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Home » राज्य के नीति निदेशक तत्व  FOR UPSC IN HINID

राज्य के नीति निदेशक तत्व  FOR UPSC IN HINID

  • Posted by teamupsc4u
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सामान्य परिचय

  • अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति-निदेशक तत्वों से संबंधित प्रावधान है ये अनुच्छेद मिलकर भाग 5 निर्मित करते हैं संविधान की इस नवीन विशेषता को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।
  • कल्याणकारी राज्य की बढती हुई स्वीकृति के साथ-साथ नीति निदेशक सिद्धांतों की संकल्पना सारे विश्व के संवैधानिक प्रशासन मेँ नवीनतम विकास है।
  • यदि राज्य इन्हें लागू नहीँ करता है, तो कोई व्यक्ति इसके लिए न्यायालय नहीँ जा सकता है।
  • राज्य के नीति-निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा अप्रवर्तनीय बनाने का उद्देश्य यही है कि इन्हें लागू करने के लिए राज्य के पास संसाधन हो भी सकते हैं और नहीँ भी।

नीति निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन

  • पहला ही संशोधन अधिनियम भूमि सुधारोँ के क्रियान्वयन के लिए था।
  • 4था,17वां, 25वां, 42वां तथा 44वें संशोधन अधिनियमों मेँ इसी का अनुगमन किया गया।
  • 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992), अनुच्छेद 40 (ग्राम पंचायत) के क्रियान्वयन की दिशा मेँ एक कदम था।
  • ताज महल जैसे ऐतिहासिक स्मारकोँ के संरक्षण का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को दिया गया है, जो अनुच्छेद 49 के प्रावधान का अनुपालन है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1992 के उत्तरार्ध मेँ पुरी मंदिर के क्षय से संरक्षण का कार्य हाथ मेँ लिया।
  • अनेक योजनायें, जैसे-एकीकृत बाल विकास सेवाएं, मध्यान भोजन योजना तथा मादक पेयोँ के प्रतिषेध हेतु कुछ राज्योँ की नीति (यथा-1993 मेँ आंध्र प्रदेश) अनुच्छेद-47 का ही अनुसरण है।
  • हरित क्रांति तथा जैव-प्रौद्योगिकी मेँ शोध का एक लक्ष्य कृषि व पशुपालन का आधुनिकीकरण भी है, जो कि अनुच्छेद 48 का अनुसरण है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986, वन्य-जीवन अधिनियम, राष्ट्रीय वन नीति-1988 आदि कुछ ऐसे कदम हैं, जो अनुच्छेद 48 (क) के क्रियान्वयन की दिशा मेँ लिए गए हैं।
  • 1995 मेँ केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण (National Enviromental trinunal) की स्थापना की।
Constitution of Parliament
  • जिला स्तर पर कुछ न्यायिक शक्तियों से कार्यपालिका के कार्य को संपन्न करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) मे किया गया संशोधन अनुच्छेद 50 का अनुसरण है।
  • अंतर्राष्ट्रीय शांति को सुनिश्चित करने के लिए भारत ने अनेक प्रयास किये हैं, यथा-संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना की कार्यवाहियों मेँ भाग लेना (सोमालिया, सिएरा लियोन आदि), गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रारंभ व नेतृत्व करना इत्यादि।

निदेशक तत्वो का महत्व

  • अनुच्छेद 37 घोषित करता है कि नीति निदेशक तत्व देश के शासन मेँ मूलभूत हैं।
  • चूँकि सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी है, नीति-निदेशक तत्व सभी आगामी सरकारोँ के लिए मार्गदर्शक के रुप मेँ कार्य करते हैं।
  • नीति निदेशक तत्व इन सरकारोँ की सफलता-विफलता का आकलन करने के लिए मानदंड प्रस्तुत करते हैं।

निदेशक तत्वो की उपलब्धियां

  • कर्मकारोँ के लिए कार्यस्थल पर मानवोचित दशाओं को बनाने के लिए कारखानों से संबंधित अनेक कानून हैं, अनुच्छेद 42।
  • कुटीर उद्योगोँ का संवर्धन सरकार की आर्थिक नीतियोँ के प्रमुख पक्ष रहा है और इस उद्देश्य के लिए खादी व ग्रामोद्योग आयोग भी है। इसके अतिरिक्त सिल्क बोर्ड, हथकरघा बोर्ड और नाबार्ड आदि का भी सृजन किया गया है।
  • शिक्षा, प्रशासन तथा अर्थव्यवस्था मेँ महिलाओं, अनुसूचित जाति, और अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़े वर्गो सहित कमजोर वर्गो को प्राथमिकता पूर्ण व्यवहार सरकार की कल्याणकारी नीति का समय एक भाग रहा है। इसमेँ नवीनतम है – मंडल आयोग की रिपोर्ट का क्रियान्वयन, जिसके लिए 1992 मेँ सर्वोच्च यायालय ने न्यायिक अनापत्ति प्रदान की-अनुच्छेद 46।

