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ECONOMICS

Home » सार्वजनिक वितरण प्रणाली

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

  • Posted by teamupsc4u
  • Categories ECONOMICS, ECONOMICS NOTES
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली

  • कुछ आवश्यक वस्तुओं (गेहूं, चावल, खाद्य तेल, चीनी आदि) को उचित कीमत की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं में वितरण करने वाली प्रणाली को सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहा जाता है |
  • इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं विशेषकर कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर वस्तुएं उपलब्ध कराना है इससे कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं को कीमतों के उतार-चढ़ाव पर सुरक्षा मिलती है |
  • इनके अलावा इस प्रणाली का उद्देश्य देश के विशाल जनसंख्या के न्यूनतम पोषण स्तर को कायम रखना है |
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) की शुरुआत की गई |
  • इसमें मूल्य निर्धारण के लिए जनसंख्या को दो भागों में बांटने की नीति अपनाई गई है – गरीबी रेखा से नीचे BPL गरीबी रेखा से ऊपर (APL)|
  • इस प्रणाली के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को विशेष कार्ड जारी करने तथा घटाए गए मूल्यों पर खदान की आपूर्ति की नीति अपनाई गई है |

सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा वाधवा कमेटी

  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार अवकाश प्राप्त न्यायाधीश डी पी वाधवा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 2010 में सौंपी |
  • कमेटी ने पी डी एस प्रणाली की एक अत्यंत ही चौंका देने वाली तस्वीर सामने रखी है, यद्यपि सभी लोगों ने, जिसने पी डी एस को थोड़ा भी नजदीक से देखा है यही निष्कर्ष पाया है कमेटी ने पी डी एस को सबसे अधिक भ्रष्ट प्रणाली की संस्था के रूप में पाया है |
  • कमेटी ने पाया है कि पी डी एस खाद्यानों के बड़े पैमाने पर कालाबाजारी हो रही है पी डी एस खानदान गरीबों तक नहीं पहुंचते हैं जो बहुत अधिक इनकी आवश्यकता में होते हैं |
  • यह गरीब न तो उचित मात्रा में और नहीं उचित गुणवत्ता के खाद्यानों पी डी एस से पाते हैं कभी-कभी तो यह इतने खराब किस्म के होते हैं कि वह खाने योग्य ही नहीं होते है|

कृषि मूल्य नीति

  • भारत में सर्वप्रथम 1955 में कृषि लागत आयोग का गठन किया गया था| इसके अध्यक्ष प्रोफेसर दंतेवाड़ा को बनाया गया था |
  • इस आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरित करने हेतु उन्हें उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना था |
  • 1985 में इसका नाम बदलकर कृषि लागत एवं कीमत आयोग(CACP) कर दिया गया भारत में कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है |
  • उत्पादक के स्तर पर अधिक उत्पादन होने पर उन्हें कीमत घटाने की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करना तथा उपभोक्ता के स्तर पर उन्हें उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है |
  • कुल मिलाकर CACP का उद्देश्य है कि कृषि उत्पादों की कीमत को स्थिर करना जिससे पूरी अर्थव्यवस्था में कीमत को स्थिर किया जा सके |

न्यूनतम समर्थन मूल्य

  • सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 24 कृषि उत्पादों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की घोषणा की जाती है, उसका उद्देश्य होता है कि किसी वस्तु के अधिक उत्पादन की स्थिति में उसकी कीमत को एक सीमा के नीचे आने पर उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करना |
  • किसान अपने उत्पादों को बाजार में सही कीमत और बेचने के लिए स्वतंत्र होता है सरकार किसानों को इस बात की गारंटी देती है कि यदि बाजार के मूल्य में कमी आई तो वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसके उत्पाद को खरीद लेंगी|
  • जिससे किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रेरणा मिलती है सरकार प्रत्येक फसल की बुवाई से पहले ऐसी घोषणा करती है, इसकी घोषणा सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद की जाती है |

खरीद मूल्य

सरकार द्वारा इसकी घोषणा रवि तथा खरीफ फसल की कटाई के समय की जाती है| यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या उससे अधिक होता है किंतु किसी भी स्थिति में यह न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं हो सकता है |

आर्थिक मूल्य

सरकार द्वारा बफर स्टॉक के लिए अनाजों की खरीद की जाती है, इसके साथ ही इनके परिवहन भंडारण तथा अन्य प्रबंधकीय कार्य में भी खर्च करना पड़ता है इन सभी खर्चों को जोड़कर अनाज का जो मूल्य होता है उसे ही आर्थिक मूल्य कहा जाता है |

जारी मूल्य

  • अलग-अलग योजनाओं के लिए सरकार जिस मूल्य पर अनाज जारी करती है उसे ही जारी मूल्य कहा जाता है |
  • सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के लिए जारी किए जाने वाले अनाजों का ‘जारी मूल्य’ आर्थिक मूल्य से कम होता है|आर्थिक मूल्य एवं जारी मूल्य के बीच के अंतर को ‘खाद्यान्न सब्सिडी’कहा जाता है|

मूल्य निर्धारण प्रणाली

  • सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के लिए लागत प्रणाली का उपयोग किया जाता है| इसके अंतर्गत दो प्रकार की लागत का निर्धारण किया गया है C-2लागत तथा C-3 लागत |
  • C-2 लागत पर किसानों द्वारा कृषि कार्य में किया गया व्यय, श्रम तथा विद्यालयों को जोड़ा जाता है यदि जमीन पट्टे पर ली जाती है तो इसमें जमीन का किराया भी जोड़ा जाता है |
  • C-3 लागत में C-2 लागत के साथ-साथ प्रबंधकीय पारिश्रमिक के रूप में C-2 लागत का 10% जोड़ दिया जाता है |
  • C-1 लागत = फसल उत्पादन में किसानों का कुल व्यय +किसानों के द्वारा प्रयुक्त घरेलू संसाधनों का मूल्य
  • C-2 लागत = C-1 लागत+ 10% लाभ
  • C-3 लागत = C-2 लागत + किसानों के को प्रबंधकीय पारिश्रमिक का हिसाब लगाने के लिए C-2 लागत का 10%

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