श्वेत क्रांति एवं ऑपरेशन फ्लड नेशनल डेयरी प्लान

श्वेत क्रांति एवं ऑपरेशन फ्लड

  • दूध 1964-1965 में सघन पशु विकास कार्यक्रम पश्चिम (ICDP) नामक योजना प्रारंभ की गई जिसके परिणाम स्वरुप दुग्ध उत्पादन में व्यापार वृद्धि हुई इसे क्रांति का नाम दिया गया |
  • सघन पशु विकास कार्यक्रम में पशुपालन के सुधरे तरीकों को अपनाने के लिए पैकेज प्रदान किया गया|
  • बाद में श्वेत क्रांति की गति को और तेज करने के लिए ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम शुरू किया गया ऑपरेशन फ्लड के सूत्रधार डॉक्टर वर्गीज कुरियन थे |
  • विश्व में दुग्ध उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है अमेरिका का द्वितीय स्थान है भारत में विश्व की सबसे अधिक संख्या है |
  • भारत गांवों में बसता है। हमारी 72 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग्रामीण है तथा 60 प्रतिशत लोग कृषि व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
  • करीब 7 करोड़ कृषक परिवार में प्रत्येक दो ग्रामीण घरों में से एक डेरी उद्योग से जुड़े हैं। भारतीय दुग्ध उत्पादन से जुड़े महत्वपूर्ण सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार देश में 70 प्रतिशत दूध की आपूर्ति छोटे/ सीमांत/ भूमिहीन किसानों से होती है।
  • भारत में कृषि भूमि की अपेक्षा गायों का ज्यादा समानता पूर्वक वितरण है। भारत की ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में डेरी-उद्योग की प्रमुख भूमिका है।
  • देश में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इसे मान्यता दी गई है।
  • कृषि और डेरी-फार्मिंग के बीच एक परस्पर निर्भरता वाला संबंध है। कृषि उत्पादों से मवेशियों के लिए भोजन और चारा उपलब्ध होता है जबकि मवेशी पोषण सुरक्षा माल उपलब्ध कराने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के दुग्ध उत्पादों दूध, घी, मक्खन, पनीर, संघनित दूध, दूध का पाउडर, दही आदि का उत्पादन करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारत का अपना विशेष स्थान है और यह विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक और दुग्ध उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • भारत विश्व में सबसे कम खर्च पर यानी 27 सेंट प्रति लीटर की दर से दूध का उत्पादन करता है यदि वर्तमान रूझान जारी रहता है अगले 10 वर्षों में तिगुनी वृद्धि के साथ भारत विश्व में दुग्ध उत्पादों को तैयार करने वाला अग्रणी देश बन जाएगा।
  • रोजगार की संभावनाएं इस उद्योग के तहत सरकारी और गैर- सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार के अवसर मौजूद हैं।
  • राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) विभिन्न स्थानों पर स्थित इस क्षेत्र का प्रमुख सार्वजनिक प्रतिष्ठान है, जो कि किसानों के नेतृत्व वाले व्यावसायिक कृषि संबंधी कार्यों में संलग्न है।
  • देश में अब 400 से अधिक डेरी संयंत्र हैं जहाँ विभिन्न प्रकार के दुग्ध उत्पाद तैयार किए जाते हैं। उन्हें संयंत्रों के दक्षतापूर्ण संचालन के वास्ते सुयोग्य और सुप्रशिक्षित कार्मिकों की आवश्यकता होती है।

नेशनल डेयरी प्लान

  • इस कार्यक्रम को दुधारू पशुओं के नस्ल में सुधारों द्वारा अधिक दुग्ध उत्पादन क्षमता वाले पशुओं के विकास हेतु 19 अप्रैल 2012 को आरंभ किया गया है |
  • इस परियोजना का प्रथम चरण 6 वर्ष के लिए है इस परियोजना में 14 दुग्ध उत्पादक राज्यों को शामिल किया गया है यह है-उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा तथा केरल |
  • राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड को इसकी नोडल एजेंसी बनाया गया है विश्व बैंक समूह के अंतरराष्ट्रीय विकास संघ द्वारा इस परियोजना के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी |

राष्ट्रीय कृषि नवीनीकरण परियोजना एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

राष्ट्रीय कृषि नवीनीकरण परियोजना

  • भारत सरकार ने इसे लागू करने की जिम्मेदारी भारतीय कृषि अनुसंधान (ICAR) कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग(DARE) कृषि मंत्रालय को सौंपी सितंबर 2006 में शुरू की गई |
  • इस योजना के परिणाम स्वरुप संगठनात्मक कार्य निपुणता, कार्यकुशलता, कृषि मूल्य श्रृंखला, गैर-लाभकृत क्षेत्रों में जीविका सुरक्षा, क्षमता निर्माण और मूल एवं नीति अनुसंधान में सकारात्मक परिवर्तन हुआ |
  • इस परियोजना का उद्देश्य कृषकों की आय में वृद्धि करना तथा कृषकों की आय में वृद्धि को कृषि विकास का मापदंड बनाना है |

