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ECONOMICS

Home » पूंजी निर्माण, पूंजी उत्पादन अनुपात

पूंजी निर्माण, पूंजी उत्पादन अनुपात

  • Posted by teamupsc4u
  • Categories ECONOMICS, ECONOMICS NOTES
  • Comments 0 comment

पूंजी निर्माण

  • वह प्रक्रिया जिससे बचत व निवेश के द्वारा पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है, पूंजी निर्माण कहलाती है, आधुनिक आर्थिक विकास का मूल आधार पूंजी है |
  • भारतीय योजना आयोग के अनुसार “किसी भी देश का आर्थिक विकास पूंजी की उपलब्धता पर ही निर्भर करता है आय एवं रोजगार के अवसरों की वृद्धि तथा उत्पादन की कुंजी पूंजी के अधिकाधिक निर्माण में निहित है” यदि किसी देश में पूंजी निर्माण नहीं होता है, तो वह देश अपना आर्थिक विकास नहीं कर सकता है |
  • इस प्रकार यदि पूंजी निर्माण धीमी गति से होता है, तो आर्थिक विकास भी धीमी गति से होता है |पूंजी निर्माण से अर्थ, बचत करने एवं उस बचत को उद्योगों में विनियोजित करने से हैं |
  • पूंजी निर्माण की तीन आवश्यकताएं आवश्यक दशाएं होती हैं यथा बचत, बचत के गतिशील हेतु वित्तीय संस्थाएं और विनियोग पूंजी उल्लेखनीय है कि विनियोग ऐसा वह है जो उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाता है |

पूंजी उत्पादन अनुपात

  • उत्पादन अनुपात से अर्थ है, कि उत्पादन की एक इकाई के लिए पूंजी की कितनी इकाइयों की आवश्यकता है इतनी को दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि उपलब्ध पूंजी का निवेश करने पर उत्पादन में किस दर से वृद्धि होती है –
  • यदि ₹5000 की पूंजी विनियोजित करने पर उत्पादन ₹1000 के बराबर होता है तो पूँजी उत्पादन अनुपात 5:00 अनुपात एक कहलायेगा |

पूंजी उत्पाद अनुपात=कुल पूंजी/ कुल उत्पादन

  • जिस देश में यह अनुपात जितना कम होगा वह देश उतना ही अधिक आर्थिक विकास कर सकेगा |
  • पूंजी उत्पाद अनुपात के दो प्रकार होते हैं
  1. औसत पूंजी उत्पाद अनुपात
  2. वृद्धिमान पूंजी उत्पाद अनुपात
  • प्रथम पूंजी की कुल मात्रा एवं कुल उत्पाद के बीच अनुपात को प्रदर्शित करता है, जबकि वृद्धिमान पूंजी उत्पाद अनुपात पूंजी तथा उत्पाद की मात्रा में वृद्धि के बीच उपस्थित अनुपात को प्रदर्शित करता है |
  • उल्लेखनीय है कि चिरस्थाई उपभोक्ता वस्तुओं में अधिक निवेश ICOR को कम करता है, परंतु कृषि लघु उद्योगों और गैर स्थाई उपभोक्ता वस्तुओं में निवेश ICOR को कम करता है इसके अतिरिक्त निवेश के प्रयोग की कुशलता भी ICOR को प्रभावित करती है |

आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक विकास

आर्थिक संवृद्धि

  • आर्थिक समृद्धि से अभिप्राय निश्चित समय अवधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय में वृद्धि से है |
  • सामान्यतः यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तो हम कह सकते हैं कि आर्थिक समृद्धि हो रही है |
  • 70 के दशक में आर्थिक समृद्धि को तथा आर्थिक विकास को एक ही माना जाता था, लेकिन अब इसमें अंतर किया जाता है |
  • अब आर्थिक समृद्धि आर्थिक विकास के एक भाग के रूप में देखी जाती है साधन लागत पर व्यक्त वास्तविक घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति आय को हम सामान्यतः आर्थिक समृद्धि की आय के रूप में स्वीकार करते हैं |

