संसदीय कार्यवाही के साधन , संसद में विधायी प्रक्रिया UPSC NOTE

संसदीय कार्यवाही के साधन  

प्रश्नकाल  

तारांकित प्रश्न 

  • यह मौखिक प्रश्न होते हैं और इन प्रश्नों पर तारांक लगा होता है इनमें पूरक प्रश्न भी किया जा सकता है |
  • लोकसभा में 1 दिन में 20 तारांकित प्रश्न हो सकते हैं यह सदस्य केवल एक प्रश्न कर सकता है |
  • राज्यसभा में कुल तारांकित प्रश्न की कोई सीमा नहीं है (सामान्यता 1 दिन में 25 प्रश्न होते हैं) जबकि राज्यसभा का एक सदस्य अधिकतम तीन ऐसे प्रश्न पूछ सकता है |

अतारांकित प्रश्न 

  • इन पर तारांक नहीं लगा होता है तथा यह लिखित प्रकृति के होते हैं |
  • अतः मंत्रियों को इनका लेकर जवाब देना पड़ता है इस संदर्भ में पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं |
  • लोकसभा में 1 दिन में अधिकतम 230  प्रश्न पूछे जा सकते हैं जबकि एक सदस्य 4 प्रश्न कर सकता है राज्यसभा में अतारांकित प्रश्नों की कोई सीमा नहीं है |

अल्प सूचना प्रश्न 

    • यह अभिलंबनीय लोक महत्व  के  मामलों  से जुड़े होने से इनका उत्तर मंत्री को 10 दिन के भीतर देना पड़ता है |
    • यदि कोई मंत्री इस प्रकार के प्रश्न का उत्तर देने से मना करे तो अध्यक्ष उसे उत्तर देने का निर्देश दे सकता है |

  • अल्प सूचना प्रश्न सामान्यतः प्रश्नकाल के मध्य में रखे जाते हैं इनका उत्तर मौखिक में दिया जाता है सामान्यतः 1 दिन में एक ही अल्प सूचना प्रश्न सूची में शामिल किया जाता है |

गैर सरकारी (Non official)

  • सदस्यों से पूछे गए प्रश्न संसदीय नियम 40 के तहत किसी गैर सरकारी सदस्य से भी सांसद प्रश्न पूछ सकते हैं |
  • ऐसे प्रश्न सामान्यतः गैर सरकारी सदस्य द्वारा रखे गए प्रस्ताव विधेयक आदि से संबंधित होते हैं इस पर पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता प्रकृति लिखित होती है |

आधे घंटे की चर्चा  

  • तारांकित, अतारांकित, अल्प सूचना प्रश्न आदि से संबंधित किसी विषय पर आधे घंटे की चर्चा करवाना चाहता है तो उसे कम से कम 3 दिन पूर्व सूचना देनी पड़ती है |
  • 1 सप्ताह में एक सदस्य एक ही बार चर्चा करवा सकता है और किसी भी अधिवेशन में दो से अधिक चर्चाएं नहीं करवा सकता आधे घंटे की चर्चा के लिए चर्चा उठाने वाले सदस्य को अतिरिक्त 4 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है फिर भी इस पर अंतिम निर्णय अध्यक्ष क्या होता है आधे घंटे की चर्चा सोमवार बुधवार एवं शुक्रवार को 5:00 से 5:30 बजे के मध्य होती है और इसके बारे में उत्तर संबंधित मंत्री देता है

शून्यकाल  

  • प्रश्नकाल के बाद का एक घंटा 12:00 से 1:00 pm शून्यकाल होता है वस्तुतः पहले इसकी अवधि लंबी थी,  रवि राय ने 9वी लोकसभा के दौरान एक घंटा सुनिश्चित किया था | यह भारत की मौलिक देन है शून्य काल में कोई भी सदस्य बिना पूर्व सूचना दिए मंत्री से प्रश्न पूछ सकता है |

नियम 377 

    • अभी संसदीय प्रणाली को भारत की देन है यह भी ध्यानाकर्षण सूचनाओं की तहत एक सामान्य प्रक्रिया है इसमें भी मंत्री एक टिप्पणी देता है इसमें मतदान व विस्तृत चर्चा नहीं होती है |
    • नियम 377 के तहत सांसद मामले में जानकारी सीधी अध्यक्ष को देता है और इसे संसदीय कार्य सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है|