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

  • कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 25,000 करोड़ रुपये के साथ इस योजना की शुरुआत की गई थी |
  • इस योजना के तहत केंद्रीय सहायता का 50% कृषि और संबंधित क्षेत्रों पर राज्य आयोजना व्यय के प्रतिशत से जोड़ा गया है इसके साथ ही इसे मनरेगा के साथ संयोजित किया गया है |
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का लक्ष्य कृषि एवं समवर्गी क्षेत्रों का समग्र विकास सुनिश्चित करते हुए 11वीं योजना अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना है।

योजना के प्रमुख लक्ष्य

  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना,
  • राज्यों को कृषि और समवर्गी क्षेत्र की योजनाओं के नियोजन व निष्पादन की प्रक्रिया में लचीलापन तथा स्वायतता प्रदान करना,
  • कृषि-जलवायुवीय स्थितियाँ, प्रौद्योगिकी तथा प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाएँ तैयार किया जाना सुनिश्चित करना,
  • यह सुनिश्चित करना कि राज्यों की कृषि योजनाओं में स्थानीय जरूरतों/फसलों/ प्राथमिकताओं को बेहतर रूप से प्रतिबिंबित किया जाए,
  • केन्द्रक हस्तक्षेपों के माध्यम से महत्वपूर्ण फसलों में उपज अंतर को कम करने का लक्ष्य प्राप्त करना,
  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में किसानों की आय को अधिकतम करना, और
  • कृषि और समवर्गी क्षेत्रों के विभिन्न घटकों का समग्र ढंग से समाधान करके उनके उत्पादन और उत्पादकता में मात्रात्मक परिवर्तन करना।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत प्रमुख क्षेत्र

  • गेहूँ, धान, मोटे अनाज, छोटे कदन्न, दालों, तिलहनों जैसी प्रमुख खाद्य फसलों का समेकित विकास,
  • कृषि यंत्रीकरण,
  • मृदा स्वास्थ्य के संवर्धन से संबंधित क्रियाकलाप,पनधारा क्षेत्रों के अन्दर तथा बाहर वर्षा सिंचित फार्मिंग प्रणाली का विकास और साथ ही पनधारा क्षेत्रों, बंजर भूमियों, नदी घाटियों का समेकित विकास,
  • राज्य बीज फार्मों को सहायता,
  • समेकित कीट प्रबंधन योजनाएँ,
  • गैर फार्म क्रियाकलापों को बढ़ावा देना,
  • मण्डी अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण तथा मण्डी विकास,
  • विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए अवसंरचना को मजबूत बनाना,
  • बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने संबंधी क्रियाकलाप तथा सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को लोकप्रिय बनाना,
  • पशुपालन एवं मात्स्यिकी विकाय क्रियाकलाप,
  • भूमि सुधारों के लाभानुभोगियों के लिए विशेष योजनाएँ,
  • परियोजनाओं की पूर्णता की अवधारणा शुरू करना,
  • कृषि/बागवानी को बढ़ावा देने वाले राज्य सरकार के संस्थाओं को अनुदान सहायता,
  • किसानों के अध्ययन दौरे,
  • कार्बनिक तथा जैव-उर्वरक एवं
  • अभिनव योजनाएँ।

बजट स्वीकृति

  • 11वीं पंचवर्षीय योजनावधि के दौरान इस योजना के लिए 25 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में रेशम उत्पादन और संबंध गतिविधियों का समावेश
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत वित्त पोषण की पात्रता के लिए सरकार ने रेशम उत्पादन और सम्बद्ध गतिविधियों का RKVY के तहत समावेश का फैसला किया है।
  • इसमें रेशम कीट के उत्पादन के चरण तक रेशम उत्पादन शामिल रहेगा और साथ ही कृषि उद्यम में रेशम कीट के उत्पादन व रेशम धागे के उत्पादन से लेकर विपणन तक विस्तार प्रणाली भी।
  • अब RKVY का लाभ रेशम उत्पादन विस्तार प्रणाली में सुधार, मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने, वर्षा से पोषित रेशम उद्योग को विकसित करने तथा एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए में लिया जा सकता है।
  • लाभ रेशम के कीड़ों के बीज बेहतर करने तथा क्षेत्र के मशीनीकरण के लिए होंगे। यह निर्णय बाजार के बुनियादी ढांचे के विकास तथा सेरी उद्यम को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करेगा।
  • गैर कृषि गतिविधियों के लिए परियोजनाएं हाथ में ली जा सकती हैं और भूमि सुधार के लाभार्थियों जैसे सीमांत व छोटे किसानों आदि को विशेष योजनाएं स्वीकृत कर रेशम कीट पालन किसान को अधिकतम लाभ दिया जा सकता है।

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