• HOME
  • DAILY CA
  • UPSC4U NOTES
    • HISTORY
    • POLITY
    • ECONOMICS
    • GEOGRAPHY
    • ESSAY
  • EXAM TIPS
  • PDF4U
    • UPSC BOOKS
    • UPSC MAGAZINE
    • UPSC NCERT
      • NCERT HISTORY
      • NCERT GEOGRAPHY
      • NCERT ECONOMICS
      • NCERT POLITY
      • NCERT SCIENCE
  • OPTIONAL
    • HINDI OPTIONAL
      • HINDI BOOKS
      • HINDI NOTES
    • HISTORY OPTIONAL
    • SOCIOLOGY OPTIONAL
  • MOTIVATION
  • ABOUT US
    • PRIVACY POLICY & TERMS OF SERVICE
  • CONTACT
  • Advertise with Us
UPSC4U
  • HOME
  • DAILY CA
  • UPSC4U NOTES
    • HISTORY
    • POLITY
    • ECONOMICS
    • GEOGRAPHY
    • ESSAY
  • EXAM TIPS
  • PDF4U
    • UPSC BOOKS
    • UPSC MAGAZINE
    • UPSC NCERT
      • NCERT HISTORY
      • NCERT GEOGRAPHY
      • NCERT ECONOMICS
      • NCERT POLITY
      • NCERT SCIENCE
  • OPTIONAL
    • HINDI OPTIONAL
      • HINDI BOOKS
      • HINDI NOTES
    • HISTORY OPTIONAL
    • SOCIOLOGY OPTIONAL
  • MOTIVATION
  • ABOUT US
    • PRIVACY POLICY & TERMS OF SERVICE
  • CONTACT
  • Advertise with Us

ECONOMICS

Home » कुटीर उद्योग धंधे एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों का महत्व

कुटीर उद्योग धंधे एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों का महत्व

  • Posted by teamupsc4u
  • Categories ECONOMICS
  • Comments 0 comment

कुटीर उद्योग धंधे का अर्थ एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योगों का महत्व:-

कुटीर उद्योग धन्धे का अर्थ:-

कुटीर उद्योग धन्धों से अर्थ उन कुटीर उद्योगों से है  जो पूर्णतया परिवार के सदस्यों की सहायता से आंशिक अथवा पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में कारीगरों के घरों पर ही चलाए जाते हैं। उद्योगों में विशेष पूंजी व श्रम की आवश्यकता नहीं होती। और ना ही इनमें कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। 

कुटीर उद्योग का महत्व:- भारत की अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योग के महत्व निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत दिया जा सकता है

कम पूंजी की आवश्यकता:- भारत जैसे निर्धन देश में व्यक्तिगत व्यवसाय को चलाने के लिए कुटीर उद्योग ही उपयुक्त है। क्योंकि कुटीर उद्योग को चलाने के लिए कम पूंजी की आवश्यकता होती है।

रोजगार की प्राप्ति:- कुटीर उद्योग रोजगार के अवसर प्रदान करके बेरोजगारी की समस्या को हल करने में सहायक होते हैं

देश का संतुलित विकास:- जिन क्षेत्रों में बड़े उद्योग धंधे स्थापित नहीं किए जा सकते। तो उन क्षेत्र में कम पूँजी के द्वारा कुटीर उद्योगों का विकास करके देश का विकास किया जा सकता है। 

गाँव का विकास:- गांव का सर्वागीण विकास कुटीर उद्योगों में ही निहित होता है। ग्रामीण जनता बेरोजगारी  से अधिक परेशान रहती है। इसलिए अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का विकास हो जाए तो ग्रामीण जनता के समय का भी सही उपयोग हो जाएगा और उन्हें काम के बदले पैसे भी मिल पाएंगे जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा

वर्ग संघर्ष से बचाव:- बड़े उद्योगों में मालिकों व श्रमिकों में संघर्ष बना रहता है। परंतु कुटीर उद्योगों में किसी भी प्रकार के वर्ग संघर्ष उत्पन्न होने का भय नहीं रहता है।

अकाल के समय सुरक्षा:- अधिकांश भारतीय जनता कृषि उत्पादन पर ही जीवन निर्वाह करती है अकाल के समय फसल नष्ट हो जाने पर कुटीर उद्योगों की सहायता से भरण पोषण किया जा सकता है।

विदेशी मुद्रा का अर्जन:- कुटीर उद्योगों में निर्मित कलात्मक वस्तुओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा सकता है। 

कला कौशल की उन्नति:- कुटीर उद्योग में हाथ से निर्मित वस्तुओं की प्रधानता रहती है। इसमें प्रत्येककलाकार को कुटीर उद्योगों के माध्यम से अपनी पूर्ण क्षमता प्रदर्शित करने के अवसर मिलते हैं और उसके बदले उन्हें पैसे मिलते हैं। प्राचीन काल में भारत के ढाका शहर की मलमल जो हाथ से निर्मित की जाती थी। विश्वविख्यात थी। इससे देश में कला कौशल की उन्नति होती है।

