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HISTORY

Home » शक वंश UPSC NOTES IN HINDI

शक वंश UPSC NOTES IN HINDI

  • Posted by ADITYA KUMAR MISHRA
  • Categories HISTORY, MATERIAL
  • Comments 1 comment

शक वंश

शक प्राचीन आर्यों के वैदिक कालीन सम्बन्धी रहे हैं जो शाकल द्वीप पर बसने के कारण शाक अथवा शक कहलाये. भारतीय पुराण इतिहास के अनुसार शक्तिशाली राजा सगर द्वारा देश निकाले गए थे व लम्बे समय तक निराश्रय रहने के कारण अपना सही इतिहास सुरक्षित नहीं रख पाए। हूणों द्वारा शकों को शाकल द्वीप क्षेत्र से भी खदेड़ दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप शकों का कई क्षेत्रों में बिखराव हुआ।

शकों के बारे में जानने के इतिहास के स्रोत –

शकों के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी के लिये हमें चीनी स्रोतों पर निर्भर रहना पङता है। इनमें पान-कू कृत सिएन-हान-शू अर्थात् प्रथम हान वंश का इतिहास तथा फान-ए कृत हाऊ-हान – शू अर्थात् परवर्ती हान वंश का इतिहास उल्लेखनीय है।

इनके अध्ययन से यू-ची, हूण तथा पार्थियन जाति के साथ शकों के संघर्ष तथा उनके प्रसार का ज्ञान होता है। चीनी ग्रंथ तथा लेखक शकों की सई अथवा सई वांग कहते हैं।

भारत में शासन करने वाले शक तथा पल्लव शासकों का ज्ञान हमें मुख्य रूप से उनके लेखों तथा सिक्कों से होता है। शकों के प्रमुख लेख निम्नलिखित हैं-

  • राजवुल का मथुरा सिंह शीर्ष, स्तंभलेख।
  • शोडास का मथुरा दानपत्रलेख।
  • नहपानकालीन नासिक के गुहालेख।
  • नहपानकालीन जुन्नार का गुहालेख।
  • उषावदान के नासिक गुहालेख।
  • रुद्रदामन का अंधौ (कच्छ की खाङी) का लेख।
  • रुद्रदामन का गिरनार (जूनागढ) का लेख।

सातवाहन राजाओं के लेखों से शकों के साथ उनके संबंधों का ज्ञान होता है। लेखों के अतिरिक्त पश्चिमी तथा उत्तरी पश्चिमी भारत के बङे भाग से शक राजाओं के बहुसंख्यक सिक्के प्राप्त हुए हैं। कनिष्क के लेखों से पता चलता है, कि कुछ शक-क्षत्रप तथा महाक्षत्रप उसकी अधीनता में देश के कुछ भागों में शासन करते थे।

रामायण तथा महाभारत जैसे भारतीय साहित्यों में यवन, पल्लव आदि विदेशी जातियों के साथ शकों का उल्लेख होता है। कात्यायन एवं पतंजलि भी शकों से परिचित थे। मनुस्मृति में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

पुराणों में भी शक, मुरुण्ड, यवन जातियों का उल्लेक मिलता है।

कई अन्य भारतीय ग्रंथ, जैसे – गार्गीसंहिता, विशाखादत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम, बाण कृत हर्षचरित, राजशेखर कृत काव्यमीमांसा में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

जैन ग्रंथोंमें शकों के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है। जैन ग्रंथ कालकाचार्य कथानक में उज्जयिनी के ऊपर शकों के आक्रमण तथा विक्रमादित्य द्वारा उनके पराजित किये जाने का उल्लेख मिलता है।

शक वंश का इतिहास 100 ई. पू. ~ Ancient India

भारतीय साहित्य में शकों के प्रदेस को शकद्वीप अथवा शकस्थान कहा गया है।

पुराणों में इस जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था। वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए।

यूनानियों के बाद शक आए।शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे।

शकों की 5 शाखाएं थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी।

पहली शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी तक्षशिला ) , तीसरी शाखा ने मथुरा, चौथी शाखा ने पश्चिम भारत एवं पांचवी शाखा के उपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया।

58 ईसापूर्व में उज्जैन के विक्रमादित्य द्वितीय ने शकों को पराजित कर के बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।

शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा ने सबसे लंबे अरसे तक शासन किया।

शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था जिसका शासन गुजरात के बड़े भूभाग पर था। रुद्रदामन प्रथम ने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील (मौर्य द्वारा निर्मित) का जीर्णोद्धार किया।

भारत में शक राजा अपने को छत्रप कहते थे।

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ADITYA KUMAR MISHRA

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