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HISTORY

Home » मध्यकालीन भारत: खिलजी वंश 1200-1320 ई० 

मध्यकालीन भारत: खिलजी वंश 1200-1320 ई० 

  • Posted by ADITYA KUMAR MISHRA
  • Categories HISTORY
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13वी सदी के मध्य में तुर्की सुल्तानों द्वारा प्रारम्भिक विस्तार करने की लहर के शांत हो जाने के बाद, सुल्तानों का मुख्य उद्देश्य सल्तनत को दृड़ता प्रदान करना था। अत: खिलजी वंश की स्थापना तक सल्तनत की प्रारम्भिक सीमाओं में कोई विशेष वृद्धि नहीं हो पायी। 13वी सदी के अंत में तुर्की शासन को खिलजी वंश द्वारा हस्तगत कर लिया गया। इस समय क्षेत्रीय प्रसार एक राजनैतिक आवश्कता थी। पडोसी राज्य शक्तिशाली हो गए थे और उनके द्वारा किया गया कोई भी संगठित प्रयास एक राजनैतिक आवश्कता थी। पडोसी राज्य शक्तिशाली हो गए थे और उनके द्वारा किया गया कोई भी संगठित प्रयास दिल्ली सल्तनत के लिए संकट उत्पन्न कर सकता था। इसके अलावा अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में जहां एक और इन हमलो का कारण क्षेत्रीय प्रसार था वही वह धन एकत्रित करने कि और भी बड़ा। 14वी सदी ई के प्रारम्भ में इन दोनों कारको ने क्षेत्रीय विस्तार को गति प्रदान की।

खिलजी शासको की सरल विजय ने यह सिद्ध कर दिया था कि जातीय निरकुंशता और अधिक समय तक राज नहीं कर सकती थी। खिलजी सर्वसाधारण वर्ग के थे। इसके अतिरिक्त खिलजी वंश के शासक तुर्क थे परन्तु इनकी शासन व्यवस्था पिछले इल्बरी – तुर्कों की शासन – व्यवस्था से भिन्न थी। इन्होने भारतीय मुसलमानों को बड़े प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करने की प्रथा प्रारम्भ की। खिलजियो का विद्रोह मुख्यतया भारतीय मुसलमानों का उन तुर्कों के विरुद्ध विद्रोह था जो – दिल्ली के बजाय गौर और गजनी से प्रेरणा पाते थे। इन्होने कुलीनता के सिधांत के बजाय प्रतिभा को अधिक महत्व दिया। खिलजी शासको ने खासकर अलाउद्दीन ने राजनीति को धर्म से प्रथक रखने का प्रयास भी किया। इन सभी कारणों से खिलजियो द्वारा सत्ता पर नियंत्रण केवल एक वंश से दुसरे वंश का बदलाव नहीं रहा बल्कि भारतीय इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत थी। इन्ही सभी परिवर्तनों के आधार पर मोहम्मद हबीब ने खिलजी वंश की स्थापना को ‘खिलजी क्रान्ति’ के नाम से संबोधित किया है।

खिलजी वंश(1290-1320ई.)

  • फखरूद्धीन लिखित ‘तारीख-ए-फखरूदीन मुबारकशाही’ के अनुसार खिलजी वंश के सुल्तानों के पूर्वज तुर्की थे।
  • अफगानिस्तान के हेलमन्द नदी की घाटी के प्रदेश को ‘खलजी’ के नाम से पुकारा जाता था। जो जातियां उस प्रदेश में बस गई उन्हें खलजी पुकारा जाने लगा। जलालुद्दीन के वंशज 200 वर्षो से भी अधिक उस प्रदेश में रहे उनके रहन सहन, रीति-रिवाज अफगानों की भांति हो गये और भारत में उन्हें अफगान समझा जाने लगा परन्तु खिलजी वंश के सुल्तान मूल रूप से तुर्की ही थे।
  •  खिलजी महमूद गजनवी एवं मुहम्मद गोरी के समय भारत आए तथा दिल्ली के सुल्तानों के समय सेना एवं अन्य प्रशासनिक पदों पर नौकरी करने लगे तथा सल्तनत काल की अव्यवस्था का फायदा उठाकर सल्तनत के स्वामी बन बैठे। भारत के खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था।

जलालुद्दीन खिलजी(1290-1296ई.)