औद्योगिक क्रांति का अर्थ कारण एवं आविष्कारक तथा लाभ और उसके प्रभाव

औद्योगिक क्रांति का अर्थ कारण एवं आविष्कारक तथा लाभ और उसके प्रभाव

औद्योगिक क्रांति का अर्थ:- औद्योगिक क्रांति का साधारण अर्थ है- हाथों द्वारा बनाई गई वस्तुओं के स्थान पर आधुनिक मशीनों के द्वारा व्यापक स्तर पर निर्माण की प्रक्रिया को उद्योगिक क्रांति कहा जाता है।

औद्योगिक क्रांति का प्रारंभ

औद्योगिक क्रांति का प्रारंभ 18 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुई। क्योंकि 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने पर प्रांतीय एवं क्षेत्रीय शासकों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। इनमें बंगाल, बिहार व उड़ीसा अवध, हैदराबाद, मैसूर और मराठा प्रमुख थे। इसी सदी में यूरोप में फ्रांस और इंग्लैंड के के बीच विश्व में उपनिवेश हुआ व्यापार से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कई वर्षों तक निरंतर युद्ध होता रहा। इंग्लैंड और फ्रांस के राजा अपने अपने देश की कंपनियों का पूरा समर्थन करते और उन्हें मदद देते थे।
क्योंकि इंग्लैंड के पास उपनिवेशों के कारण कच्चे माल और पूंजी की अधिकता थी।

उपनिवेश का अर्थ होता है – जब एक देश दूसरे देश के लोगों पर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं। तब दूसरा देश पहले देश का उपनिवेश राज्य बन जाता है। और पहला राज्य दूसरे राज्य का सर्वेसर्वा मुख्य देश बन जाता है। और वह अपने उपनिवेशों के द्वारा राज्य के सभी संसाधनों का प्रयोग करके अपने हित में काम करता है। जिससे मुख्य देश उन्नति करता चला जाता है और दूसरा देश अवनति की ओर चला जाता है।

इंग्लैंड में सबसे पहले औद्योगिक क्रांति की शुरुआत सूती कपड़ा उद्योग से हुई। 

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारण:- 

18 वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के लिए इंग्लैंड की परिस्थितियां बहुत अनुकूल थी। समुद्र पार के व्यापार के द्वारा जिसमें दासों का व्यापार भी शामिल है। जिससे इंग्लैंड ज्यादा मुनाफा कमाने लगा और यूरोपीय देशों के व्यापार की होड़ में एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा जिसका कोई प्रतिबंध नहीं था।
इसके निम्न कारण इस प्रकार थे।

1. इंग्लैंड में खनिज संपदाओं जैसे- लोहे और कोयले के असीमित भंडार थे।

2. इंग्लैंड ने खोजी यात्राओं के द्वारा कई उपनिवेशस्थापित कर लिया था। और उपनिवेश से सरलता पूर्वक कच्चा माल प्राप्त हो सकता था।

3. नवीन भौगोलिक खोजों के फल स्वरुप थोड़े समय में ही इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और हालैंड आदि यूरोपीय देशों ने संसार के कोने-कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये इससे उन्हें सस्ते दर पर कच्चा माल व श्रमिक उपलब्ध हुए। और उन कच्चे मालों को अधिक उत्पादन के साथ बेचकर लाभ कमाने की मंडी मिल गई।

4. लाभ कमाने की इच्छा से यूरोप के देशों में औद्योगिक दिशा में अधिक औद्योगीकरण के फलस्वरूप व्यापारिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो गई। कि सभी औद्योगिक देश अधिक उत्पादन करने के लिए अधिक से अधिक माल बेचकर अधिक लाभ कमाने के प्रयास के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की स्थापना की।

5. इंग्लैंड की अनुकूल नीतियां यूरोप के देश युद्धों में फंसकर अपने जन धन की हानि कर रहे थे उस समय इंग्लैंड अपने उद्योगों के विकास व विस्तार में लगा हुआ था। और उद्योग व् व्यापार तथा विकास के लिए कानून भी बनाये।

6. इंग्लैंड में विशेषकर कृषि प्रणाली में पर्याप्त परिवर्तन हो गया था। जिसके कारण कृषि कार्य मशीनों द्वारा होने लगा।

7. कारखानों की स्थापना के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। यूरोप व इंग्लैंड के लोगों के पास काफी मात्रा में धन था। इसलिए उन्हें किसी से सहयोग लेने की आवश्यकता नही पड़ी।

8. यातायात एवं आवागमन की सुविधा के लिए मोटर इंजन के अविष्कार से यातायात में सुविधा हो गई।  

9. अंग्रेज इंग्लैंड के कारखानों से तैयार माल जैसे कपास, कपड़ा, चाय पत्ती, कपड़ा रंगने के लिए तैयार नील जहाजों के माध्यम से भारत और यूरोप में अधिक दाम में बेचते थे। उनके व्यापार में वृद्धि हुई। 

