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ECONOMICS

Home » भारतीय वित्त प्रणाली UPSC NOTES IN HINDI

भारतीय वित्त प्रणाली UPSC NOTES IN HINDI

  • Posted by ADITYA KUMAR MISHRA
  • Categories ECONOMICS, MATERIAL
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भारतीय वित्त प्रणाली

भारतीय वित्त प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें व्यक्तियों, वित्तीय संस्थाओं, बैंकों, औद्योगिक कम्पनिओं तथा सरकार द्वारा वित्त की माँग होती है तथा इसकी पूर्ति की जाती है।

भारतीय वित्त प्रणाली के दो पक्ष है, पहला माँग पक्ष तथा दूसरा पूर्ति पक्ष।

माँग पक्ष का प्रतिनिधित्व व्यत्तिगत निवेशक, औद्योगिक तथा व्यापारिक कम्पनिओं, सरकर आदि करते है, जबकि पूर्ति पक्ष का प्रतिनिधित्व बैंक, बिमा कंपनी, म्यूच्यूअल फण्ड, तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं करती है।

भारतीय वित्त प्रणाली को दो भागों में बांटा गया है-1 भारतीय मुद्रा बाजार 2 भारतीय पूंजी बाजार।

1. भारतीय मुद्रा बाजार को तीन भागों में बांटा गया है– असंगठित बाजार, संगठित बाजार, तथा मुद्रा बाजार का उप बाजार।

असंगठित बाजार के अंतर्गत देशी बैंकर, साहूकार, और महाजन आदि परम्परागत स्रोत आते है। ग्रामीण और कृषि साख में इसकी बहुत भूमिका होती है।

संगठित बाजार में भारतीय रिज़र्व बैंक शीर्ष संस्था है , इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं आती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक देश में मौद्रिक गतिविधियों के नियमन का नियंत्रण करता है, भारतीय रिज़र्व बैंक के दो कार्य है–1. सामान्य केंद्रीय बैंकिंग कार्य तथा 2. विकास संबंधी और प्रवर्तन कार्य ।

सामान्य केंद्रीय बैंकिंग कार्य के अधीन भारतीय रिज़र्व बैंक के निम्न कार्य किये जाते है–

1. करेंसी नोटों का निर्गमन, 2. सरकारी बैंकर का काम, 3. बैंकों के बैंकों का काम, 4. विदेशी विनिमय को नियंत्रित करना, 5. साख नियंत्रण एवं 6. आकड़ो का संग्रहण और प्रकाशन।विकास संबंधी और प्रवर्तन कार्य के अधीन भारतीय रिज़र्व बैंक के निम्न कार्य किये जाते है–

1. मुद्रा बाजार पर प्रतिबंधात्मक नियंत्रण, 2. बचतो को बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उत्पादन के लिए उपलब्ध कराना, 3. लोगों में बैंकिंग की आदत बढ़ाने के लिए प्रयास करना आदि।2. भारतीय पूंजी बाजार, मुद्रा बाजार से इस बात से भिन्न है कि मुद्रा बाजार अल्पावधि की वित्तीय व्यवस्था का बाजार है, जबकि पूंजी बाजार में मध्यम तथा दीर्धकाल के कोष का आदान–प्रदान किया जाता है।

भारतीय पूंजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जाता है– गिल्ड एंड बाजार और औधोगिक प्रतिभूति बाजार।

गिल्ड एंड बाजार में रिज़र्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्व–सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय–विक्रय किया जाता है।

गिल्ड एंड बाजार में सरकारी और अर्द्व–सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है।

औधोगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयर और डिबेंचर का क्रय– विक्रय किया जाता है।

यदि पूंजी बाजार में निजी निगम क्षेत्र के नये अंशों और डिबेंचर, सरकारी कंपनी की प्राथमिक प्रतिभूति या नयी प्रतिभूतियॉं तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बांड्स के निर्गमों का क्रय–विक्रय किया जाता है, तो ऐसे बाजार को प्राथमिक पूंजी बाजार कहते है।

द्वितीयक पूंजी बाजार के अंतर्गत स्टॉक एक्सचेंज में होने वाले क्रय–विक्रय तथा गिल्ड एंड बाजार में होने वाले क्रय–विक्रय आते है ।भारतीय पूंजी बाजार में पूंजी के स्रोत है:

अंश पूंजी, ग्रहण पत्र, मर्चेंट बैंक, म्यूच्यूअल फण्ड, लीजिंग कंपनी, जोखिम पूंजी कंपनी आदि।

महत्वपूर्ण तथ्य एवं शब्दावली

भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। रिज़र्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है, इसका मुख्यालय मुंबई में है। भारतीय रिज़र्व बैंक का लेखा वर्ष 1 जुलाई से 30 जून है।

भारत में मौद्रिक निति एवं साख नीति रिज़र्व बैंक द्वारा ही बनायी जाती है और लागू की जाती है।

भारत के विदेशी व्यापार से सम्बंधित आंकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एकत्रित तथा प्रकाशित होते है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक दर में कमी के कारण बाजार में तरलता में वृद्धि होती है।

सार्वजनिक बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक समूह सबसे बड़ा है जो कुल बैंक जमा का लगभग 29% का नियंत्रण किया जाता है।

राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण बैंक देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्ष संस्था है।

भूमि विकास बैंक मूलतः दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराने वाली संस्था है भूमि विकास बैंक का आरम्भ भूमि बंधक बैंक के रूप में 1919 ई. में हुआ था।

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना 1 फेब्रुअरी 1964 ई. में हुआ था।

माइक्रो फाइनेंस की बढ़ती हुई माँग एवं उपयोगिता को देखते हुए इसके विनियमित विकास बैंक के लिए राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक को नियामक निकाय बनाने का सरकार का विचार है।

भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण द्वारा बीमा कंपनी पर नियंत्रण किया जाता है और उनकी गतिविधियों पर नजर रखता है।मौद्रिक दरें:

1- सी.आर.आर.(नकद आरक्षण अनुपात):- सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है.

2-बैंक दर :- जिस दर पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है.

3- वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.):- किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर. कहते है..

4- रेपो रेट:- रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज मिलता है. रेपो रेट कम करने से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है.

5- रिवर्स रेपो रेट:- बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता है वह रिवर्स रेपो रेट है..

लीड बैंक योजना :- जिलों कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ १९६९ में किया गया. जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा.

निष्पादन बजट:- कार्यों के परिणामों या निष्पादन को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते है.

जीरोबेस बजट:- इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता है. भारत में इसे सर्वप्रथम “काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR)” में लागू किया गया और १९८७-८८ से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया.

आउटकम बजट :- इसके तहत प्रत्येक विभाग/ मंत्रालय के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है.

जेंडर बजट :- इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है.

प्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. अर्थात जिसके ऊपर कर लगाया जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है.

अप्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात जिस व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है.

राजस्व घाटा :- सरकार को प्राप्त कुल राजस्व एवं सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है.

राजकोषीय घाटा :- सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व, अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है अर्थात आय(प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है.

बॉण्ड अथवा डिबेंचर :- ऐसे ऋण पत्र होते है जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है.

प्रतिभूति :- वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर, डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया जाता है. बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग होता है.

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