वित्तीय आपातकाल क्या है? फाइनेंशियल इमरजेंसी

वित्तीय आपतकाल हमारे संविधान की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे देश या देश की किसी राज्य में आई वित्तीय दुर्व्यवस्था का सामना किया जा सके।

आर्टिकल ३६० में जो लिखा है उससे सरल भाषा में समझे तो यह निष्कर्ष आता है।

“अगर हमारे राष्ट्रपति जी को लगे कि कोई क्षेत्र या फिर पूरे देश में आर्थनैतिक मंदी बहुत नीचे तक चली गई है, या फिर सरकार के पास काम चलाने को धनराशि नहीं है, अथवा कहीं से लाने का साधन भी नहीं है या फिर ऐसी कोई आर्थिक दुर्व्यवस्था है, तब वो देश या प्रदेश में “ वित्तीय आपातकाल” घोषणा कर सकते हैं।

इस घोषणा के तहत –

  • सरकारी कर्मचारियों के वेतन राशि को घटाये जाने पर कोई विरोध नहीं हो सकता।
  • सारे आर्थिक बिल को राष्ट्रपति जी की मुहर लगती है।
  • सेवा कर तथा आयकर में सरकार बढ़ोत्तरी कर सकते हैं आदि।
  • सरकार बैंक तथा आरबीआई को कह कर ब्याज फिर रेपो रेट बढ़ा भी सकती हैं।

कहने की बात यह है कि सरकार तब वित्तीय अवस्था सुधारने हेतु जो भी पदक्षेप लेगी, उसका जनसाधारण विरोध नहीं कर सकती।

यहाँ पर ध्यान देना पड़ेगा कि सरकार आर्थिक रूप से निम्न वर्ग के लोगों ऊपर कोई भार नहीं डालेगी। बस मध्यम तथा धनी श्रेणी से भरपाई करेगी।

पवित्र भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इसमें तीन प्रकार के आपातकाल का उल्लेख है :-

1. राष्ट्रीय आपातकाल – अनुच्छेद 352.

2. राष्ट्रपति शासन – अनुच्छेद 356.

3. वित्तीय आपातकाल – अनुच्छेद 360.

चूँकि प्रश्न वित्तीय आपातकाल से संबंधित है अतः आइए समझते हैं वित्तीय आपातकाल को –

अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करता है- यदि वह इस बात से संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे भारत या उसके किसी भाग के वित्तीय स्थायित्व ( financial stability) या साख ( credit) के संकट में पहुँचने का खतरा है।

■ वित्तीय आपातकाल से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :-

• वित्तीय आपात की घोषणा की तिथि से दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति मिलना अनिवार्य है।

• यदि वित्तीय आपातकाल की घोषणा के दौरान लोकसभा विघटित हो जाए अथवा दो माह के भीतर इसे मंजूर करने से पूर्व लोकसभा विघटित हो जाए तो यह घोषणा पुनर्गठित लोकसभा की प्रथम बैठक के बाद तीस दिनों तक प्रभावी रहेगी, परंतु इस अवधि में इसे राज्यसभा को मंजूरी मिलना आवश्यक है।

• एक बार यदि संसद के दोनों सदनों से इसे मंजूरी प्राप्त हो जाए तो वित्तीय आपात अनिश्चित काल के लिए तब तक प्रभावी रहेगा जब तक इसे वापस न लिया जाए।

• वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव , संसद के किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता।

• राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय एक घोषणा द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा वापस ली जा सकती है। ऐसी घोषणा को किसी संसदीय मंजूरी की आवश्यकता भी नहीं है।

● वित्तीय आपातकाल के प्रभाव :-

• केंद्र की सेवा में लगे सभी अथवा किसी भी श्रेणी के व्यक्तियों और उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों के वेतन एवम् भत्तों में कटौती हेतु राष्ट्रपति निर्देश जारी कर सकता है।

• राज्य की सेवा में किसी भी अथवा सभी वर्गों के सेवकों के वेतन एवं भत्तों में कटौती की जा सकती है।

• राज्य विधायिका द्वारा पारित करके राष्ट्रपति के विचार हेतु लाए गए सभी धन विधेयकों अथवा अन्य वित्त विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा आरक्षित रखा जा सकता है।

• केंद्र की आधिकारिक कार्यकारिणी का विस्तार हो जाता है और इसके तहत किसी राज्य को वित्तीय औचित्य सम्बन्धी सिद्धान्तों के पालन का निर्देश दिया जा सकता है।

फाइनेंशियल इमरजेंसी

VITIYA AAPATKAAL KYA HOTA H

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