निदेशक तत्वो की विफलताएं

  • 1990 मेँ काम के अधिकार-अनुच्छेद 41, को मौलिक अधिकार बनाने के लिए विधेयक प्रस्तुत किया गया, लेकिन तत्कालीन सरकार चल नही पाई और विधेयक पारित नहीँ हो सका।
  • देश मेँ समान नागरिक संहिता-अनुच्छेद 44, के एक संवेदनशील विषय होने के कारण सरकार की यह स्थिति है कि जब तक विभिन्न संप्रदाय वर्ग आगे नहीँ आते और स्वयं समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन को नहीँ चाहते, तब तक इसे लागू करना वांछनीय नहीँ है। 1995 मेँ सर्वोच्च यायालय ने या निर्धारित किया कि समान नागरिक संहिता का क्रियान्वयन निश्चित रुप से किया जाना है। उसने समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिए हुई प्रगति पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट देने को कहा।

मौलिक अधिकार व निदेशक तत्वो मेँ अंतर

  • मौलिक अधिकार भारत के राजनीतिक प्रजातंत्र को आधार प्रदान करते हैं, जबकि नीति-निदेशक तत्व भारत के सामाजिक व आर्थिक प्रजातंत्र को।
  • मौलिक अधिकार राज्य के निषेधात्मक कर्तव्य के रुप मेँ है, अर्थात राज्य की निरंकुश कार्यवाहियोँ पर प्रतिबंध है। इसके विपरीत नीति-निदेशक सिद्धांत नागरिकोँ के प्रति राज्य के सकारात्मक कर्तव्य हैं।
  • जहाँ मौलिक अधिकार न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं, वही नीति-निदेशक सिद्धांत न्यायालय द्वारा अप्रवर्तनीय हैं।

उत्तरोत्तर जोड़े निदेशक सिद्धांत

  • 42वां संशोधन अधिनियम, 1976
  1. नयाय के लिए समान अवसर तथा निःशुल्क विधिक सहायता।
  2. पर्यावरण, वन तथा वन्य-जीवन का संरक्षण।
  3. उद्योग के प्रबंध मेँ कर्मकारोँ के भाग लेने का अधिकार।
  4. शोषण के विरुद्ध बच्चो के संरक्षण तथा स्वतंत्र व गरिमामय वातावरण मेँ उनके स्वस्थ विकास के अवसर प्रदान करना।
  • 44वां संशोधन अधिनियम, 1978
  1. राज्य व्यक्तियों तथा समूहों के बीच आय, प्रतिष्ठा सुविधाओं और अवसरोँ की असमानता को कम करने का प्रयास करेंगा।

