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HISTORY

Home » जैन धर्म FULL UPSC NOTES IN HINDI

जैन धर्म FULL UPSC NOTES IN HINDI

  • Posted by ADITYA KUMAR MISHRA
  • Categories HISTORY, MATERIAL
  • Comments 3 comments

जैन धर्म

जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। ‘जैन धर्म’ का अर्थ है – ‘जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म’। जो ‘जिन’ के अनुयायी हों उन्हें ‘जैन’ कहते हैं। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ माने – जीतना। ‘जिन’ माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या ‘जिन’ कहा जाता है’। जैन धर्म अर्थात ‘जिन’ भगवान्‌ का धर्म।

जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। जैन ईश्वर को मानते हैं जो सर्व शक्तिशाली त्रिलोक का ज्ञाता द्रष्टा है पर त्रिलोक का कर्ता नही |

तीर्थंकर नाम चिन्ह जन्म स्थान

  1. श्री ऋषभनाथ जी – बैल (अयोध्या)
  2. श्री अजितनाथ जी – हाथी (अयोध्या)
  3. श्री संभवनाथ जी – घोड़ा (सावत्थी)
  4. श्री अभिनन्दन जी – बंदर (अयोध्या)
  5. श्री सुमतिनाथ जी – पक्षी (अयोध्या)
  6. श्री पद्मप्रभु जी – कमल (कौसाम्बी)
  7. श्री सुपार्श्वनाथ जी – स्वस्तिक (वाराणसी)
  8. श्री चंद्रप्रभु जी – चन्द्रमा (चन्द्रपुरी)
  9. श्री सुविधिनाथजी – मगरमच्छ (काकंदिपुर)
  10. श्री शीतलनाथ जी – कल्प वृक्ष (भद्रिलपुर)
  11. श्री श्रेयांसनाथ जी – गेंडा (सिंहपुर)
  12. श्री वासपुज्य जी – भैंसा (चम्पापुर)
  13. श्री विमलनाथ जी – शूकर (कम्पिला)
  14. श्री अनन्तनाथ जी – सेही (अयोध्या)
  15. श्री धर्मनाथ जी – (वज्र रत्नपुर)
  16. श्री शांतिनाथ जी – हिरण (हस्तिनापुर)
  17. श्री कुथुनाथ जी – बकरा (हस्तिनापुर)
  18. श्री अरनाथ जी – मछली (हस्तिनापुर)
  19. श्री मल्लिनाथ जी – कलश (मिथिलापुरी)
  20. श्री मुनिस्रुवत जी – कछुआ (राजगृही)
  21. श्री नमिनाथ जी – नीलकमल (मिथिलापुरी)
  22. श्री नेमिनाथ जी – शंख (सौरिपुर)
  23. श्री पार्श्व नाथ जी – सर्प (वाराणसी)
  24. श्री महावीर स्वामीजी – सिंह(क्षत्रिय कुंड)

जैनधर्म के सिद्धान्त

जैन धर्म के 5 मूलभूत सिद्धान्त हैं।

अहिंसा :

जीवन का पहला मूलभूत सिद्धांत देते हुए भगवान महावीर ने कहा है ‘अहिंसा परमो धर्म’। इस अहिंसा में समस्त जीवन का सार समाया है ; इसे हम अपनी सामान्य दिनचर्या में 3 आवश्यक नीतियों (1) कायिक अहिंसा (कष्ट न देना) ,(2) मानसिक अहिंसा (अनिष्ट नहीं सोचना) , (3) बोद्धिक अहिंसा (घृणा न करना) का पालन कर समन्वित कर सकते हैं।

सत्य

उचित व अनुचित में से उचित का चुनाव करना शाश्वत व क्षणभंगुर में से शाश्वत का चुनाव करना।

अचौर्य

चेतना के उन्नत शिखर से दिए गए भगवान महावीर के ‘ अचौर्य महाव्रत ‘ को हम संसारी जीव अपनी सामान्य बुद्धि द्वारा पूर्णतया समझ नहीं पाते। दूसरों की वस्तुएँ न चुराना ही इसका अभिप्राय मानते रहे हैं परन्तु भगवान अपनी पूर्ण जागृत केवलज्ञानमय अवस्था से इतना उथला संदेश नहीं दे सकते। इस महाव्रत का एक दूसरा ही गहरा प्रभावशाली आयाम है।

