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Home » जनसँख्या की समस्याएं एवं उनका निराकरण FOR UPSC IN HINDI

जनसँख्या की समस्याएं एवं उनका निराकरण FOR UPSC IN HINDI

  • Posted by teamupsc4u
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विश्व में विकासशील एवं निर्धन देशों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि (2 से 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष) ही जनसंख्या समस्या का मूल है। इस बारे में निम्नलिखित तथ्य उल्लेखनीय हैं-

अल्पविकसित, निर्धन व विकासशील देशों में निरन्तर जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण कुछ प्रदेशों में भूमि पर मानव का भार अधिक बढ़ गया है। जहाँ एक ओर उत्तरी अमरीका का क्षेत्रफल विश्व का 16% है, वहाँ विश्व की केवल 6% जनसंख्या निवास करती है एवं यह विश्व की सम्पूर्ण आय का 45% उपभोग करती है। दूसरी ओर, एशिया का क्षेत्रफल विश्व का 18% है, किन्तु वहाँ विश्व की जनसंख्या का 67 % पाया जाता है। यह केवल 12% आय का उपभोग करती है। अफ्रीका के देशों की स्थिति और भी चिन्तनीय है अतः स्पष्ट है कि अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। इनके निवासियों को न केवल अपर्याप्त भोजन मिलता है, वरन् पौष्टिकता की दृष्टि से भी यह अच्छा नहीं होता। विश्व की 6% जनसंख्या आज भी अधनंगी, अधभूखी, अस्वस्थ, अशिक्षित और दरिद्र है। बहुत ही थोड़े व्यक्ति साधन संपन्न हैं।

जनसंख्या का यह असहनीय भार विश्व के चार प्रदेशों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है-

  1. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश जिनमें चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपीन भारत, आदि अग्रणी हैं। इन देशों की भूखी जनसंख्या अपने निकटवर्ती प्रदेशों की ओर लालची दृष्टि से देख रही है।
  2. एशियाई मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका जहाँ की आन्तरिक हलचलें विश्व के लिए सदैव ही खतरे की सूचना देती रहती हैं।
  3. लैटिन अमरीका भी विश्व के लिए खतरे की घण्टी वजने की सूचना कही जा सकती है। यहाँ वृद्धि के साथसाथ नगरीकरण भी बड़ी तेजी से हो रहा है इससे लोगों का जीवन-स्तर घट रहा है और आन्तरिक अस्थिरता बढ़ रही है।
  4. अफ्रीका का सहारा से दक्षिणवर्ती भाग जहाँ जन्म दर अधिक होने और मृत्यु दर कम होते रहने से जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है।

विश्व के इन उपर्युक्त प्रदेशों को पश्चिमी विद्वानों द्वारा जनसंख्या के विस्फोटक क्षेत्रों की संज्ञा दी गयी है। इन्हीं प्रदेशों में न केवल अब तक जनसंख्या की अधिक वृद्धि हुई, वरन् ये ही क्षेत्र निकट भविष्य में भी अधिक वृद्धि के लिए उत्तरदायी होंगे।

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ

जनसंख्या वृद्धि से मुख्य रूप से निम्नलिखित समस्याएँ भी उग्र रूप में उत्पन्न हो रही हैं-

  1. भरण पोषण की समस्या
  2. आवास की समस्या
  3. बेरोजगारी
  4. भुखमरी तथा अकाल
  5. कुपोषण
  6. संक्रामक रोग तथा महामारी
  7. अशिक्षितों की बढ़ती जनसंख्या
  8. नगरों पर जनसंख्या का निरन्तर बढ़ता दबाव तथा गन्दी बस्तियों का विकास
  9. अधिकांश संसाधनों पर अधिक बोझ
  10. कृषि क्षेत्र में कमी
  11. वनों का निरन्तर विनाश
  12. निरन्तर बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण
  13. वन्य जीवन को खतरा
  14. शक्ति के संसाधनों की कमी
  15. राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध
  16. सामाजिक बुराइयाँ तथा भ्रष्टाचार, आदि।

जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का रोकना आधुनिक विश्व में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आर्थिक पिछड़ापन, आदि पर विजय पाने का मूलमन्त्र है, राष्ट्र का बढ़ता हुआ विकास एवं उन्नत तकनीक का लाभ ती बढ़ती जनसंख्या ही निगल जाती है। अत: जनवृद्धि पर नियन्त्रण पाने हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-

