विधानसभा के सदस्यों की योग्यता निरहर्ताएँ कार्यकाल वेतन एवं भत्ते , संसद एवं राज्य विधानमंडल की तुलना UPSC NOTE

विधानसभा के सदस्यों की योग्यताएं

अनुच्छेद 173 के अंतर्गत विधानसभा सदस्य के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की गई है –

  1. वह भारत का नागरिक हो |
  2. 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो |
  3. किसी न्यायालय द्वारा पागल दिवालिया न घोषित किया गया हो |
  4. संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अनुसार विधानसभा के लिए अयोग्य ना हो |

सदस्यों की निरहर्ताएँ 

अनुच्छेद 190 के अंतर्गत सदस्यता समाप्त हो सकती है

  1. यदि कोई सदस्य संसद तथा विधानसभा दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है |
  2. दो राज्यों के विधानमंडल का सदस्य बन जाता है |
  3. 60 दिन तक सदन की अनुमति के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा परंतु 60 दिन की उपयुक्त अवधि में किसी ऐसी अवधि को सम्मिलित नहीं किया जाएगा जिसके दौरान सत्रावसित या निरंतर 4 से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है |

विधानसभा का कार्यकाल

  • संविधान के अनुच्छेद 172 के अंतर्गत राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है इस निश्चित समय से पूर्व भी राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है |
  • आपातकालीन स्थिति में संघीय संसद कानून बनाकर किसी राज्य विधानसभा की अवधि अधिक से अधिक एक समय में 1 वर्षों तक बढ़ सकती है |
  • आपात स्थिति की समाप्ति के बाद जब बढ़ाई हुई अवधि केवल 6 माह तक लागू रह सकती है |

विधानसभा के वेतन एवं भत्ते 

  • विधान परिषद के सदस्यों को वही वेतन और भत्ते मिलते हैं जो राज्य विधानमंडल विधि द्वारा निर्धारित करें |

शपथ 

  • जहां संसद सदस्य राष्ट्रपति या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं (अनुच्छेद 99) वहीं राज्य विधानसभा सदस्य राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं | (अनुच्छेद 188)

संसद एवं राज्य विधानमंडल की तुलना

संसद एवं राज्य विधानमंडल की तुलना

  • संसद एवं राज्य विधानमंडल की स्थिति धन विधेयक के संबंध में एक समान है अर्थात विधेयक के संबंध में उच्च सदन केवल अपनी सिफारिशें दे सकता है जिन्हें स्वीकार करना न करना निम्न सदन पर निर्भर कर सकता है |
  • धन विधेयक भिन्न अन्य सामान्य विधेयक संसद अथवा राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में शुरु किए जा सकते हैं| किसी एक सदन संसद के द्वारा पारित विधेयक से दूसरा सदन असहमत है अथवा 6 माह के भीतर लौटाता नहीं है तो उस विधेयक पर अंतिम रूप से विचार विमर्श करने एवं मतदान करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आयोजित की जा सकती है| ऐसी संयुक्त बैठक में दोनों सदनों की उपस्थिति एवं मत देने वाले सदस्यों की बहुसंख्या प्रभावी होगी तत्पश्चात विधेयक को राष्ट्रपति के सम्मुख अनुमोदनार्थ भेजा जाएगा| (अनुच्छेद 108)
  • राज्यों में साधारण विधेयक विधानमंडल के किसी भी सदन में पुनः स्थापित किए जा सकते हैं यदि विधेयक विधानसभा द्वारा पास कर दिया जाता है और विधानपरिषद विधेयक को स्वीकार करती है अथवा उसे 3 माह के भीतर पारित नहीं किया जाता है तो विधानसभा विधेयक को अन्य संशोधनों के साथ अथवा अन्य संशोधनों के बिना पुनः पारित कर सकेगी और उसे वहां विधान परिषद को पुनः भेज सकती है|  [अनुच्छेद 197(1)]
  • यदि विधान परिषद किसी विधेयक को दूसरी बार फिर अस्वीकार कर देती है अथवा संशोधन प्रस्तावित करती है अथवा विधेयक को परिषद में रखे जाने की तिथि से एक माह के भीतर पारित नहीं करती है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा और उसे अनुमोदन हेतु राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा अर्थात राज्य विधानमंडल में असहमति या गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक का कोई प्रबंध नहीं है |
  • संविधान के उपबंध उन्हीं विधायकों के संबंध में लागू होती है जो विधानसभा में प्रारंभ होते हैं परिषद में शुरू होने वाले विधेयकों के संबंध में इस प्रकार का कोई उपबंध नहीं है अतः यदि कोई विधेयक परिषद द्वारा पारित होकर विधानसभा को भेजा जाता है और विधानसभा विधेयक को अस्वीकार कर देती है तो विधेयक समाप्त हो जाएगा परिषद ऐसे विधेयक को द्वारा पारित नहीं कर सकती |

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