स्मरणीय तथ्य

  • चम्पकम बनाम देसाई राजन 1951, कुरैशी बनाम बिहार राज्य बनाम कामेश्वर सिंह केशवानंद भारती केस 1973 केरल एजुकेशन दिलशाद आदि मुकदमोँ मेँ नीति-निदेशक तत्वों की तुलना मेँ मौलिक अधिकारोँ को वरीयता दी गई। इन मुकदमोँ मेँ सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष था कि मूल अधिकार किसी भी विधायी या कार्यपालिकीय आदेश से कम नहीँ किए जा सकते।
  • 42वेँ संविधान-संशोधन अधिनियम द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया कि राज्य के नीति-निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारो की तुलना मेँ वरीयता दी जाएगी।
  • मिनर्वा मिल बनाम भारत सरकार-1980, के वाद मेँ सर्वोच्च न्यायालय ने 42वें संशोधन के उक्त प्रावधान को अवैध घोषित कर दिया। इस वाद के निर्णय मेँ न्यायालय ने दोनो के विषय मेँ संतुलित एवं स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी।
  • तेज बहादुर सप्रू समिति भारतीय संविधान निर्माण के संबंध मेँ विचार करने वाली पहली ऐसी समिति थी, जिसने आयरलैंड के अनुकरण पर न्याय योग्य अधिकार तथा न्याय योग्य होने वाले अधिकार होने वाले अधिकार पर विचार व्यक्त किए गए थे।
  • जहां मौलिक अधिकारोँ के द्वारा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना की गई है, वहां नीति-निदेशक सिद्धांतों द्वारा आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की गई है। मौलिक अधिकारोँ का कानूनी महत्व है, जबकि निदेशक सिद्धांत नैतिक आदेश मात्र हैं।
Constitution of Parliament
  • संविधान संशोधन 24वीं, 25वीं, 29वीँ, 34वाँ और 42वां द्वारा निदेशक सिद्धांतोँ को मौलिक अधिकारोँ पर प्राथमिकता और वरीयता की स्थिति प्रदान की गयी, लेकिन इन संवैधानिक संशोधन के द्वारा भी निदेशक तत्वोँ को न्याय योग्य स्थिति प्रदान नहीँ की गयी।
  • अनुच्छेद 38 देश की अर्थव्यवस्था का स्वरुप निर्धारित करता है, जिसमें आर्थिक असमानता न्यूनतम करने शोषण से मुक्ति आदि जैसे प्रावधान हैं परन्तु इस दिशा में अभी बहुत उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है।
  • अनुच्छेद 44, पूरे देश मेँ एक समान नागरिक व्यव्हार संहिता तैयार करने की बात करता है पर अभी मुसलमानोँ के लिए पृथक उत्तराधिकार, विवाह, तलाक और अभिभावक संबंधी कानून हैं।
  • अनुच्छेद 45 मेँ देश मेँ निरक्षरता उन्मूलन के लिए अवस्था की गई थी, कि 10 वर्षोँ के भीतर 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी पर, 42 वर्षोँ के बाद भी बहुत बड़ी आबादी निरक्षर है।
  • राज्य के नीति-निदेशक तत्वों का उद्देश्य आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।
  • भारतीय संविधान मेँ नीति-निदेशक तत्व समाजवादी व्यवस्था स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं।
  • नीति-निदेशक तत्व भारतीय संविधान के निर्माताओं के मस्तिष्क और उद्देश्योँ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • अनुच्छेद 42, नागरिकोँ के नैतिक विकास के लिए मादक वस्तुओं के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश देता है, पर इस विषय मेँ सरकार का पक्ष बहुत ही अशोभनीय रहा है।
  • अनुच्छेद 51 मेँ कहा गया है कि राज्य लोक सेवाओं मेँ न्यायपालिका के बीच पूर्ण पृथक्करण करेगा यह अब तक संभव नहीँ हो सका है। आज भी विभिन्न राज्योँ मेँ कार्यकारिणी के पदाधिकारी न्याय संबंधी कार्य संपादित करते हैं।
राज्य के नीति निदेशक तत्व : एक दृष्टि में
राज्य के आदर्श के रूप में राज्यों को निर्देशराज्य के नीति निर्माण के लिए राज्यों को निर्देशनागरिकों के ऐसे सभी अधिकार जो न्याय निर्णय नहीं हैं
राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय अनुप्रमाणित होता हो, अभिवृद्धि का प्रयास करेगा-अनुच्छेद 38 (1)कुछ आर्थिक अधिकार सुनिश्चित करके आर्थिक लोकतंत्र और न्याय की स्थापना करनाजीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार-अनुच्छेद 39 (घ)
राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाएं, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट और सांस्कृतिक अवसर प्रदान कराने का प्रयास करेगा-अनुच्छेद 42 और 43भारत के नागरिकों के लिए एक सामान सिविल संहिता प्राप्त करना-अनुच्छेद 44पुरुषों और स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए लिए समान वेतन का अधिकार-अनुच्छेद 39 (3)च
राज्य पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का प्रयास करेगा-अनुच्छेद 47बच्चे के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करना-अनुच्छेद 45आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार-अनुच्छेद 39 (3) (च)
राज्य अपनी नीति का इस प्रकार प्रयोग करेगा की सुनिश्चित रूप से समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो, जिससे हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो, और आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेन्द्रण न हो-अनुच्छेद 39 (ख, ग)मद्य और मादक पेयों के औषधीय प्रयाजनों से भिन्न उपयोग का प्रतिषेध करना-अनुच्छेद 47बच्चों औरअल्पव्यस्क व्यक्तियों की शोषण से रक्षा पाने का और स्वतंत्र तथा गरिमामय वातावरण में स्वस्थ्य विकास के अवसर पाने का अधिकार-अनुच्छेद 39 (च)
राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की वृद्धि करने का प्रयास करेगा-अनुच्छेद 51कुटीर उद्योगों का विकास करना-अनुच्छेद 43समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता का अधिकार-अनुच्छेद 39 (क)
कृषि और पशुपालन को आधुनिक प्रणाली से संगठित करना-अनुच्छेद 48काम पाने का अधिकार-अनुच्छेद 41
उपयोगी पशुओं के वध का प्रतिषेध करना, जैसे-गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू तथा वाहक पशुबेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अन्य आभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने का अधिकार-अनुच्छेद 42
स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में ग्राम पंचायतों का गठन-अनुच्छेद 40कम की न्यायसंगत और मानवोचित दशा का तथा प्रसूति सहायता का अधिकार-अनुच्छेद 42
दुर्बल वर्गों के शिक्षा औए अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि करना और उनकी सामाजिक अन्याय से सुरक्षा-अनुच्छेद 46निर्वाह तथा मजदूरी का और कर्मकार के लिए शिष्ट जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए कम की दशाओं का अधिकार-अनुच्छेद 43
पर्यावरण का संरक्षण तथा वन्य जीवों की रक्षा-अनुच्छेद 48 (क)उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों के भाग लेने का अधिकार-अनुच्छेद 43 (क)
राष्ट्रीय या कलात्मक महत्व के स्थानों का संरक्षण और परिरक्षण-अनुच्छेद 49बच्चों का निःशुल्क औए अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार-अनुच्छेद 45
कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण-अनुच्छेद 50
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