ध्यानाकर्षण सूचनाएं  

  • ध्यानाकर्षण सूचनाएं संसदीय प्रणाली को भारत की देन है इसकी शुरुआत 1954 से हुई थी यह एक सामने प्रक्रिया है अतः स्थगन प्रस्ताव की तरह इसमें विशेष प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है इसकी निम्न विशेषता है
  • वन 97 के अनुसार सदन का कोई भी सदस्य अध्यक्ष सभापति की पूर्व अनुमति क्या फिल्म बनी है लोग महत्व के मामले में इन सूचनाओं के तहत मंत्री से टिप्पणी व वक्तव्य मांग सकता है
  • कोई भी सदस्य 1 दिन में दो या अधिक सूचनाएं नहीं दे सकता है
  • ध्यानाकर्षण सूचनाओं के बारे में जानकारी सदस्यों को प्रातः 10:00 बजे तक महासचिव को देनी पड़ती है
  • एक ही विषय पर एक से अधिक सदस्यों द्वारा यह सूचनाएं लाई जा सकती है परंतु 1 दिन की कार्यसूची में अधिक से अधिक 5 ऐसी सूचनाएं शामिल हो सकती हैं
  • मंत्री की ऐसी सूचना की टिप्पणी पर वाद विवाद है ना ही मतदाता परंतु एक पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है |

अल्पकालीन चर्चाएं  

यह भी संसदीय प्रणाली को भारत की देन है जिसकी शुरुआत 1953 में की गई , इसकी निम्न विशेषताएं हैं |

    • नियम 193 के अनुसार चर्चा उठाने के लिए सदस्य को मामले का उल्लेख करते हुए महासचिव को सूचना देनी पड़ती है और ऐसी सूचना पर कम से कम दो और सदस्यों के हस्ताक्षर चाहिए |
    • अंतिम निर्णय अध्यक्षीय सभापति करता है कि मामला अविलंबनीय लोक महत्व का व चर्चा योग्य है या नहीं

  • सामान्यतः ऐसी चर्चाएं मंगलवार गुरुवार को केवल 2:30 बजे तक हो सकती हैं |
  • चर्चा के बाद इसमें मंत्री उत्तर देता है और इसमें मतदान नहीं होता है|

संसद में विधायी प्रक्रिया  

  • भारतीय संविधान में वैज्ञानिक विधि के लिए कुछ व्यवस्थाएं निश्चित की हुई है इन व्यवस्थाओं के अतिरिक्त वैधानिक प्रक्रिया के विषय में विस्तृत विवरण लोकसभा और राज्यसभा की विधि नियमों में अंकित है |
  • संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार वित्तीय विधेयक को छोड़कर कोई भी विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है विधेयकों को सामान्यतः तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है |

सरकारी व गैर सरकारी विधेयक  

  • सरकारी विधेयक मंत्री प्रस्तुत करते हैं, जबकि गैर-सरकारी विधेयक संसद के सामान्य सदस्य प्रस्तुत करते हैं गैर-सरकारी सदस्यों के अब तक 14 विधेयक पारित हुए हैं कुछ प्रमुख विधेयक निम्न हैं-

सरकारी व गैर सरकारी विधेयक के आधार पर वर्गीकरण

सामान्य वर्गीकरण, विशेष वर्गीकरण

1. सामान्य वर्गीकरण

  • साधारण विधेयक
  • वित्त विधेयक
  • संविधान संशोधन विधेयक

2. विशेष वर्गीकरण

    • मूल विधेयक
    • परिवर्तित विधेयक

  • समेकन विधेयक
  • अध्यादेश विधेयक
  • वित्त विधेयक
  • संविधान संशोधन विधेयक
  1. मुस्लिम वक्फ विधेयक (1952)
  2. भारतीय पंजीकरण विधेयक (1955)
  3. महिला बाल विधेयक (1954)
  4. उच्चतम न्यायालय अपीलीय क्षेत्राधिकार विस्तार विधेयक (1968)

विधेयकों का सामान्य वर्गीकरण  

  1. साधारण विधेयक जो संसद के सामान्य बहुमत से पारित होते हैं |
  2. वित्त विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं, वित्त विधेयक और धन विधेयक होते हैं उन्हें राज्यसभा केवल 14 दिन तक रोक सकती है |
  3. संविधान संशोधन विधेयक अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया के अंतर्गत पारित विधेयक |

विशेष विधेयक 

  1. मूल विधेयक जिसमें नए प्रस्ताव और विचारों का नीतियों का उपबंध होता है |
  2. संशोधन विधेयक इनका उद्देश्य वर्तमान अधिनियमों में संशोधन करना होता है |
  3. समेकन विधि इस प्रकार के विधेयक किसी एक विषय पर वर्तमान सभी विधेयकों को एकीकृत करते हैं |
  4. अध्यादेश विधेयक यह अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा जारी को अधिनियम में बदलने के लिए लाए जाते हैं |
  5. वित्त विधेयक धन से संबंधित राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं राज्यसभा में नहीं |
  1. संविधान संशोधन विधेयक अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया के साथ लाये जाते है व दो प्रकार के होते हैं |
  • संसद के ⅔ बहुमत से पारित किए जाते हैं
  • जो ⅔  बहुमत + आधे से अधिक राज्यों के विधान मंडलों के समर्थन से पारित होते हैं