परिवार-नियोजन- अच्छे राष्ट्र के लिए आवश्यक है कि उसके निवासी स्वस्थ हों और देश की सम्पदा के अनुरूप उनकी संख्या हो। इसके लिए परिवार नियोजन के आधुनिक चिकित्सा तथा औषधि साधन अपनाए जाने चाहिए। इसक प्रचार उचित तरीकों से किया जाना चाहिए।

विवाह की आयु में वृद्धि- लड़के और लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र बढ़ायी जाए। भारत में विवाह की उम्र लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई है। इसकी अनुपालना सारे देश में दृढ़ता से की जानी चाहिए। इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा व स्वच्छ प्रशासन तन्त्र अनिवार्य है।

सन्तति सुधार- जनसंख्या में गुणात्मक सुधार करना भी आवश्यक है। सन्तानों के बीच की दूरी कम से कम पाँच वर्ष होनी चाहिए एवं प्रति परिवार दो सन्तान से अधिक नहीं होनी चाहिए।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार- मानव की आर्थिक क्षमता बनाए रखने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सफाई पर ध्यान देना आवश्यक है। प्रत्येक कस्बे में नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण मुक्त एवं स्वच्छ पर्यावरण पर बल दिया जाना चाहिए।

भूमि का आदर्श विधि से उपयोग करना- बढ़ती हुई जनसंख्या के भार को कम करने का एक ढंग भूमि का वैज्ञानिक एवं उचित नियोजन करना है।

भूमि का उपयोग करने के लिए निम्न बातों पर जोर देना आवश्यक है-

  1. राष्ट्र के हित में भूमि के छोटे से छोटे क्षेत्र का भी उपयोग अनुकूलतम रूप में किया जाए।
  2. विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का बहुउद्देश्यीय उत्पादन हेतु उपयोग किया जाए।
  3. किसी भी कारण भूमि को व्यर्थ न जाने दिया जाए
  4. किसी वस्तु की माँग बढ़ने के अनुरूप ही कृषि भूमि के उपयोग में आनुपातिक परिवर्तन किया जाए। भूमि उपयोग में उपलब्ध श्रमिक, विपणन एवं यातायात सम्बन्धी व्यवस्था और वस्तुओं के मूल्य तथा मात्रा, आदि का विचार रखा जाए।

भूमि व्यवस्था सुधारने व कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु उपर्युक्त प्रकार से भूमि नियोजन के साथ-साथ

  1. कृषि में नवीन तकनीक का सभी स्तरों पर उपयोग किया जाए,
  2.  कृषि का यथा सम्भव यन्त्रीकरण, खाद, बीज व कीटनाशक में सन्तुलन बनाया रखा जाना चाहिए
  3. पशुओं की नस्ल सुधार एवं नई मिश्रित एवं उपयोगी नस्लों का विकास किया जाए
  4. नवीन बंजर, शुष्क व अन्य अनुपयोगी एवं दलदली भूमि को निरन्तर सुधारकर कृषि उपयोगी बनाया जाए
  5. कृषकों की दशा सुधारने हेतु उन्हें शिक्षित बनाकर सहकारी संस्थाओं से जोड़ा जाए
  6. सरकारी, सहकारी एवं अन्य उपयोगी संस्थाओं से कृषकों को ऋण, समुचित कृषि, शिक्षा व तकनीक सीखने की सुविधा निरन्तर मिलती रहे, क्योंकि निरक्षरता सिर्फ अभिशाप है, वरन् यह एक प्रकार से ऐसा अन्धकूप है जहाँ विनाश ही विनाश है।

समन्वित औयोगीकरण- जिन प्रदेशों में अभी तक औद्योगिक उन्नति नहीं हुई है वहाँ तत्परता से औद्योगीकरण किया जाए। इस हेतु अधिकतर छोटे और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए, क्योंकि छोटे उद्योग जब व्यवस्थित किए जाते हैं तो कृषि और बड़े पैमाने के उद्योग-धन्धों के बीच एक आवश्यक सम्बन्ध व समन्वय स्थापित कर लेते हैं, इसके साथ वे ग्रामीण और नागरिक आय के बीच की खाई को कम करके जीवनयापन हेतु भी अन्य साधनों को विकसित करते हैं। इससे अनेक सहायक व नवीन धन्धों का कुटीर व लघु क्षेत्र में, विकास होता जाता है। गाँवों में इससे वृद्धि बढ़ेगी तो आबादी पर शीघ्र नियन्त्रण सम्भव हो सकेगा।

