विश्व की प्रमुख जलसन्धियाँ एवं उनकी स्थितियाँ , दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ UPSC NOTE

विश्व की प्रमुख जलसन्धियाँ एवं उनकी स्थितियाँ

क्र.स. जलसंधि का नाम जिन्हें जोड़ती है स्थिति
1 मलक्का अंडमान सागर तथा चीन सागर इंडोनेशिया – मलेशिया
2 पाक जलसंधि पाक खाड़ी तथा बंगाल की खाड़ी श्रीलंका-भारत
3 सुंडा जलसंधि जावा सागर तथा हिन्द महासागर इंडोनेशिया
4 युकाटन जलसन्धि मैक्सिको की खाड़ी तथा कैरेबियन सागर मोक्सिको – क्यूबा
5 मेसिना भूमध्य सागर इटली – सिसली
6 ओरब्टो जलसन्धि एड्रियाटिक सागर एवं आयोनियम सागर इटली – अलबानिया
7 बाबा – एल – मडेब लाल सागर तथा अदन की खाड़ी यमन – जिबूती
8 कुक जल संधि दक्षिण प्रसान्त महासागर न्यूजीलैंड ( उत्तरी एवं दक्षिणी द्वीप )
9 मोजाम्बीक चैनल हिन्द महासागर मोजाम्बीक – मालागासी
10 नार्थ चैनल आयरिश सागर एवं अटलांटिक सागर आयरलैण्ड – इंगलैंड
11 टॉरेस जलसन्धि अराफुरा सागर एवं पापुआ की खाड़ी पापुआ न्यूगिनी – ऑस्ट्रेलिया
12 बास जलसन्धि तस्मान सागर एवं दक्षिण सागर तस्मान सागर एवं दक्षिण सागर
13 बेरिंग जलसन्धि बेरिंग सागर एवं चुकसी सागर अलास्का – रूस
14 बोनी फैसियो भूमध्य सागर कोर्सिका – सार्डीनिया
15 बास्पोरस जलसंधि काला सागर तथा मरमरा सागर तुर्की
16 डरडेनलेज़ जलसंधि मरमरा सागर एवं एजियन सागर तुर्की
17 डेविस जलसंधि बेफिन की खाड़ी एवं अटलांटिक महासागर ग्रीनलैंड – कनाडा
18 डेनमार्क जलसंधि उत्तरी अटलांटिक एवं आर्कटिक महासागर ग्रीनलैंड – आइसलैंड
19 डोबर जलसंधि इंग्लिश चैनल एवं उत्तरी सागर इंगलैंड – फ्रांस
20 फ्लोरिडा जलसंधि मैक्सिको की खाड़ी एवं अटलांटिक महासागर संयुक्त राज्य अमेरिका – क्यूबा
21 हारमुज जलसंधि फ़ारस की खाड़ी एवं ओमान की खाड़ी ओमान – ईरान
22 हडसन जलसंधि हडसन की खाड़ी एवं अटलांटिक महासागर कनाडा
23 जिब्राल्टर जलसंधि भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर स्पेन – मोरक्को
24 मैगलन जलसंधि प्रशांत एवं दक्षिण अटलांटिक महासागर चिली
25 मकास्सार जलसंधि जावा सागर एवं सेलीबीज सागर इंडोनेशिया
26 सुंगारू जलसंधि जापान सागर एवं प्रशांत महासागर जापान ( होकैडो एवं होन्शू द्वीप )
27 तातार जलसंधि जापान सागर एवं ओखोटस्क सागर रूस ( पूर्वी रूस एवं सखालीन द्वीप )
28 फोवेक्स जलसंधि दक्षिणी प्रशांत महासागर न्यूजीलैंड ( दक्षिणी द्वीप एवं स्टीवार्ट द्वीप )
29 फार्मोसा जलसंधि दक्षिणी चीन सागर एवं पूर्वी चीन सागर चीन – ताइवान

दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ

दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र का दस प्रतिशत भाग है।

इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।

नर्मदा अपवाह तंत्र

इस अपवाह तंत्र की मुख्य नदी नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय भारत की एक प्रमुख नदी है। यह एक भ्रंश घाटी में होकर बहती है और बाकी प्रायद्वीपीय नदियों के विपरीत अरब सागर में एश्चुअरी बनाते हुए गिरती है जबकि प्रायद्वीपीय भारत की ज्यादातर बड़ी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और डेल्टा बनाती हैं।

दक्षिण क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप

दक्षिण भारत अथवा प्रायद्वीपीय पठारी भाग पर प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।

अनुगामी अपवाह

जब कोई नदी धरातलीय ढाल की दिशा में प्रवाहित होती है तब अनुगामी अपवाह का निर्माण होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों का उद्भाव पश्चिमी घाट पर्वत माला में हैं तथा वे ढाल के अनुसार प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी अथवा अरब सागर में गिरती हैं और अनुगामी अपवाह का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

परवर्ती अपवाह

जब नदियाँ अपनी मुख्य नदी में ढाल का अनुसरण करते हुए समकोण पर आकर मिलती हैं, तब परवर्ती अपवाह निर्मित होता है। दक्षिण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से निकलकर गंगा तथा यमुना नदियों में मिलने वाली नदियाँ – चम्बल, केन, काली, सिन्ध, बेतवा आदि द्वारा परवर्ती अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।

आयताकार अपवाह

विन्ध्य चट्टानों वाले प्रायद्वीपीय क्षेत्र में नदियों ने आयताकार अपवाह प्रतिरूप का निर्माण किया है, क्योंकि ये मुख्य नदी में मिलते समय चट्टानी संधियों से होकर प्रवाहित होती हैं तथा समकोण पर आकर मिलती है।

जालीनुमा अपवाह

जब नदियाँ पूर्णतः ढाल का अनुसरण करते हुए प्रवाहित होती है तथा ढाल में परिवर्तन के अनुसार उनके मार्ग में भी परिवर्तन हो जाता है, जब जालीनुमा अथवा ‘स्वभावोद्भूत’ अपवाह प्रणाली का विकास होता है। पूर्वी सिंहभूमि के प्राचीन वलित पर्वतीय क्षेत्र में इस प्रणाली का विकास हुआ है।

अरीय अपवाह

इसे अपकेन्द्रीय अपवाह भी कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थान से निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित कहा जाता है। इसमें नदियाँ एक स्थानसे निकलकर चारों दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। दक्षिण भारत में अमरकण्टक पर्वत से निकलने वाली नर्मदा, सोन तथा महानदी आदि ने अरीय अपवाह का निर्माण किया गया है।

पादपाकार अथवा वृक्षाकांर अपवाह

जब नदियाँ सपाट तथा चौरस धरातल पर प्रवाहित होते हुए एक मुख्य नदी की धारा में मिलती हैं, तब इस प्रणाली का विकास होता है। दक्षिण भारत की अधिकांश नदियों द्वारा पादपाकार अपवाह का निर्माण किया गया है।

समानान्तर अपवाह

पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलकर पश्चिम दिशा में तीव्र गति से बढ़कर अरब सागर में गिरने वली नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह का निर्माण किया गया है।

तटवर्ती नदियाँ

भारत में कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है। राजस्थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं।

ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।

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