उपरोक्त तीनों प्रकार के विधायकों को अधिनियम में परिवर्तन होने के लिए संसद के तीनों वचनों द्वारा दोनों सदनों से गुजरते हैं, चाहे सरकारी विधेयक हो या गैर सरकारी विधेयक संसद में प्रस्तुत होने के बाद दोनों में समान प्रक्रिया अपनाई जाती है परंतु मंत्रीमंडल की अनुमति केवल सरकारी विधेयकों पर ही लाई जाती है

प्रारूप तैयार करना वह मंत्रिमंडल में रखना  

    • सर्वप्रथम विभागीय मंत्रालय प्रस्ताव का प्रारूप तैयार करता है और इस पर विधि मंत्रालय व अटॉर्नी जनरल से परामर्श लेता है |
    • फिर वह इस प्रारूप को वह मंत्रिमंडल के समक्ष रखता है मंत्रिमंडल की अनुमति के बाद वह संसदीय महासचिव को विधेयक प्रस्तुत करने संबंधी सदन की तिथि की सूचना देता है |
    • कम से कम प्रस्तुत करने की तारीख से 7 दिन पूर्व महासचिव को सूचना देना जरूरी है |
    • साथ में विधेयक की 2 प्रतियां भी महासचिव को दी जाती हैं सचिव अध्यक्ष विभाग कार्यमंत्रणा समिति के परामर्श से विधेयक को प्रस्तुत करने संबंधी तिथि व समय का निर्धारण करता है |
    • कि जिस दिन विधेयक प्रस्तुत करना है, उसके 2 दिन पहले सदन के सभी सदस्यों को विधेयक की एक प्रति उपलब्ध कराना आवश्यक है |

प्रथम वाचन  

  • विधेयक प्रस्तुत करने से लेकर विधेयक के गजट में प्रकाशन तक की प्रक्रिया प्रथम वाचन में आती है |
  • सबसे पहले संबंधित मंत्री सदन में विधेयक प्रस्तुत करने की अनुमति अध्यक्ष से मांगता है सामान्यतः इस पर मौखिक सहमति दे दी जाती है व इस पर चर्चा नहीं होती |
  • परंतु विधायी क्षमता का प्रश्न उठने पर अध्यक्ष चर्चा की अनुमति दे देता है और इसमें अटॉर्नी जनरल संसदीय नियम 72 के तहत भाग ले सकता है |
  • इसके बाद विधेयक को मतदान के लिए रखा जाता है और मतदान में पारित होने के बाद उसे गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है |
  • यदि विधायी क्षमता का प्रश्न नहीं उठता है तो मौखिक अनुमति के बाद विधेयक को सीधे ही गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है निम्न प्रक्रिया में प्रथम वाचन में सदन की अनुमति आवश्यक नहीं है |

द्वितीय वाचन  

इसमें तीन चरण होते हैं

    • सबसे पहले विधि एक असामान्य चर्चा होती है तत्पश्चात चरण में प्रवर या संयुक्त समिति को विधेयक सौपा जाता है |
    • प्रवर यह संयुक्त समिति अस्थाई समितियां होती है, प्रवर समिति मैं केवल विधेयक पेश करने वाले सदन के सदस्य होते है |
    • जबकि संयुक्त समिति में दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा के क्रमश: 2:1 में सदस्य रहते हैं लेकिन संयुक्त समिति का अध्यक्ष विधेयक पास होने वाले सदन का होता है |

  • यह समितियां विधेयक पर खंडवार चर्चा कर अपना प्रतिवेदन सदन में पेश करती है समितियां विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव दे सकती है |
  • परंतु यह मंत्री पर निर्भर करता है कि वह सदन में विस्तृत चर्चा के लिए मूल विधेयक को रखता है यह समिति द्वारा संशोधित विधेयक को मंत्री चर्चा से पहले विधेयक को नई समिति को भी सौंप सकता है |
  • दूसरा सदन इसमें प्रथम सदन की भाँति तीन चरण या वचनों से विधायक को गुजरना पड़ता है |

तृतीय वाचन  

इसमें विधेयक पर मतदान होता है

  • राष्ट्रपति की अनुमति विधेयक को जब दोनों सदनों द्वारा पास कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है उसके हस्ताक्षर के बाद विधेयक कानून में बदल जाता है |

 

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