  • जलालुद्दीन फिरोजशाह खलजी बलबन का सर-ए-बहौदार(शाही अंगरक्षक) तथा कैकुबाद के शासन काल में आरिज-ए-मुमालिक(सेना मंत्री) तथा सेनापति के पद पर पहुंच गया था।
  • 1290 में फिरोजशाह खलजी ने कैकुवाद द्वारा बनवाऐ गए अपूर्ण किलोखरी(कूलागढ़ी) के महल में अपना राज्यभिषेक करवाया।
  • जलालुद्दीन एक वृद्ध शासक था अतः उसने अपने दुश्मनों के विरूद्ध दुर्बल नीति अपनायी।
  • सिद्धि मौला बाबा जो ईरान का रहने वाला था तथा जलालुद्दीन खिलजी के समय उनके प्रशंसकों और अनुयायियों की संख्या बड़ गई। जिससे षड़यंत्र का खतरा और विद्रोही गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण बेटे अर्कली खां को आदेश देकर मौला बाबा को हाथियों के पैरों से कुचलवाकर मरवा दिया।
  • अगस्त 1290 में बलबन के भतीजे और कड़ा मानिकपुर(इलाहाबाद) के सूबेदार मलिक छज्जू ने विद्रोह कर दिया। दिल्ली पर अधिकार करने हेतु जब वह बढ़ा तो सुल्तान के पुत्र अर्कली खां द्वारा बदांयू में वह पराजित हो गया। जललुद्दीन ने मलिक छज्जू को अर्कली खां की देखरेख में मुल्तान भेज दिया परन्तु सुल्तान के भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने इसका विरोध किया। सुल्तान ने कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बना दिया।
  • 1292 ई. में हलाकू(मंगोल नेता) के पौत्र अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ परन्तु मंगोल पराजित हुए उनमें से कुछ मंगोलों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया तथा दिल्ली के मुगलपुरा में बस गए ये नवमुसलमान कहलाये।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1292/93 में मालवा में स्थित भिलसा के किले पर आक्रमण करके बहुत सारा धन लूटा तथा उसने धन का 1/5 भाग सुल्तान के पास भिजवा दिया जिससे सुल्तान ने खुश हो कर अलाउद्दीन को अवध का भी सूबेदार बना दिया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 में महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में स्थित देवगिरि के यादव वंशी शासक रामचन्द्र देव के पुत्र शकंर देव(सिघल देव) को पराजित किया तथा काफी धन प्राप्त किया। अलाउद्दीन ने लुटे हुए धन का कोई हिस्सा सुल्तान को नहीं भेजा बल्कि सुल्तान को मानिकपुर बुलाकर स्वागत करने तथा धन देने की इच्छा प्रकट की।
  • सुल्तान जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी मानिकपुर गंगा पार करके अलाउद्दीन से मिला एक षड़यंत्र के द्वारा सैनिक मो. सलीम ने अलाउद्दीन के इसारे पर सुल्तान को घायल किया और सैनिक इख्तियारूद्दीन हुद के द्वारा सुल्तान की हत्या कर दी गई।
  • जलालुद्दीन को मारने में उलूग खां(अलाउद्दीन का भाई) भी शामिल था।

रूकनुद्दीन इब्राहिम शाह(1296ई.)

  • सुल्तान जलालुद्दीन फिरोजशाह की मृत्यु के बाद विधवा मलिका-ए-जहान ने अपने छोटे बेटे कद्र खां को रूकनुद्दीन इब्राहिम शाह के नाम से सुल्तान बनाया। इससे उसका बड़ा पुत्र अर्कली खां नाराज हो गया।
  • उल्लाउद्दीन ने इसका फायदा उठाकर इब्राहिम शाह को पराजित कर दिया तथा इब्राहिम शाह सपरिवार मुल्तान में अर्कली खां के यहां चला गया। अलाउद्दीन ने बलबन के लाल महल पहुंचकर अपना राज्यभिषेक करवाया।

अलाउद्दीन खिलजी (1290 – 1316 ई)


अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन खिलजी के उदारता और मानवतावाद के सिधान्तो को अस्वीकार कर दिया। उसने भयभीत करने के सिधांत को अपने शासन संचालन का आधार बनाया। इस सिधांत को अमीरों तथा आम जनता पर भी लागू किया। उसने बलबन के गुप्तचर विभाग को पुन: चालू किया जो उसे सभी षड्यंत्रों या साजिश की सूचना देते थे। उसके सामने कई चुनोतियां आयी जैसे:-

  • जलाली, अमीरों तथा जलालुद्दीन परिवार के अन्य सदस्यों से अपने आप को सुरक्षित रखना।
  • उत्तर-पश्चिम से मंगोल आक्रमण का भय।
  • रणथभौर और चितोढ़ जैसे शक्तिशाली राज्यों का राजपुताना में उदय।
  • सल्तनत के प्रशासनिक एवं आर्थिक आधारों को मजबूत करना तथा उलेमाओं तथा अमीरों के म्ह्त्वकांशाओ पर लगाम लगाना।
  • साम्राज्य विस्तार के साथ – साथ प्रशासनिक सुधार भी अनिवार्य थे।

अलाउद्दीन खिलजी ने इन चुनोतियो का सामना करने के लिए निम्न कार्य किये:-

  • अमीरों को एक – दुसरे से मिलने पर पाबन्दी लगा दी गई। आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित करने के लिए भी उन्हें सुल्तान की अनुमति लेनी पड़ती थी।
  • सभी पुण्यार्थ जमीने अर्थात इनाम या वक्फ में दी गई जमीने जब्त कर ली गई।
  • मदिरापान पर भी पाबंदी लगा दी गई और इन आदेशो का उल्लघन करने वालो को कठोर दंड दिए गए।

शासक बनने के साथ अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम अपनी स्थिति सुदृण करने के उपाय किये। अलाउद्दीन ने पुराने सामंतो को हटाकर अपने समर्थको को बड़े पद प्रदान किये तथा साथ ही साथ बड़े पदों पर तुर्कों के एकाधिकार को समाप्त करके भारतीय मुसलमानों को प्रभावशाली प्रशासनिक पद प्रदान किए। अलाउद्दीन ने हिन्दू राजाओ की भी सेवा प्राप्त की। अत: सत्ता पर तुर्कों का एकाधिकार उसने पूर्णत: समाप्त कर दिया।

अलाउद्दीन खिलजी द्वारा साम्राज्य विस्तार


अलाउद्दीन खिलजी एक महत्वकांशी शासक था। वह भी पूर्व शासको (सिकंदर, अशोक, समुद्र, गुप्त आदि) की भाँती विश्व विजय तथा एक नए धर्म की स्थापना भी करना चाहता था। उसने ‘सिकंदरुस्सानी’ की पदवी भी धारण की थी। मुख्य रूप से अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार संबंधी अभियान निम्न क्षेत्रों पर ही केन्द्रित रहा:

  • पश्चिम भारत (गुजरात)
  • मध्य भारत (मालवा और राजपूताना)
  • दक्षिण भारत
  • उत्तर भारत

उत्तर और दक्षिण भारत में उसने अलग – अलग नीतियां अपनाई। उत्तर भारत के राज्यों को जीतकर उसने अपने साम्राज्य में मिला लिया, जबकि दक्षिण भारतीय राज्यों पर उसने अप्रत्यक्ष नीति अपनायी। क्योंकि दक्षिण भारत पर उसके अभियान का मुख्य उदेश्य धन प्राप्ति था।

अलाउद्दीन का प्रथम अभियान गुजरात पर हुआ। यहाँ बघेल राजपूतो का शासन था। यहाँ का शासक कर्णदेव था। गुजरात अभियान के लिए नुसरत खां एवं खां को नियुक्त किया। वहां का रजा कर्ण देव, तुर्क आक्रमण का सामना करने में असमर्थ हुआ तथा वह देवगिरी (सीमावर्ती राज्य) भाग गया। अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। सूरत, कैम्बे और सोमनाथ के नगरो से अलाउद्दीन की सेना ने अत्यधिक धन प्राप्त किया। कैम्बे नगर में ही मलिक काफूर पकड़ा गया। जो बाद में अलाउद्दीन के दक्षिणी अभियानों का सेनानायक या प्रमुख बना।

