भारतीय धन की निकासी , हिंदू महासभा की स्थापना UPSC NOTE

  • 1700 ई० में फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने भारत की उन्नत आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए हुए बंगाल को मिस्र से भी अधिक धनी बताया।
  • भारत की पुरानी स्वाबलंबी (Self-sufficient) अर्थव्यवस्था के संबंध में विचार रखते हुए कार्ल मार्क्स ने अपनी रचना भारत पर लेख में भारतीय बस्तियों को छोटे-छोटे प्रजातंत्र की संज्ञा दी।
  • बर्नियर के 200 वर्षों के बाद 1900 ई० में भारत की आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए विलियम डिग्बोई ने लिखा, 20वीं सदी के आरंभ में भारत में 10 करोड़ मनुष्य ऐसे हैं जिन्हें किसी भी समय पेट भर अन्न नहीं मिलता।
  • जॉर्ज विन्गेट के अनुसार 1835-51 ई० की अवधि में भारत से £ 4221611 प्रतिवर्ष की दर से निकासी हुई।
  • विलियम डिग्बोई के अनुमान के अनुसार 1757-1815 ई० के बीच निकासी की दर 50 से 100 करोड़ रु० प्रति वर्ष रही।
  • प्रो० होल्डर फरबर के अनुमान के अनुसार 1783-93 ई० के बीच निकासी की दर £19 लाख प्रतिवर्ष थी।
  • भारत में सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने 1868 ई० में भारतीय धन की निकासी की अपनी पुस्तक Indian Poverty & Un-British rule in India में व्याख्या की।
  • उपरोक्त पुस्तक में उस काल में भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र 20 रु० आंकलित की गई थी।
  • दादा भाई नौरोजी के एक अन्य आनुमान के अनुसार 1883-92 ई० की अवधि में 435 करोड़ 90 लाख की निकासी हुई।
  • 1901 ई० में प्रकाशित डी०इ०वाचा के अनुमान के अनुसार 1860-1900 ई० की अवधि में निकासी की वार्षिक औसत 30-40 करोड़ रुपयों के बीच रही।
  • पावलौव के अनुसार 1930-47 ई० की अवधि में 13-14 करोड़ में प्रतिवर्ष सिर्फ शुल्क (tribute) के रूप में प्राप्त हुए।
  • पावलौव के अनुमान के अनुसार शुल्क के रूप में अंग्रेजों को 1930-47 ई० के बीच मिले धन से प्रतिवर्ष भिलाई इस्पात संयंत्र जैसे 3 संयंत्र स्थापित हो सकते हैं।

हिंदू महासभा की स्थापना

  • अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। जिसकी स्थापना 9 अप्रैल, 1915 ई० को हुई।
  • इसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने हरिद्वार (प्रयाग) के कुंभ मेले में की।
  • इस संस्था में बी०एस०मुंजे एवं लाला लाजपतराय जैसे राष्ट्रवादी नेता थे।
  • हिन्दू महासभा ने अखंड भारत का नारा दिया।
  • 1930-32 ई० तक यह संगठन कट्टर संकीर्णता से अलग रहा तथा हिंदुओं के अधिकारों की मांग करते हुए अन्य समुदायों के साथ भारत को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील रहा।
  • सन् 1937 में जब हिन्दू महासभा काफी शिथिल पड़ गई थी और गांधी लोकप्रिय हो रहे थे, तब वीर सावरकर रत्नागिरि की नजरबंदी से मुक्त होकर आए।
  • वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी।
  • उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं – उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष

राजा मणीन्द्र चन्द्र नाथ — हरद्वार, १९१५

मदन मोहन मालवीय — हरद्वार, १९१६

जगत्गुरु शंकराचार्य भारती तीर्थ पुरी — प्रयाग, १९१८

राजा रामपाल सिंह — दिल्ली , १९१९

पण्डित दीनदयाल शर्मा — हरद्वार, १९२१

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती — गया, १९२२

लाला लाजपत राय — कोलकाता, १९२५

राजा नरेन्द्र नाथ — दिल्ली, १९२६

डॉ बाळकृष्ण शिवराम मुंजे — पटना, १९२७

नरसिंह चिंतामन केलकर — जबलपुर, १९२८

रामानन्द चटर्जी — सूरत, १९२९

विजयराघवाचार्य — अकोला, १९३१

भाई परमानन्द — अजमेर, १९३३

भिक्षु उत्तम — कानपुर, १९३५

जगद्गुरु शंकराचार्य डॉ कुर्तकोटी — लाहौर, १९३६

विनायक दामोदर सावरकर — कर्णावती (१९३७) , नागपुर (१९३८), कोलकाता (१९३९), मदुरा (१९४०), भागलपुर (१९४१), कानपुर (१९४२)

श्यामाप्रसाद मुखर्जी — अमृतसर (१९४३), बिलासपुर (१९४४)

लक्ष्मण बलवन्त भोपतकर — गोरखपुर (१९४६)

नारायण भास्कर खरे — कोलकाता (१९४९)

आचार्य बालाराव सावरकर — कर्णावती (१९८७)

 

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