नई आर्थिक नीति UPSC NOTES IN HINDI

नई आर्थिक नीति

आजादी के बाद 1991 का साल भारत के आर्थिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इससे पहले देश एक गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। और इसी संकट ने भारत के नीति निर्माताओं को नयी आर्थिक नीति को लागू के लिए मजबूर कर दिया था ।नयी आर्थिक नीति के तहत निम्नलिखित कदम उठाए गए:

(I) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ब्याज दर का स्वयं निर्धारण: उदारीकरण नीति के तहत सभी वाणिज्यिक बैंकों ब्याज की दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे । उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित ब्याज की दरों को मानने की कोई बाध्यता नहीं होगी ।

(II) लघु उद्योग (एसएसआई) के लिए निवेश सीमा में वृद्धि: लघु उद्योगों में निवेश की सीमा बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गयी है, जिससे ये कंपनियों अपनी मशीनरी को उन्नत बनाने के साथ अपनी कार्यकुशलता में सुधार कर सकते हैं।

(III) सामान आयात करने के लिए पूंजीगत स्वतंत्रता: भारतीय उद्योग अपने समग्र विकास के लिए विदेशों से मशीनें और कच्चा माल खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगे।

(V) उद्योगों के विस्तार और उत्पादन के लिए स्वतंत्रता: इस नए उदारीकृत युग में अब उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता में विविधता लाने और उत्पादन की लागत को कम करने के लिए स्वतंत्र हैं। इससे पहले सरकार उत्पादन क्षमता की अधिकतम सीमा तय करती थी। कोई भी उद्योग इस सीमा से अधिक उत्पादन नहीं कर सकता था। अब उद्योग बाजार की आवश्यकता के आधार पर स्वयं अपने उत्पादन के बारे में फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं।

(VI) प्रतिबंधित कारोबारी प्रथाओं का उन्मूलन: एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथा (एमआरटीपी) अधिनियम 1969 के अनुसार, वो सभी कंपनियां जिनकी संपत्ति का मूल्य 100 करोड़ रूपये या उससे अधिक है, को एमआरटीपी कंपनियां कहा जाता था इसी कारण पहले उन पर कई प्रतिबंध भी थे, लेकिन अब इन कंपनियों को निवेश निर्णय लेने के लिए सरकार से पूर्वानुमति प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

महत्वपूर्ण शब्दावली

1- उदारीकरण औद्योगिक लाइसेंस और पंजीकरण को समाप्त करना: इससे पहले निजी क्षेत्र को एक नया उद्यम शुरू करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था। इस नीति में निजी क्षेत्र को लाइसेंस और अन्य प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया। निम्न उद्योगों के लिए लाइसेंस अभी भी आवश्यक है: (ए) परिवहन और रेलवे (बी) परमाणु खनिजों का खनन (सी) परमाणु ऊर्जा

(2) निजीकरण: साधारण शब्दों में, निजीकरण का अर्थ निजी क्षेत्रों द्वारा उन क्षेत्रों में उद्योग लगाने की अनुमति देना है जो पहले सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे। इस नीति के तहत कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया गया था। निजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें निजी क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) के मालिकाना हक का स्थानांतरण निजी हाथों में हो जाता है ।

निजीकरण का मुख्य कारण राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से पीएसयू का घाटे में चलना था। इन कंपनियों के प्रबंधक स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते थे इसी कारण उनकी उत्पादन क्षमता कम हो गई थी। प्रतिस्पर्धा/गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण कर दिया गया।निजीकरण के लिए उठाए गए कदम:

1. शेयरों की बिक्री:भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को सार्वजनिक और वित्तीय संस्थानों को बेच दिया, उदाहरण के लिए सरकार ने मारुति उद्योग लिमिटेड के शेयर बेच दिए । बेचे गए ये शेयर निजी उद्यमियों के हाथ में चले गए ।2. पीएसयू में विनिवेश: सरकार ने उन पीएसयू में विनिवेश की प्रक्रिया शुरू कर दी थी जो घाटे में चल रहे थे। इसका तात्पर्य साफ था कि सरकार इन उद्योगों को निजी क्षेत्र में बेच दिया। सरकार ने 30000 करोड़ रूपये की कीमत के उद्यमों को निजी क्षेत्र को बेच दिया।3. सार्वजनिक क्षेत्र का न्यूनीकरण: इससे पहले सार्वजनिक क्षेत्र को महत्व दिया जाता था और ऐसा माना जाता था कि यह औद्योगीकरण को बढ़ाने के साथ-साथ गरीबी को हटाने में भी मदद करता है। लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के ये पीएसयू नयी आर्थिक नीति के अनुरूप कम नहीं कर सके और लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहे थे और इसी कारण बड़ी संख्या में उद्योगों को निजी क्षेत्रों के लिए आरक्षित कर दिया गया था, पीएसयू की संख्या घटकर 17 से 3 कर दी गयी।(ए) परिवहन और रेलवे(बी) परमाणु खनिजों का खनन(सी) परमाणु ऊर्जा

