।
  • घाघरा, गंडक तथा कोसी, नेपाल हिमालय से निकलती हैं। इनके कारण प्रत्येक वर्ष उत्तरी मैदान के कुछ हिस्से में बाढ़ आती है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है, लेकिन ये वे नदियाँ हैं, जो मिट्टी को उपजाऊपन प्रदान कर कृषि योग्य भूमि बना देती हैं।
  • प्रायद्वीपीय उच्चभूमि से आने वाली मुख्य सहायक नदियाँ चंबल, बेतवा तथा सोन हैं। ये अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों से निकलती हैं। इनकी लंबाई कम तथा इनमें पानी की मात्रा भी कम होती है।
  • बाएँ तथा दाहिने किनारे की सहायक नदियों के जल से परिपूर्ण होकर गंगा पूर्व दिशा में, पश्चिम बंगाल के फरक्का तक बहती है।
  • यह गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिंदु है। यहाँ नदी दो भागों में बँट जाती है, भागीरथी हुगली (जो इसकी एक वितरिका है), दक्षिण की तरफ बहती है तथा डेल्टा के मैदान से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। मुख्य धारा दक्षिण की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी इससे आकर मिल जाती है। अंतिम चरण में गंगा और ब्रह्मपुत्र समुद्र में विलीन होने से पहले मेघना के नाम से जानी जाती हैं। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के जल वाली यह वृहद् नदी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा को सुंदरवन डेल्टा के नाम से जाना जाता है।
  • सुंदरवन डेल्टा का नाम वहाँ पाये जाने वाले सुंदरी पादप से लिया गया है।
  • सुंदरवन डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा एवं तेजी से वृद्धि करने वाला डेल्टा है। यहाँ रॉयल बंगाल टाईगर भी पाये जाते हैं। 

क्या है तुंगभद्रा नदी का महत्त्व?

तुंगभद्रा नदी

  • यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है जो कर्नाटक राज्य के भद्रावती जिला से होकर आंध्र प्रदेश में बहती है। नदी का प्राचीन नाम पम्पा था। यह नदी लगभग 513 किमी. लंबी है।
  • रामायण में तुंगभद्रा को पंपा के नाम से जाना जाता था। तुंगभद्रा नदी का जन्म तुंगा एवं भद्रा नदियों के संगम से हुआ है। तुंगा और भद्रा दोनों नदियाँ पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलानों से निकलती हैं।
  • तुंगभद्रा नदी के मार्ग का अधिकांश भाग दक्कन के पठार के दक्षिणी भाग में स्थित है। नदी मुख्य रूप से वर्षा द्वारा पोषित है।
  • इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ भद्रा, हरिद्रा, वेदवती, तुंगा, वरदा और कुमदावती हैं।
  • पूर्वी कृष्णा नदी में मिलने से पहले यह कमोबेश उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती है। कृष्णा नदी अंत में बंगाल की खाड़ी में मिलती है।

महत्त्व:

  • कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश राज्यों में भूमि के बड़े हिस्से को सिंचित करने के अलावा यह जलविद्युत भी उत्पन्न करता है और बाढ़ को रोकने में मदद करता है।
  • तुंगभद्रा नदी पर एक बाँध बनाया गया है, जिसे पम्पा सागर के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक के बल्लारी ज़िले के होसापेटे में तुंगभद्रा नदी पर बना एक बहुउद्देशीय बाँध है। इसका निर्माण वर्ष 1953 में डॉ. थिरुमलाई अयंगर द्वारा किया गया था।
  • तुंगभद्रा जलाशय में 101 टीएमसी (हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट) की भंडारण क्षमता है, जिसमें जलग्रहण क्षेत्र 28000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसकी ऊँचाई लगभग 49.5 मीटर है।
  • यह कर्नाटक के चावल के कटोरे के रूप में विख्यात रायचूर  बेल्लारीऔर कोप्पल और पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में कडप्पा ,अनंतपुरएवं कुरनूल के 6 सूखा प्रवृत्त जिलों की जीवन रेखा है।

वायुमण्डल परतें | क्षोभमण्डल | समतापमण्डल | मध्यमण्डल | तापमण्डल | बाह्यमण्डल

वायुमण्डल का घनत्व ऊंचाई के साथ-साथ घटता जाता है। वायुमण्डल को 5 विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है।

क्षोभमण्डल

  • क्षोभमण्डल वायुमंडल की सबसे निचली परत है। यह मण्डल जैव मण्डलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मौसम संबंधी सारी घटनाएं इसी में घटित होती हैं। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर वायु का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस की औसत दर से घटता है।
  • इसे सामान्य ताप पतन दर कहते है। इसकी ऊँचाई ध्रुवो पर 8 से 10 कि॰मी॰ तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 से 20 कि॰मी॰ होती है।

समतापमण्डल

  •  20 से 50 किलोमीटर तक विस्तृत है । (समतापमंडल में लगभग 30 से 60 किलोमीटर तक ओजोन गैस पाया जाता है जिसे ओजोन परत कहा जाता है ) इस मण्डल में तापमान स्थिर रहता है तथा इसके बाद ऊंचाई के साथ बढ़ता जाता है।
  • समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है। इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं। इसकी ऊपरी सीमा को ‘स्ट्रैटोपाज’ कहते हैं। इस मण्डल के निचले भाग में ओज़ोन गैस बहुतायात में पायी जाती है।
  • इस ओज़ोन बहुल मण्डल को ओज़ोन मण्डल कहते हैं। ओज़ोन गैस सौर्यिक विकिरण की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं।यहाँ से ऊपर जाने पर तापमान में बढोतरी होती है

मध्यमण्डल

  • यह वायुमंडल की तीसरी परत है जो समताप सीमा के ऊपर स्थित है। इसकी ऊंचाई लगभग 80 किलोमीटरतक है। अंतरिक्ष से आने वाले उल्का पिंड इसी परत में जल जाते है।

तापमण्डल

  • इस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है। तापमण्डल को पुनः दो उपमण्डलों ‘आयन मण्डल’ तथा ‘आयतन मण्डल’ में विभाजित किया गया है। आयन मण्डल, तापमण्डल का निचला भाग है जिसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं।
  • ये कण रेडियो तरंगों को भूपृष्ठ पर परावर्तित करते हैं और बेतार संचार को संभव बनाते हैं। तापमण्डल के ऊपरी भाग आयतन मण्डल की कोई सुस्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं है। इसके बाद अन्तरिक्ष का विस्तार है।

आयनमण्डल

  • यह परत 80 से 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक विस्तृत है । आयन मंडल की निचली सिमा में ताप प्रायः कम होता है जो ऊंचाई के साथ बढ़ते जाता है जो 250km में 700c हो जाता है ।
  • इस मंडल में सुऱय के अत्यधिक ताप के कारण गैसें अपने आयनों में टुट जाते हैं।

बाह्यमण्डल

  • धरातल से 500से1000km के मध्य बहिरमंडल पाया जाता है,कुछ विद्वान् इसको 1600km तक मानते है । इस परत का विषेस अध्ययन लैमेन स्पिट्जर ने किया था।
  • इसमें हीलियम तथा हाइड्रोजन गैसों की अधिकता है।

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