आर्थिक विकास

  • आर्थिक विकास से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसके परिणाम स्वरुप देश के समस्त उत्पादन साधनों का कुशलतापूर्वक विदोहन होता है |
  • इसमें राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में निरंतर एवं दीर्घकालिक वृद्धि होती है तथा जनता के जीवन स्तर एवं सामान्य कल्याण का सूचकांक बढ़ता है अर्थात इस में आर्थिक एवं गैर आर्थिक दोनों चरों को शामिल किया जाता है |
  • आर्थिक चरणों में उपरोक्त वर्णित शामिल होते हैं तथा गैर आर्थिक आर्थिक चरों के अंतर्गत सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्त्रोतों के गुणात्मक परिवर्तन शामिल होते हैं |
  • इस प्रकार आर्थिक संवृद्धि एक मात्रात्मक संकल्पना है, जबकि आर्थिक विकास एक गुणात्मक |
  • पहले का संबंध राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर से जुड़ा है, जबकि दूसरे का संबंध राष्ट्रीय आय में मात्रात्मक वृद्धि के अलावा अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक ढांचे में परिवर्तन से होता है |
  • अतः कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास एक व्यापक संकल्पना या प्रक्रिया है जिस में सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का हिस्सा लगातार गिरता जाता है |
  • जबकि उद्योगों, सेवाओं, व्यापार, बैंकिंग व निर्माण गतिविधियों का स्तर बढ़ता जाता है इस प्रक्रिया के दौरान श्रम शक्ति के व्यावसायिक ढांचे में भी परिवर्तन होता है और उसकी दक्षता एवं उत्पादन में भी वृद्धि होती है |

आर्थिक संवृद्धि बनाम आर्थिक विकास

  • आर्थिक समृद्धि और आर्थिक विकास समान प्रतीत होने वाली अवधारणाएं है, परंतु तकनीकी दृष्टि से दोनों समान नहीं है, आर्थिक समृद्धि को दो रूपों में परिभाषित किया जा सकता है –
  1. सकल घरेलू उत्पाद में एक निश्चित अवधि में वास्तविक वृद्धि |
  2. एक निश्चित अवधि में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि |
  • वास्तव में, आर्थिक समृद्धि से आशय सकल घरेलू उत्पाद, (GDP) सकल राष्ट्रीय उत्पाद एवम प्रति व्यक्ति आय में निरंतर होने वाली वृद्धि से है| अर्थात आर्थिक समृद्धि उत्पादन की वृद्धि से संबंधित है |
  • आर्थिक समृद्धि में देखा जाता है कि राष्ट्रीय उत्पादन में सतत वृद्धि हो रही है अथवा नहीं| यदि राष्ट्रीय उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है, तो इसे संवृद्धि की संज्ञा दी जाएगी |
  • आर्थिक संवृद्धि से पता चलता है, कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न स्त्रोतों में मात्रात्मक रूप से कितनी वृद्धि हो रही है |
  • आर्थिक विकास का संबंध लोगों के कल्याण से है, इसमें गरीबी बेरोजगारी तथा असमानता के में कमी आती है, आर्थिक संवृद्धि आर्थिक विकास की पूर्व शर्त है |

आर्थिक विकास दर

आर्थिक विकास दर = गत वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष के जीडीपी में परिवर्तन (वृद्धि या कमी) / गत वर्ष का जीडीपी X 100

आर्थिक संवृद्धि दर

  • निबल राष्ट्रीय उत्पाद में परिवर्तन की दर ‘आर्थिक संवृद्धि दर’ कहलाती है इसको राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर भी कहा जाता है |

आर्थिक संवृद्धि दर = गत वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष के एनएनपी में परिवर्तन वृद्धि या कमी / गत वर्ष का एनएनपी X 100

  • भारत जैसे विकासशील देशों में आर्थिक संवृद्धि दर, आर्थिक विकास दर की तुलना में कम होती है |

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Economic Growth)

आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले कारकों को दो भागों में बांटा गया है –

आर्थिक घटक

  • प्राकृतिक संसाधन
  • पूंजी उत्पादन अनुपात
  • संगठन
  • श्रम शक्ति एवं जनसंख्या
  • तकनीकी प्रगति
  • वित्तीय स्थिरता
  • पूंजी निर्माण
  • आधारभूत संरचना
  • विकासात्मक नियोजन

गैर आर्थिक घटक

  • सामाजिक घटक
  • राजनीतिक घटक
  • धार्मिक घटक
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