मुल्तान और गुजरात पर अधिकार के पश्चात अलाउद्दीन ने राजपूत राज्यों को घेर लिया। इससे पूर्व राजपूताना के क्षेत्र ऐबक और इल्तुमिश द्वारा पहले जीते जा चुके थे किन्तु बाद में इन क्षेत्रों पर तुर्क सत्ता कमजोर हो गई थी। इसलिए अलाउद्दीन खिलजी का इन राज्यों पर अधिकार राजनीतिक महत्वकांशा की पूर्ति के लिए जरुरी था। अलाउद्दीन ने सबसे पहले जैसलमेर पर आक्रमण किया। यह आक्रमण गुजरात से लौटते समय किया गया क्योंकि इन्होने अलाउद्दीन की सेना को रोका था। गुजरात अभियान के बाद वापस लौटती हुई सेना में विद्रोह हो गया और कुछ सैनिक राजकोष से धन लेकर भाग गए।

अध्यादेश

  • अमीर वर्ग की भूमि/संपित्त जब्त, क्योंकि अधिक धन जमा हो जाने से अमीरों को विद्रोह करने का प्रोत्साहन मिलता है।
  • गुप्तचर प्रणाली का गठन, सभी नगरों एवं गावों में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया गया जिससे अमीरों की सभी सूचनाएं सुल्तान को मिल सके।
  • दिल्ली में शराब बंद कर दी, अधिकारियों के शराबी होने के कारण लोग भय रहित होकर षड्यन्त्रों की योजना बनाते हैं।
  • अमीरों के मेल मिलाप(भोज) पर प्रतिबन्ध, सामाजिक उत्सवों में अमीर और मलिक एक-दूसरे के घनिष्ठ हो जाते और सुल्तान के विरूद्ध संगठित होते हैं।
  • इस प्रकार इन आदेशों से वे इतने निर्धन तथा आतंकित हो गए थे कि उनमें विद्रोह का साहस और शक्ति नहीं रही।

दक्षिण भारत पर अभियान का क्रम

क्रमदेवगिरीतेलंगानाहोयसलमदुरा
राजधानीदेवगिरीबारंगलद्वारसमुद्रमदुरा
समकालीन शासकरामचन्द्रप्रतापरूद्र देवबल्लान तृतीयकुलशेखर

दक्षिण भारत का अभियान एवं अप्रत्यक्ष नियंत्रण का प्रयास


अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिणी अभियान को उदेश्य वस्तुत: धन की प्राप्ति थी। साम्राज्यवादी नीति के सबसे बड़ी उपलब्धि दक्षिणी राज्यों की विजय थी। अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था, जिसने दक्षिण भारतीय अभियान किया और इसमें सफलता भी प्राप्त की। दक्षिणी अभियान की विस्तृत जानकारी बरनी कृत तारीखे फिरोजशाह तथा अमीर खुसरो की रचना खजाइनुल फुतूह एवं इसामी केफुतुहुससलातीन से मिली है। इन अभियानों का संचालन मलिक काफूर द्वारा हुआ है।

दक्षिण भारतीय अभियान के समय दक्षिण में कई राज्य थे किन्तु उनमे चार प्रमुख थे:-

  • देवगिरि – यादव वंश (विध्य पर्वतमाला के दक्षिण में)
  • वारंगल – काकतीय वंश
  • द्वार समुद्र – होयसल वंश
  • माबर या मुद्रा – पांड्य वंश

इन राज्यों के परस्पर सम्बन्ध कटुतापूर्ण थे और वे बराबर आपस में संघर्षरत रहते थे। एक दुसरे केशक्ति को नियंत्रित करने के लिए वे अपने पडोसी तुर्क सेनाओ की सहायता लेते थे। दक्षिण भारत के स्थिति उत्तर भारत से भिन्न थी, यही कारण है कि दक्षिण के राज्य धनी होते हुए भी अपनी रक्षा करने में असमर्थ थे। इसी आपसी संघर्ष के कारण अलाउद्दीन दक्षिण राज्यों पर विजय प्राप्त कर सका।

