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ECONOMICS NOTES

Home » व्यापार चक्र और मुद्रास्फीति UPSC NOTES IN HINDI

व्यापार चक्र और मुद्रास्फीति UPSC NOTES IN HINDI

  • Posted by ADITYA KUMAR MISHRA
  • Categories ECONOMICS NOTES, MATERIAL
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व्यापार चक्र

किसी भी अर्थव्यवस्था में व्यापार करने की परिस्थिति अलग – 2 होती है कभी तेजी और कभी मंदी का वातावरण होता है इन्ही तेजी और मंदी के चक्रीय प्रभाव से कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और विभिन्न कीमत स्तरों की तरंग की तरह उतार चढ़ाव आते रहते है जिनका हमारी अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है परन्तु ये एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग होते है व्यापार के इन्हीं उतार चढ़ाव को अर्थव्यवस्था की मंदी और तेजी कहा जाता है जब अच्छे व्यापार के समय में – नए व्यापार आते है – कीमतों में वृद्धि होती रहती है – बेरोजगारी भी कम होती है बुरे व्यापार चक्र में इनकें विपरीत परिस्थिति है!

व्यापार चक्र के पुरे प्रक्रम को हम 4 भागों में विभाजित करते है –

1 समृधि (Prosperity ) – यह व्यापार चक्र की सबसे प्रभावशाली तरंग के रूप में होती है जिसके अंतर्गत कुल रोजगार, कुल आय, कुल उत्पादन और कुल मांग सबसे ऊँचे स्तरों पर होती है कीमतें बढ़ती है परन्तु मजदूरी, ब्याज और वेतन आदि कम दर से बढ़ते है जिससे लाभ अधिक दर से बढ़ता है, जिससे शेयर और बांड की कीमतों में भी वृद्धि होती है, चारों तरफ एक आशावादी और विस्तारवादी वातावरण का निर्माण होता है और यह तब तक रहता है जब तक हम उस उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंच जाते जिसे हम उत्कर्ष (Upswing) या शिखर (peak) या तेजी (boom) की अर्थव्यवस्था कहते है!

2 सुस्ती (Recession) – सुस्ती का आरंभ भी तेजी के अंदर विद्यमान विरोधाभासों से होता है, जैसे – श्रम और कच्चे माल की समस्या, पूंजी की कीमत और बढ़ती आय – कीमत स्तर – लाभ स्तरों में विरोधाभास ! इसके अंतर्गत विस्तार वादी अवस्था कमजोर हो जाती है स्टॉक बाजार, बैंकिग प्रणाली और कीमतों के स्तरों में विरोधाभास के कारण गिरना आरम्भ होती है यह अपने फ़लने के तरीके के कारण तेज या मंदी हो सकती है परन्तु इसके आरम्भ होने पर यह स्वंय ही फैलती रहती है और अपना दायरा बढ़ाती रहती है

3 मंदी (Depression) – मंदी के अंतर्गत हमारी सभी आर्थिक कार्य-कलाप कमजोर पड़ जाते है हमारे उत्पादन और कीमत स्तर, आय और रोजगार तथा मांग, बिलकुल निचले स्तरों पर होते है, इसके साथ – 2 जमा और ब्याज दरों के निचले स्तरों पर होने के कारण साख का निर्माण नहीं हो पाता! किसी भी प्रकार का नया निर्माण ( उपभोग या पूँजी ) नहीं हो पाता है! अर्थव्यवस्था इस मंदी या गर्त में कितने समय रहती है यह उन विस्तारवादी शक्तियों पर निर्भर करता है जो बिलकुल कमजोर पड़ चुकी है

4 पुनरुथान ( Recovery ) – जब अर्थव्यवस्था पर मंदी हावी रहती है तो विस्तारवादी शक्तियां पुनरुथान या निचले मोड़ से या आरंभिक शक्तियों के रूप में अपना कार्य शरू करती है ये शक्तियां अंतर्जात या बाह्य हो सकती है, इस अवस्था में जब खराब हो चुकी वस्तुओं को बदलने के लिए स्थापन्न मांग उत्पन्न होती है जिसे हम एक आरंभिक बिंदु मान लेते है जिससे आरंभिक मांग – निवेश – रोजगार की मांग बढ़ती है और इसप्रकार एक व्यापार चक्र पूरा होता है

मुद्रास्फीति

मुद्रास्फीति वह स्थिति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है। यानी मुद्रास्फीति वह अवस्था है जब वस्तुओं की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर व महत्वपूर्ण वृद्धि होती है। मुद्रास्फीति की शर्तों के तहत, समय के साथ चीजों की कीमतें बढ़ जाती हैं।

मुद्रास्फीति, वह अवस्था है जिससे मुद्रा का मूल्य गिर जाता है और कीमतें बढ़ जाती है, आर्थिक दृष्टि से सीमित एवं नियंत्रित मुद्रास्फीति अल्प विकसित अर्थव्यवस्था हेतु लाभदायक होती है, क्योंकि इससे उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है, किन्तु एक सीमा से अधिक मुद्रास्फीति हानिकारक है। मुद्रास्फीति को अस्थायी तौर पर नियंत्रित करने के लिए मुद्रा–आपूर्ति कमी का प्रयोग किया जा सकता है।

मुद्रास्फीति पर नियंत्रण लाने हेतु जो प्रयास किये जाते है उनके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति की दर घटने लगती है और कीमतों में गिरावट आती है तथा रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसे वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन के रूप में मापा जाता है। कुछ विकासशील देशों ने केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीति उपकरणों का उपयोग करके 2-3% की मुद्रास्फीति दर को बनाए रखने का प्रयास किया है। मौद्रिक नीति का यह सरल रूप मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के रूप में जाना जाता है।

मुद्रास्फीति के कारण:

माल की कमी के कारण: माल की कमी के कारण माल की मांग में वृद्धि होगी, जिससे कीमतों में बढ़ोतरी होगी। वस्तुओं की मांग के परिणामस्वरूप, कंपनियां कीमतें बढ़ाएगी, जिससे उपभोक्ता आपूर्ति और मांग को संतुलित कर सके।

उदाहरण के लिए– अगर बीयर खरीदने की इच्छा रखने वाले 100 उपभोक्ता हैं, बीयर की केवल 90 बोतल उपलब्ध हैं,तो उपभोक्ता कीमत बढ़ाएंगे।

लागत प्रभाव: जब कंपनियां अपने लाभ मुनाफा के लिए कीमतों में वृद्धि करती हैं तो मुद्रास्फीति का कारण होता है। जब ऐसा होता है, तो कंपनियां उत्पादन की लागत बढ़ती हैं। बढ़ी हुई लागतों में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ोतरी या आयात, करों, मजदूरी जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं।

विनिमय दरें: हमारी विनिमय दर अमेरिका डॉलर के मूल्य के आधार पर कार्य करती हैं। विदेशी बाज़ार, एक दिन–प्रतिदिन आधार पर, हम उपभोक्ताओं के रूप में परवाह नहीं करते हैं और हमारे विदेशी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विदेशी लोग सेवाओं और निर्यात को विदेशी उपभोक्ताओं के लिए सस्ता बनाते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था और हमारे व्यापार विदेशी हस्तक्षेप के कारण खराब होते जा रहे है। अर्थव्यवस्था में, मुद्रास्फीति की हमारी दर निर्धारित करने के लिए विनिमय दर सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है।

पैसे की आपूर्ति: मुद्रास्फीति मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि के कारण होती है जो कि आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करती है। मुद्रा के मूल्य की बदलती सार्वजनिक धारणा के कारण पैसे का मूल्य गिर सकता है। स्र्पये की क़ीमत में कमी इस तथ्य के कारण कीमतों में बढ़ोतरी के लिए मजबूर हो जाएगा कि मुद्रा की प्रत्येक इकाई अब कम कीमत पर है।

मुद्रास्फीति का प्रभाव:

1. उत्पादक वर्ग(कृषक, उधोगपति, व्यापारी) को लाभ होता है।

2. ऋणी को लाभ तथा ऋणदाता को हानि होती है।

3. निश्चित आय वाले वर्ग को हानि होती है जबकि परिवर्तित आय वाले को लाभ होता है।

4. समाज में आर्थिक विषमताएं बढ़ जाती है, धनी वर्ग और धनी तथा निर्धन वर्ग और निर्धन होता चला जाता है।

5. व्यापार संतुलन विपक्ष में हो जाता है क्योंकि आयात में वृद्धि तथा निर्यात में कमी हो जाती है।

मुद्रा–प्रसार के लिए सरकार की नीतियां:

1. हिनार्थ प्रबंधन 2. अतिरिक्त मुद्रा निर्गमन 3. उदार ऋण एवं साख नीति 4. युद्ध जनित अनुत्पादक व्यय 5. परिगामी कराधन निति 6. प्रशुल्क एवं व्यापार नीति 7. कठोर उद्योग नीति

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय:

राजकोषीय उपाय: 1. सतुलित बजट बनाना 2. अनुत्पादक व्यय पर नियंत्रण रखना 3. प्रगतिशील करारोपण 4. सार्वजानिक ऋण में वृद्धि करने 5. बचत को प्रोत्साहित करना 6. उत्पादन में वृद्धि करना

मौद्रिक उपाय: 1. मुद्रा निर्गमन के नियमों को कठोर बनाना 2. मुद्रा की मात्रा को संकुचित करना 3. कठोर साख नीति अपनाना

महंगाई और मुद्रास्फीति में अंतर : महंगाई और मुद्रास्फीति एक दूसरे के पूरक है, मुद्रास्फीति दर के आंकड़े महंगाई दर के आधार पर आंकी जाते है और देश की महंगाई दर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर आंकी जाती है।

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