ब्रह्मचर्य

जब मनुष्य उचित — अनुचित में से उचित का चुनाव करता है एवं अनित्य शरीर-मन-बुद्धि से ऊपर उठकर शाश्वत स्वरुप में स्थित होता है तो परिणामतः वह अपनी आनंद रुपी स्व सत्ता के केंद्र बिंदु पर लौटता है जिसे ‘ ब्रह्मचर्य ‘ कहा जाता है।

अपरिग्रह

जो स्व स्वरुप के प्रति जागृत हो जाता है और शरीर-मन-बुद्धि को अपना न मानते हुए जीवन व्यतीत करता है उसकी बाह्य दिनचर्या संयमित दिखती है, जीवन की हर अवस्था में अपरिग्रह का भाव दृष्टिगोचर होता है तथा भगवान महावीर के पथ पर उस भव्यात्मा का अनुगमन होता है।

सात तत्त्व

जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए “जीव” शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है।

अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।

आस्रव – पुद्गल कर्मों का आस्रव करना

बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना

संवर- कर्म बन्ध को रोकना

निर्जरा- कर्मों को क्षय करना

मोक्ष – जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।

नौ पदार्थ

जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव, यह दो मुख्य पदार्थ हैं। आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं।

रत्नत्रय

सम्यक् दर्शन

सम्यक् ज्ञान

सम्यक् चारित्र

चार कषाय

क्रोध, मान, माया, लोभ यह चार कषाय है जिनके कारण कर्मों का आस्रव होता है।

चार गति

चार गतियाँ जिनमें संसरी जीव का जन्म मरण होता रहता है— देव गति, मनुष्य गति, तिर्यंच गति, नर्क गति। मोक्ष को पंचम गति भी कहा जाता है।

जैन धर्म की शाखाएं

दिगम्बर:-दिगम्बर साधु (निर्ग्रन्थ) वस्त्र नहीं पहनते है, नग्न रहते हैं और साध्वियां श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। दिगम्बर मत में तीर्थकरों की प्रतिमाएँ पूर्ण नग्न बनायी जाती हैं और उनका श्रृंगार नहीं किया है।ंबर समुदाय दो भागों विभक्त हैं।

तारणपंथ

परवार

श्वेताम्बर:-श्वेताम्बर एवं साध्वियाँ और संन्यासी श्वेत वस्त्र पहनते हैं, तीर्थकरों की प्रतिमाएँ प्रतिमा पर धातु की आंख, कुंडल सहित बनायी जाती हैं और उनका शृंगार किया जाता है।

श्वेताम्बर भी दो भाग मे विभक्त है:

देरावासी – यॆ तीर्थकरों की प्रतिमाएँ की पूजा करतॆ हैं.

स्थानकवासी – ये मूर्ति पूजा नहीँ करते बल्कि साधु संतों को ही पूजते हैं

स्थानकवासी के भी दो भाग हैं:-

बाईस पंथी

तेरा पंथी

धर्मग्रंथ

दिगम्बर आचार्यों द्वारा समस्त जैन आगम ग्रंथो को चार भागो में बांटा गया है –

प्रथमानुयोग

करनानुयोग

चरणानुयोग

द्रव्यानुयोग

महावीर

जन्म

भगवन महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है। इन सब नामों के साथ कोई कथा जुडी है। जैन ग्रंथों के अनुसार, 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था।

विवाह

इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ

वैराग्य

महावीर स्वामी के माता पिता की मृत्यु के पश्चात उनके मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, 30 वर्ष की आयु मे वैराग्य लिया. इतनी कम आयु में घर का त्याग कर ‘केशलोच’ के साथ जंगल में रहने लगे. वहां उन्हें 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।

ज्ञान और उपदेश

जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान महावीर ने उपदेश दिया। उनके 11 गणधर (मुख्य शिष्य) थे जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे। जैन ग्रन्थ, उत्तरपुराण के अनुसार महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नय आदि उपायों से वर्णन किया था।

मोक्ष

भगवान महावीर ने ईसापूर्व 527, 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। उनके साथ अन्य कोई मुनि मोक्ष नहीं गए | पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ से महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

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ADITYA KUMAR MISHRA

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I AM A UPSC ASPIRANT AND THOUGHT WRITER FOR MOTIVATION

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    3 Comments

  1. Vinay Kumar go d
    September 9, 2021
    Reply

    Thanks sir🙏

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