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Home » प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण की बाध्यता नहीं: सर्वोच्च न्यायालय FOR UPSC IN HINDI

प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण की बाध्यता नहीं: सर्वोच्च न्यायालय FOR UPSC IN HINDI

  • Posted by teamupsc4u
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सर्वोच्च न्यायालय ने 8 अप्रैल, 2009 को अपने एक फैसले में निर्णय दिया कि अधिकारी स्तर के पदों को भरने में होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण प्रदान करने की सरकार की संवैधानिक बाध्यता नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने भर्ती प्रक्रिया को धर्मार्थ कार्य से अलग किया और कहा कि पदों की भर्ती योग्यता एवं कौशलता के आधार पर होनी चाहिए ताकि देश की सेवा सही अर्थों में हो सके। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में पदों की नियुक्ति में प्रारंभिक परीक्षा स्तर पर आरक्षण देने से मना कर दिया था जिसके खिलाफ परीक्षा के आरक्षित कोटे के अभ्यर्थियों ने न्यायालय में याचिका दायर की थी।

Owner has right over mineral wealth subsoil: Supreme Court

नौंवी अनुसूची भी न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत: सर्वोच्च न्यायालय 

सर्वोच्च न्यायालय ने 11 जनवरी, 2007 को अपने नौ न्यायाधीशों की एक पीठ, जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई.के. सब्बरवाल, न्यायाधीश अशोक भान, अरिजीत पसायत, बी.पी. सिंह, एस.एच. कपाड़िया, सी.के. ठक्कर, पी.के. बालासुब्रमण्यम, अल्तमस कबीर एवं डी.के. जैन शामिल थे, में कहा कि कोई कानून महज नौंवी अनुसूची में शामिल होने से न्यायिक समीक्षा से नहीं बच सकता अर्थात नौंवी अनुसूची का भी न्यायिक पुनर्विलोकन किया जा सकता है। इस पीठ ने कहा कि ऐसे कानून जो 24 अप्रैल, 1973 को एवं उसके बाद नौंवी अनुसूची में शामिल किए गए उन सबकी संविधान के मूल भूत ढांचे एवं अनुच्छेद 14, 19, 20 एवं 21 में दिए गए मौलिक अधिकारों से प्रासंगिकता के आधार पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। 24 अप्रैल, 1973 के दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि इसी दिन सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में निर्णय दिया कि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है लेकिन संविधान के मूलभूत ढांचे को परिवर्तित नहीं कर सकती।

इसी समय से संविधान का मूल ढांचा (जो अपरिवर्तित है) संविधान संशोधन करने की परिधि बन गया।

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