शिक्षा, मनोरंजन के साधन व रोजगार व्यवस्था में वृद्धि की जानी चाहिए।

जनसंख्या का स्थानान्तरण Migration of Population

जनसंख्या समूह के एक स्थान से दूसरे स्थान को किसी भी अवधि (दैनिक, मासिक, वार्षिक या स्थायी) के लिए प्रवास जनसंख्या का प्रवास या स्थानान्तरण कहलाता है।

स्थानान्तरण के प्रकार Types of Migration

मानव का प्रवसन दो प्रकार का होता है-

  1. स्थानीय
  2. अन्तर्राष्ट्रीय

स्थानीय स्थानान्तरण– इससे तात्पर्य किसी समुदाय का स्थानीय क्षेत्रों में ही आने जाने से लिया जाता है। यह दो प्रकार का होता है।

  1. अन्तक्षेत्रीय, और
  2. गाँवों से नगरों की ओर

अन्तक्षेत्रीय स्थानान्तरण– इससे तात्पर्य जनसंख्या के देश के किसी एक भाग से दूसरे भाग में जाने से होता है, जैसे, राजस्थान से मारवाड़ियों का व्यापार के लिए महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल या भारत के अन्य राज्यों में इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक अथवा सामाजिक होता है।

गाँवों से नगरों को स्थानान्तरण– प्राय: सभी देशों ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, जापान, भारत, आदि से औद्योगीकरण एवं व्यापार के फलस्वरूप नगरों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होने से गाँव से नगरों की ओर मानवसमूह का प्रवास अधिक होता है। कहीं इस प्रकार का प्रयास अल्पकालीन होता है और कहीं दीर्घकालीन

अन्तर्राष्ट्रीय स्थानान्तरण- इसके अन्तर्गत मानव समूह का प्रवास एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र को होता है। इस प्रकार चीनी लोग इण्डोनेशिया और वियतनाम में, भारतीय श्रीलंका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, कनाडा, संयुक्त राज्य अमरीका और इंग्लैण्ड में जाकर बसे हैं।

अवधि के अनुसार स्थानान्तरण निम्न प्रकार का होता है-

  1. अस्थायी प्रवास Temporary Migration
    1. दैनिक
    2. अल्पकालिक
    3. दीर्घकालिक
  2. स्थायी प्रवास Permanent Migrationt

स्थानान्तरण के कारण Causes of Migration

प्रवसन के लिए दो मुख्य घटक उत्तरदायी हैं-

प्रतिकूल घटक Push Factors– इनके अन्तर्गत ये तत्व सम्मिलित किए जाते हैं-

  1. मूलस्थान में जनसंख्या वृद्धि की दर ऊँची होने से भूमि पर उसका बढ़ता हुआ भार
  2. जनसंख्या की तुलना में आर्थिक संसाधनों का अभाव
  3. प्राकृतिक संसाधनों का अधिक या अविवेकपूर्ण विदोहन के कारण ह्रास
  4. दैविक आपदाएँ- अनावृष्टि, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि एवं बाढ़े, भूकम्प और ज्वालामुखी के उद्गार
  5. समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक कारणों से होने वाले संघर्ष
  6. एक वर्ग का दूसरे वर्ग के प्रति भेद-भावपूर्ण व्यवहार
  7. समुदाय विशेष में प्रचलित विश्वासों, रीति-रिवाजों और व्यवहारों से विरक्ति
  8. व्यक्तिगत विकास, रोजगार, विवाह, आदि के लिए समुदाय विशेष में पर्याप्त अवसरों का अभाव
  9. वर्तमान सामाजिक एंवं आर्थिक ढाँचे के प्रति असन्तुटि
  10. संयुक्त परिवार प्रणाली का विखण्डन
Population Problems And Their Solutions

इन सब कारणों से एकाकी या सामूहिक रूप से प्रभावित होकर मानव प्रवास करता है।

अनुकूल घटक Pull or Favourable Factors– इनके अन्तर्गत एक व्यक्ति अपने जीवन को अधिक सुखी बनाने के लिए अन्यत्र जाने को आकर्षित होता है-