 अविष्कारक:-  
 1773 ईस्वी में एक अंग्रेज अविष्कारक जॉन के ने फ्लाइंग शटल नामक मशीन का आविष्कार किया इस मशीन के द्वारा एक व्यक्ति कम समय में अधिक कपड़ा बन सकता था।

1764 ई० में जेम्स हरग्रीव्ज ने सूत कातने वाली मशीन स्पिनिंग जेनी बनाई इस मशीन में 8 तकुवे लगे होते हैं। और इस मशीन से एक व्यक्ति 8 व्यक्तियों के बराबर सूत काटने में सक्षम था।

1769 ई० में रिचर्ड आर्क राइट ने वाटरफ्रेम नामक मशीन बनाने में सफलता प्राप्त की। इससे पक्का सूत काता जाता था। यह मशीन पानी की शक्ति से चलती थी।

1812 ई० में हेनरी बेल ने स्टीमर बनाया।

1814 ई० में जार्ज स्टीफेन्सन ने रेल इंजन का निर्माण किया।

1846 ई० में एलिहास हो ने सिलाई की मशीन का आविष्कार किया।

इस प्रकार परिवहन के साधन पक्की सड़क के निर्माण की विधि विद्युत तार, टेलीफोन आदि के अविष्कार हुए। जिन कार्यों को  मनुष्य करने में असीमित था और श्रम और पर्याप्त समय लगता था अब वह और कम से कम श्रम में पूरे हो जाते हैं।  

लाभ:-
1. नवीन आविष्कारों के फलस्वरुप नवीन तकनीकी का विकास हुआ जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ गई।

2. यातायात के साधनों का तेजी से विकास हुआ तथा मानव के लिए अब यातायात सरल और सुविधाजनक हो गया। 

3. नागरिकों का जीवन  निरंतर सुख सुविधा पूर्ण होता चला गया। 

4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई लोगों के लिए विदेशी व्यापार सुविधाजनक हो गया। 

5. विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर खोजे जारी रही जिससे कई नई प्रौद्योगिकी खोजें हुई।

औद्योगिक क्रांति का प्रभाव:-

यूरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों पर औद्योगिक क्रांति का प्रभाव पड़ा। वह प्रभाव औद्योगिक क्रांति ने यूरोप के सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया है।

आर्थिक प्रभाव:- विशाल कारखानों की स्थापना से उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई। समाज में लोगों के रहन-सहन का दर्जा ऊंचा होने लगा। आयात तथा संचार के साधनों में वृद्धि हुई। बड़े बड़े नगरों की स्थापना हुई। जनसंख्या में वृद्धि हुई। बैंकिंग सुविधाओं का विकास हुआ। 

सामाजिक प्रभाव:-  औद्योगीकरण से समाज में वर्ग भेद का उदय हो गया। समाज दो वर्गों में विभाजित हो गया- पूँजीपति तथा श्रमिक। 
पूंजीपतियों की दया पर आश्रित हो गये। धनी वर्ग के लोग महलों में रहने लगे। बढ़ती हुई जनसंख्या और नगरीकरण के कारण मजदूर वर्ग के रहने के लिए  आवास सुलभ नहीं हो पाए और चारों ओर गंदगी और अस्वस्थकारी वातावरण पैदा हो गया। 

राजनीतिक प्रभाव:-धनी वर्ग के लोग अपने औद्योगिक हितों की पूर्ति के लिए राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया वह धन के बल पर संसद में पहुंचने लगे और उन्हें अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मजदूरों के हितों की अपेक्षा करनी प्रारंभ कर दी। और श्रमिक वर्ग के लोगों ने पूंजीपतियों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध  आंदोलन प्रारंभ कर दिया। जिससे विवश होकर सरकार को फैक्ट्री एक्ट बनाने पड़े और मजदूरों को सुविधाएं भी प्रदान करनी पड़ी।

  • Share:
author avatar
teamupsc4u

Previous post

185 महत्वपूर्ण आर्थिक शब्दावली
February 25, 2023

Next post

औद्योगिक क्रांति का अर्थ कारण एवं आविष्कारक तथा लाभ और उसके प्रभाव
February 25, 2023

You may also like

ECONOMICS
भूमध्यरेखीय पछुआ पवन सिद्धान्त क्या है ?
3 March, 2023
INDIAN
भारत के राज्यों के उद्योग
28 February, 2023
INDIAN
भारतीय बैंकिंग प्रणाली और भारतीय रिज़र्व बैंक
28 February, 2023

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Search

Categories

DOWNLOAD MOTOEDU

UPSC BOOKS

  • Advertise with Us

UPSC IN HINDI

  • ECONOMICS
  • GEOGRAPHY
  • HISTORY
  • POLITY

UPSC4U

  • UPSC4U SITE
  • ABOUT US
  • Contact

MADE BY ADITYA KUMAR MISHRA - COPYRIGHT UPSC4U 2023

  • UPSC4U RDM
Back to top