दक्कन के सैनिक अभियान का नेतृत्व मलिक काफूर को दिया गया और इस अभियान में मदद करने के लिए आईन उल मुल्क मुल्तानी तथा अल्प खां को निर्देश भेजे गये। मलिक काफूर का पहला अभियान 1307-08 में देवगिरी के विरुद्ध हुआ। सत्ता पर अधिकार करने के पूर्व ही वहां के शासक रामचंद्र देव ने आत्मसमर्पण कर दिया और वार्षिक नजराना देने को तैयार हुआ तथा इसने अपनी पुत्री को विवाह अलाउद्दीन के साथ किया।

1309-10 ई० के बीच मलिक काफूर ने वारंगल पर आक्रमण किया। युद्ध का शीघ्र हे अंत हो गया क्योंकि रॉय रुद्रदेव आत्मसमर्पण करने को तैयार हो गया। मलिक काफूर ने पुन: द्वार समुद्र के किले को घेरा। द्वार समुद्र के शासक ने भी अपार धन और वार्षिक नजराना देने का वचन दिया।

तदुपरांत वह माबार के और अग्रसर हुआ और पांड्यो की राजधानी मदुरा पहुँच गया। लेकिन वहां का शासक सुन्दर पहले ही भाग गया। मलिक काफूर ने मदुरा राजकोष पर अधिकार कर लिया।

मंगोलों से संघर्ष


सर्वप्रथम 1302 में तारगी ने दिल्ली पर घेरा डाला। यह एकमात्र अवसर था जब मंगोल सेनाए राजधानी तक पहुँच आयी थी। 1305-06 में अलिबेग, तरतक और तारगी ने दिल्ली पर आक्रमण किया किन्तु असफल रहे। 1307 ई० में कुबक और इक़बालबंदा ने आक्रमण किया किन्तु असफल रहे।

सैनिक सुधार


अलाउदीन ने एक स्थायी सेना का गठन किया। सैनिको को भू-दान की जगह नगद वेतन देने की प्रथा प्रारम्भ की। इसने दाग एवं हुलिया कि प्रथा आरम्भ की। इसके अंतर्गत राज्य द्वारा सेना के घोड़ो पर मोहर का निशान लगा दिया जाता था। ताकि सैनिको द्वारा उन्हें बदल कर कमजोर घोडा न लाया जा सके। इसके साथ ही साथ सैनिको का हुलिया लिख लिया जाता था। इस प्रकार अलाउदीन खिलजी ने सेना की कार्य कुशलता में विशेष सुधार किया जिससे वह सम्पूर्ण भारत पर अपना साम्राज्य विस्तार कर सका।

कुतुबुद्दीन मुबाकर शाह खिलजी(1316-1320ई.)

यह अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र था। खुसरो खां एक हिन्दु था जो बाद में मुसलमान बना था। जिसका मुबारक शाह पर काफी प्रभाव था उसने सुल्तान से 40,000 अश्वरोही सैनिकों को संगठित करने की अनुमति ले ली। और बाद में मुबारक शाह की हत्या कर दी। और स्वंय सुल्तान बन नासिरूद्दीन खुसरो शाह की उपाधि धारण की।

नासिरूद्दीन खुसरो शाह(1320ई.)

खुसरो ने अलाउद्दीन और मुबारक शाह के काल के उन खिलजी अमीरों को मार डाला जिनकी निष्ठा पर उसे सन्देह था। खुसरो ने अपने सगे सम्बन्धियों को उच्च पद प्रदान किये। उसने मुक्त हस्त होकर धार्मिक नेताओं को धन दिया। उसने बहुत सारा धन सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को प्रदान किया। निजामुद्दीन औलिया नासिरूद्दीन खुसरो के गुरू थे। गाजी मलिकमुबारक शाह खिलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिम सीमाप्रांप्त(पंजाब) का गर्वनर था। गाजी मलिक एवं अन्य कुछ अमीरों ने खुसरो द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 5 सितंबर 1320ई. को गाजी मलिक और खुसरो शाह में युद्ध हुआ। जिसमें खुसरो की हार हुई और वह मारा गया। दूसरे दिन गाजी मलिक ने सीरी महल में प्रवेश किया। अगले दिन 8 सितंबर 1320ई. को सुल्तान बना। इस प्रकार गाजी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक नाम से दिल्ली का सुल्तान बना एवं दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना हुई।

नोट – खिलजी वंश का अन्तिम शासक नासिरूद्दीन सुसरो शाह था। खिलजी वंश में कुल 5 शासकों ने शासन किया।

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