  1. व्यक्ति विशेष के लिए लाभदायक रोजगार के श्रेष्ठ अवसरों की उपलब्धता
  2. अधिक आय उपार्जन के श्रेष्ठ अवसरों की प्राप्ति
  3. इच्छित, विशिष्ट, शिक्षा, प्रशिक्षण एवं योग्यता बढ़ाने की सुविधाओं की उपलब्धि
  4. इच्छित अनुकूल वातावरण एवं श्रेष्ठ निवास की दशाएँ जलवायु, आवास व्यवस्था, आदि
  5. पराश्रयता जैसे माता-पिता के देशान्तर करने के कारण जाना अथवा पत्नी का पति के साथ जाना
  6. नवीन या विभिन्न क्रियाओं, वातावरण या व्यक्तियों से मिलने का प्रलोभन
  7. आमोदप्रमोद के साधनों की सुविधा

मानव गतिशील प्राणी है। जब किसी क्षेत्र में जनसंख्या का भार, उसके आर्थिक साधनों की तुलना में असन्तुलित हो जाता है, तो वह अपने मूल स्थान को छोड़कर अन्यत्र चला जाता है। प्रो. ब्लाश ने इस तथ्य को इस प्रकार स्पष्ट किया है, “जब मक्खियों का छत्ता पूरी तरह भर जाता है, तो मक्खियाँ उसे छोड़कर अन्यत्र चली जाती हैं। सभी कालों में ऐसा ही इतिहास रहा है”। इस सम्वन्ध में यह बात महत्वपूर्ण है कि मानव समय के लिए एक स्थान पर रुक जाता है और पुनः आगे बढ़ जाता है। इसी कारण कुछ ही क्षेत्र विशेष को छोड़कर मानव ने स्थायी रूप से कहीं भी निवास नहीं किया है।

स्थानान्तरण के प्रभाव Effects Migration

मानव के स्थानान्तरण का प्रभाव विशेषतः संस्कृति पर पड़ता है,किन्तु आर्थिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण होते हैं-

  1. जहाँ आवासी बहुसंख्यक और शक्तिशाली होते हैं, किन्तु देशवासी कम और शक्तिहीन तो उस देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है और वहाँ आवासियों की संस्कृति अपना आधिपत्य जमा लेती है। फिलीपीन में अमरीकी, दक्षिणी अफ्रीका में यूरोपीय तथा दक्षिणी अमरीकी लैटिन देशों में स्पेनी, पुर्तगाली और अंग्रेजी सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है और भारत, म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, इण्डोनेशिया देशों पर भी अंग्रेजी सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। आस्ट्रेलिया की मूल जाति यूरोपीय स्थानान्तरण से प्रायः विलुप्त होती जा रही है।
  2. जनसंख्या के स्थानान्तरण का आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है। थॉमस के अनुसार, “स्थान परिवर्तन करने वाले प्रायः बलिष्ठ नौजवान ही होते हैं, जबकि बाल, वृद्ध और दुर्बल, आदि सभी पीछे रह जाते हैं। नौजवान लोग जिस देश में पहुंचते हैं, उसे शक्तिशाली बनाकर उसका आर्थिक विकास कर देते हैं, जबकि पीछे बच्चे, बूढ़े और दुर्बल लोगों की कार्यक्षमता कम होने के कारण उनके अपने देश का आर्थिक विकास पिछड़ जाता है। अधिक इष्टपुष्ट एवं कुशल व्यक्तियों के कारण ही आस्ट्रेलिया, रूस के पूर्वी भाग, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका, अमरीका, आदि देशों का आर्थिक विकास सम्भव हो पाया है”।
  3. मानव स्थानान्तरण के कारण ही अनेक क्षेत्रों में नयी फसलें या पशु पहुँचे हैं। यूरोपीय प्रवासियों ने नवीन स्थानों पर कृषि की फसलें (जैसे, छोटे अनाज गेहूं एवं जौ, पशु जैसे, घोड़े, गाय, बैल, सूअर, भेड़ें एवं बकरियाँ, खट्टे तथा रसदार फल और अनेक प्रकार की सब्जियों का ज्ञान कराया। नयी दुनिया ने यूरोप तथा एशिया को नयी फसलें (जैसे, मक्का, तम्बाकू, टमाटर, रबड़, सिनकोना एवं मैनीओक, आदि) प्रदान की।
  4. नवीन मानव प्रजातियों का अन्तप्रजातीय सम्पर्क से विकास होता है।
  5. तकनीकी, शैक्षिक, भाषाई, धार्मिक, दार्शनिक विचारों का आदान प्रदान होता है।
  6. स्थानान्तरण से सामाजिक सुधार भी हुए हैं जैसे-मध्य अफ्रीका का यूरोपवासियों ने सामाजिक सुधार किया है।
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