(3) वैश्वीकरण: वैश्वीकरण का अर्थ वैश्विक या विश्व भर में फैलने से है, अन्यथा व्यापार को पूरी दुनिया में ले जाना है। वैश्वीकरण का अर्थ मोटे तौर पर विदेशी निवेश, व्यापार, उत्पादन और वित्तीय मामलों के संबंध में बाकी दुनिया के साथ घरेलू अर्थव्यवस्था को जोड़ना है ।वैश्वीकरण के लिए उठाए गए कदम:(I) आयात दरों में कटौती: आयात पर सीमा शुल्क लगाया गया और निर्यात पर लगाए गए शुल्कों को धीरे-धीरे घटाया गया तांकि भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक बनाया जा सके।(II) दीर्घकालिक व्यापार नीति: विदेशी व्यापार नीति को लंबी अवधि के लिए लागू किया गया ।(III) मुद्रा की आंशिक परिवर्तनशीलता: आंशिक परिवर्तनशीलता का अर्थ भारतीय मुद्रा को अन्य देशों की मुद्रा में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन करने से है । इसका सीधा फायदा यह हुआ कि अब विदेशी निवेशक या भारतीय निवेशक अपनी मुद्रा को आसानी से एक देश से दूसरे देश में ले जा सकते हैं ।(IV) विदेशी निवेश की इक्विटी सीमा में बढोत्तरी: कई क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40 से लेकर 100 फीसदी तक बढ़ा दी गई है। 47 उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में बिना किसी प्रतिबंधों के 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गई है । इस नीति के लागू होने से भारत में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढेगा जो कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती प्रदान करेगा ।

MY NAME IS ADITYA KUMAR MISHRA I AM A UPSC ASPIRANT AND THOUGHT WRITER FOR MOTIVATION

Related Posts

आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं सहित विभिन्न चुनौतियों के कारण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल रहा है। इन चुनौतियों के मुख्य कारण क्या हैं और इनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? चर्चा कीजिये। UPSC NOTES

परिचय: खाद्य मुद्रास्फीति का तात्पर्य समय के साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होने से है। इससे उपभोक्ताओं (विशेषकर समाज के गरीब और कमजोर वर्गों) की…

आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं सहित विभिन्न चुनौतियों के कारण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल रहा है। इन चुनौतियों के मुख्य कारण क्या हैं और इनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? UPSC NOTE

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के कारण भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: परिचय: खाद्य मुद्रास्फीति का तात्पर्य समय के साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों…

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए FDI में आई हालिया गिरावट के कारणों का विश्लेषण कीजिये। भारत में FDI बढ़ाने हेतु उपचारात्मक सुझाव दीजिये। UPSC NOTE

परिचय– प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) एक प्रकार का सीमा पार निवेश है जिसमें एक देश का निवेशक दूसरे देश के किसी उद्यम में स्थायी रुचि स्थापित करता…

खुला बाज़ार परिचालन (OMOs) क्या है तथा इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरें किस प्रकार प्रभावित होती हैं? UPSC NOTE

खुला बाज़ार परिचालन (OMOs) एक मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। OMOs में, केंद्रीय…

भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था लागू होने से कराधान संरचना में आमूल-चूल परिवर्तन आया है, लेकिन कुछ विसंगतियों के कारण इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है। चर्चा कीजिये UPSC NOTE

परिचय: वस्तु एवं सेवा कर (GST) को भारत की कर प्रणाली में बदलाव लाने वाला एक ऐतिहासिक परिवर्तन घोषित करते हुए लागू किया गया। GST, एक व्यापक…

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि विपणन की भूमिका और एक मजबूत कुशल विपणन प्रणाली प्राप्त करने में इसके सामने आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने, किसानों और समग्र अर्थव्यवस्था के लाभ तथा कृषि विपणन को बढ़ावा देने के लिये क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं? प्रासंगिक उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। UPSC NOTE

परिचय– खेत से कृषि उत्पादों को खरीदने, बेचने और ग्राहक तक वितरित करने की प्रक्रिया को कृषि विपणन कहा जाता है। इसमें बिचौलियों का एक जटिल नेटवर्क…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *