सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के कार्यक्षेत्र में किस सीमा तक स्वतंत्रता और जवाबदेहिता को बढ़ावा मिला है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। UPSC NOTE

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भारत की एक प्रमुख जाँच एजेंसी है, जिसे भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध, आतंकवाद और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों की जाँच के लिए गठित किया गया है। CBI की स्वतंत्रता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि इसे अक्सर राजनीतिक और नौकरशाही दबावों का सामना करना पड़ता है।

मुख्य भाग

सर्वोच्च न्यायालय ने CBI को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने तथा उसकी व्यावसायिकता एवं पारदर्शिता को बढ़ाने के लिये कई ऐतिहासिक फैसले दिये हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • 1997 में, सर्वोच्च न्यायालय ने अजीत सिंह बनाम भारत संघ मामले में फैसला सुनाया कि CBI को सीधे भारत सरकार के अधीन नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में बनाया जाना चाहिए। इस फैसले ने CBI को राजनीतिक दबावों से मुक्त होने में मदद की है।
  • सुब्रमण्यम स्वामी बनाम CBI निदेशक (2014): इस फैसले द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6-A को रद्द कर दिया गया, जिसमें वरिष्ठ सिविल सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने के लिये केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता का प्रावधान था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह प्रावधान असंवैधानिक होने के साथ संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन है।
  • कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2018): इस फैसले द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 4A की वैधता को बरकरार रखा गया, जिसमें CBI निदेशक को नियुक्त करने या हटाने के लिये प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित व्यक्ति की एक चयन समिति का प्रावधान था। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि CBI निदेशक के कर्तव्यों में कोई भी स्थानांतरण या बदलाव इस समिति की पूर्व सहमति से ही किया जाना चाहिये।

इन निर्णयों के परिणामस्वरूप, CBI की स्वतंत्रता और जवाबदेहिता में कुछ सुधार हुआ है। हालांकि, अभी भी कुछ चुनौतियाँ हैं जिनका सामना किया जाना है। उदाहरण के लिए, CBI के निदेशक की नियुक्ति और बर्खास्तगी में सरकार की भूमिका अभी भी काफी हद तक है। इसके अलावा, CBI के अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगाया जाता रहता है।

  • CBI को एक स्वतंत्र सांविधिक निकाय के रूप में बनाया जाना चाहिए। इससे CBI को राजनीतिक दबावों से पूरी तरह से मुक्त होने में मदद मिलेगी।
  • CBI के निदेशक की नियुक्ति और बर्खास्तगी में सरकार की भूमिका को और अधिक सीमित किया जाना चाहिए। इसके लिए, एक स्वतंत्र निकाय को CBI के निदेशक की नियुक्ति और बर्खास्तगी का अधिकार दिया जा सकता है।
  • CBI के अधिकारियों को राजनीतिक दबावों से बचाने के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए, CBI के अधिकारियों के खिलाफ राजनीतिक दबावों की शिकायत करने के लिए एक स्वतंत्र तंत्र बनाया जा सकता है।
  • इन कदमों से CBI की स्वतंत्रता और जवाबदेहिता में और अधिक सुधार किया जा सकता है, जिससे यह एक अधिक विश्वसनीय और प्रभावी जाँच एजेंसी बन सके।
  • आलोचनात्मक परीक्षण
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से CBI की स्वतंत्रता और जवाबदेहिता को बढ़ावा देने में कुछ हद तक मदद मिली है। हालांकि, इन निर्णयों के कुछ सीमित भी हैं।
  • एक सीमित यह है कि ये निर्णय CBI के कार्यक्षेत्र को पूरी तरह से परिभाषित नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, यह स्पष्ट नहीं है कि CBI किन मामलों की जाँच कर सकती है और किन मामलों की नहीं। इससे CBI को राजनीतिक दबावों के अधीन होने का अवसर मिलता है।
  • एक अन्य सीमित यह है कि ये निर्णय CBI के अधिकारियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान नहीं करते हैं। इससे CBI के अधिकारी राजनीतिक दबावों का शिकार होने से बच नहीं पाते हैं।
  • इन सीमाओं को दूर करने के लिए, CBI के कार्यक्षेत्र को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और CBI के अधिकारियों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए कानून में संशोधन की आवश्यकता है।

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