IAS Success Story : गांव के हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़ी सुरभि गौतम UPSC पास कर कैसे बनीं IAS अफसर, पढ़ें पूरी कहानी

अगस्त का महीना था। सतना (मध्य प्रदेश) के छोटे से गांव अमदरा में एक वकील-शिक्षिका दंपति के यहां बेटी पैदा हुई। गांवों के रूढ़िवादी परिवारों में बेटियों के हिस्से जश्न कम, पाबंदियां, हिदायतें और.

अगस्त का महीना था। सतना (मध्य प्रदेश) के छोटे से गांव अमदरा में एक वकील-शिक्षिका दंपति के यहां बेटी पैदा हुई। गांवों के रूढ़िवादी परिवारों में बेटियों के हिस्से जश्न कम, पाबंदियां, हिदायतें और नसीहतें ज्यादा आती हैं। जाहिर है, इस बेटी की पैदाइश पर भी ढोल-नगाडे़ नहीं बजने थे, लेकिन दो लोग आह्लादित थे। उनका दांपत्य जीवन जो महक उठा था। इसलिए उन्होंने नाम रखा- सुरभि! सुरभि गौतम की खुशकिस्मती यह थी कि माता-पिता, दोनों शिक्षा का मोल समझते थे। परिवार के अन्य बच्चों की तरह गांव के सरकारी स्कूल में सुरभि का भी दाखिला हुआ। वह हिंदी माध्यम स्कूल था। शुरू से ही सुरभि कमाल करती रहीं, मगर परिवार के ज्यादातर सदस्यों के लिए यह कोई खास बात नहीं थी।

मध्य प्रदेश बोर्ड के स्कूलों में पांचवीं में भी बोर्ड परीक्षा होती है। परिणाम आने पर टीचर ने सुरभि को बुलाया और पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘आपको गणित में शत-प्रतिशत अंक मिले हैं। मैंने बोर्ड परीक्षा में आज तक किसी को सौ में सौ पाते नहीं देखा। शाबाश! आगे आप बहुत अच्छा करोगी।’ ये जादुई शब्द थे, जो सुरभि के दिमाग में नक्श हो गए। शिक्षिका ने अपना मूल धर्म निभा दिया था। इसके बाद सुरभि पढ़ाई के प्रति और गंभीर हो गईं। इसी बीच उनके जोड़ों में रह-रहकर दर्द उठने लगा था, पर वह उसे नजरअंदाज करती रहीं। धीरे-धीरे दर्द पूरे शरीर में फैल गया, और एक दिन वह बिस्तर से लग गईं।

स्थानीय डॉक्टर की सलाह पर माता-पिता सुरभि को लेकर जबलपुर भागे। वहां विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा, सुरभि को ‘रूमैटिक फीवर’ है। यह बीमारी हृदय को नुकसान पहुंचाती है और कुछ मामलों में मृत्यु भी हो जाती है। यह सुनकर माता-पिता स्तब्ध थे। डॉक्टर ने सुरभि को हर 15 दिन पर पेनिसिलीन का इंजेक्शन लगाने की सलाह दी। पेनिसिलिन लगाने को कई एमबीबीएस भी तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि यह जोखिम भरा होता है। गांव में कुशल डॉक्टर भला कहां मिलता? हर 15वें दिन सुरभि को जबलपुर जाना पड़ता। पर कमजोर सेहत, अभावों के बीच स्वाध्याय से सुरभि बढ़ती रहीं।

दसवीं बोर्ड में गणित व विज्ञान में शत-प्रतिशत अंक
दसवीं बोर्ड में उन्हें न सिर्फ गणित, बल्कि विज्ञान में भी शत-प्रतिशत अंक मिले। उन्हें राज्य के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों में गिना गया। अखबारों में उनके इंटरव्यू छपे। एक पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि आगे क्या करियर चुनेंगी, तो सुरभि को समझ ही नहीं आया कि क्या जवाब दें, क्योंकि इसके बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था। जब पत्रकार ने दोबारा पूछा, तब उनके मुंह से बेसाख्ता निकल आया- बड़ी होकर मैं जिला कलक्टर बनना चाहती हूं।

कलक्टर बनने का सपना
अखबार में खबर छपी- कलक्टर बनना चाहती हैं सुरभि! इस शीर्षक ने सुरभि के हृदय को छू लिया था, जबकि उस वक्त वह जानती भी नहीं थीं कि कलक्टर कैसे बना जाता है? 12वीं में विज्ञान में सर्वाधिक अंक के लिए उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम स्कॉलरशिप मिली। इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास करके वह भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज पहुंचीं, जहां ‘इलेक्ट्रॉनिक ऐंड कम्युनिकेशन्स’ विभाग में उन्हें दाखिला मिल गया। वह पहली लड़की थीं, जो उच्च शिक्षा के लिए अपने गांव की चौहद्दी से बाहर निकली थीं।

कमजोर अंग्रेजी के चलते कमरे में फूट-फूटकर रोईं
कॉलेज का पहला दिन था। भौतिकी की कक्षा में एक के बाद दूसरे छात्र फर्राटेदार अंग्रेजी में अपना परिचय दे रहे थे, इधर सुरभि सुन्न पड़ती जा रही थीं, वह तो अंग्रेजी बिल्कुल नहीं बोल सकती थीं। किसी तरह पूर्व के साथियों के शब्दों को जोड़-तोड़कर उन्होंने अपना परिचय तो दे दिया, मगर प्रोफेसर ने उसी वक्त उनसे भौतिकी का एक सवाल पूछ लिया- ‘टेल मी द डेफिनिशन ऑफ पोटेंशियल।’ सुरभि खामोश खड़ी रहीं। प्रोफेसर ने हैरानी से कहा- ‘आप वाकई 12वीं पास करके आई हैं? आपको एक बेसिक सवाल का उत्तर नहीं पता?’ यहां समस्या भौतिकी नहीं, अंग्रेजी थी। हॉस्टल के अपने कमरे में फूट-फूटकर रोने के बाद सुरभि ने मां-पापा को फोन कर घर लौटने की इच्छा जताई। तब पिता ने कहा- आ सकती हो। लेकिन यह याद रखना, ऐसा करके आप गांव की अन्य लड़कियों के लिए भी दरवाजा बंद कर रही हो। सुरभि को बात लग गई। उन्होंने तय कर लिया कि इस सेमेस्टर के अंत तक वह धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलकर रहेंगी, और पहले सेमेस्टर में वह न सिर्फ कॉलेज, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी की टॉपर रहीं।सुरभि बीस साल छह महीने की थीं, जब र्बीई की डिग्री हाथों में थी। इसके बाद उन्होंने जितनी भी परीक्षाएं दीं, सभी में उनका चयन हुआ। आईईएस परीक्षा में देश की पहली महिला टॉपर सुरभि गौतम को भारतीय रेलवे में काम करते हुए बहुत आनंद नहीं आ रहा था, तब मां ने अखबार में छपे उस शीर्षक का स्मरण कराया। सुरभि का सपना आईएएस अफसर बनने का था। 2016 की सिविल सर्विस परीक्षा में पहले प्रयास में 50वीं रैंक पाने वाली सुरभि कहती हैं- कोई भाषा दीवार नहीं होती, ठान लीजिए तो वह आपके अधिकार में होगी।

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