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ड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हेपेटोलॉजिस्टों (Herpetologists) ने कहा है कि आक्रामक रेड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Red-Eared Slider Turtle) भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जल निकायों की जैव विविधता के लिये एक बड़ा खतरा बन सकता है।

  • भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र देश में कछुओं और कछुओं की 72% से अधिक प्रजातियों का घर है।

प्रमुख बिंदु

रेड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ के विषय में:

  • वैज्ञानिक नाम: ट्रेकेमीस स्क्रिप्टा एलिगेंस (Trachemys Sscripta Elegans)
  • पर्यावास: अमेरिका और उत्तरी मेक्सिको
  • विवरण: इस कछुए का नाम उसके कानों के समीप पाई जाने वाली लाल धारियों तथा किसी भी सतह से पानी में जल्दी से सरक जाने की इसकी क्षमता की वजह से रखा गया है।
  • लोकप्रिय पालतू जानवर: यह कछुआ अपने छोटे आकार, आसान रखरखाव और अपेक्षाकृत कम लागत के कारण अत्यंत लोकप्रिय पालतू जानवर है।

चिंता का कारण:

  • आक्रामक प्रजातियाँ: चूँकि यह एक आक्रामक प्रजाति है, इसलिये यह तेज़ी से वृद्धि करती है और मूल प्रजातियों के खाने को खा जाती है, जिससे उन क्षेत्रों तथा प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जहाँ ये वृद्धि व विकास करते हैं।
  • कैच-22 स्थिति: जो लोग कछुए को पालतू जानवर के रूप में रखते हैं, वे कछुए के संरक्षण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, लेकिन इन कछुओं के बड़े हो जाने पर इन्हें घर पर बने एक्वेरियम, टैंक या पूल से निकालकर प्राकृतिक जल निकायों में छोड़कर स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल देते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: ये प्रजातियाँ अपने ऊतकों में विषाक्त पदार्थों को जमा कर सकती हैं। अतः इन्हें भोजन के रूप में खाने पर  मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

भारत की आक्रामक प्रजातियाँ

  • आक्रामक प्रजातियाँ नए वातावरण में पारिस्थितिक या आर्थिक नुकसान का कारण बनती हैं।
  • भारत में अनेक आक्रामक प्रजातियाँ जैसे- चारु मुसेल (Charru Mussel), लैंटाना झाड़ियाँ (Lantana bushes), इंडियन बुलफ्रॉग (Indian Bullfrog) आदि पाई जाती  हैं।

मंगोलियाई कंजुर पांडुलिपियाँ


(Mongolian Kanjur Manuscripts)

संस्कृति मंत्रालय ने सूचित करते हुए बताया है, कि अगले वर्ष तक, मंगोलिया के प्रमुख बौद्ध केन्‍द्रों में वितरण के लिए पवित्र मंगोलियाई कंजूर (Mongolian Kanjur) के लगभग 100 सेटों का पुन:मुद्रण कार्य पूरा करने की संभावना है।

मंगोलियाई कांजूर क्या है?

मंगोलियाई भाषा में ‘कंजूर’  (Kanjur) का अर्थ होता है; ‘संक्षिप्त आदेश‘ जोकि मुख्यतः भगवान बुद्ध की शिक्षाएं हैं।

  • मंगोलियाई बौद्धों में इनका काफी महत्व है और वे मंदिरों में कंजुर की पूजा करते हैं तथा एक धार्मिक रिवाज के रूप में अपने प्रतिदिन के जीवन में ‘कंजूर’ की पंक्तियों का पाठ करते हैं।
  • मंगोलियाई ‘कंजूर’ को तिब्बती भाषा से अनुदित किया गया है। ‘कंजूर’ की भाषा शास्त्रीय मंगोलियाई है।

भारत और मंगोलिया के बीच ऐतिहासिक संबंध:

भारत और मंगोलिया के बीच ऐतिहासिक परस्पर संबंध सदियों पुराने हैं।

  • मंगोलिया में बौद्ध धर्म, भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक राजदूतों द्वारा ईस्वी सदी के शुरुआती दौर में ले जाया गया था।
  • परिणामस्वरूप, आज मंगोलिया में बौद्धों का धार्मिक प्रभुत्व सर्वाधिक है।
  • मंगोलिया के साथ भारत के औपचारिक राजनयिक संबंध, वर्ष 1955 में स्थापित हुए थे। तब से, दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ संबंध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गए हैं।

‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ के बारे में:

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (National Mission for Manuscripts NMM) की शुरुआत, भारत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय द्वारा फरवरी 2003 में की गई थी।

  • इसका कार्य पांडुलिपियों में संरक्षित ज्ञान के दस्तावेजीकरण, संरक्षण एवं प्रसार करना है।
  • मिशन का उद्देश्य, दुर्लभ एवं अप्रकाशित पांडुलिपियों को प्रकाशित करना है जिससे कि उनमें संचित ज्ञान शोधकर्ताओं, विद्वानों एवं बड़े पैमाने पर आम लोगों के बीच प्रसारित हो सके।

पृष्ठभूमि:

भारत में विभिन्न प्रकार की लगभग दस मिलियन पांडुलिपियां है, जो संभवतः विश्व का सबसे बड़ा संग्रह है। ये विभिन्न विषयों, बनावट और सौंदर्यशास्त्र, लिपियों, भाषाओं, सुलेखों, चित्रों और चित्रों को कवर करती हैं।

चक्रवात ‘तौकते’


(Cyclone Tauktae)

संदर्भ:

वर्तमान में लक्षद्वीप के ऊपर केंद्रित, चक्रवात ‘तौकते’ (Cyclone Tauktae), तीव्र होकर ‘चक्रवाती तूफान’ में बदल चुका है।

  • आगामी 24 घंटों में इसके और भीषण चक्रवाती तूफान में परिवर्तित हो जाने की संभावना है।
  • इस चक्रवात के उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ने और 18 मई तक गुजरात तट के निकट पहुंचने की संभावना है।
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पृष्ठभूमि:

‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा चक्रवातों के नामों की क्रमिक सूची की देखरेख की जाती है।

  • चक्रवात के लिए ‘तौकते’ (Tauktae) शब्द का सुझाव ‘म्यांमार’ द्वारा दिया गया था, जिसका अर्थ बर्मी भाषा में ‘गेको’ (Gecko), एक विशिष्ट मुखर छिपकली होता है।
  • पिछले वर्ष ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) द्वारा जारी की गई चक्रवातों के 169 नामों की नई सूची में यह चौथा नाम है।

चक्रवातों का नामकरण:

उष्णकटिबंधीय चक्रवात पर समिति (Panel on Tropical Cyclones – PTC)  द्वारा, वर्ष 2000 में ओमान सल्तनत के मस्कट में आयोजित, WMO/ESCAP के 27 वें सत्र में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को नाम देने के लिए सैद्धांतिक तौर पर सहमति जताई गई थी।

  • WMO/ESCAP का तात्पर्य ‘विश्व मौसम विज्ञान मौसम संगठन’ (World Meteorological Organisation- WMO) और ‘एशिया एवं प्रशांत हेतु संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग’ (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific) से है।
  • उत्तर हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण की शुरुआत, सितंबर 2004 से, WMO/ESCAP पीटीसी के तत्‍कालीन आठ सदस्य देशों: बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड द्वारा प्रस्‍तावित किये गए नामों के साथ की गयी थी। इसके बाद से उष्णकटिबंधीय चक्रवात पर समिति (PTC) में पांच अन्य सदस्य शामिल हो चुके है।
  • बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर निर्मित होने वाले चक्रवाती तूफान, जब उपयुक्त तीव्रता हासिल कर लेते हैं, तब इनके नामकरण के लिए, ‘क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र’ (Regional Specialised Meteorological Centre- RSMC), नई दिल्ली जिम्मेदार होता है।
  • ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) तथा पांच उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों सहित, विश्व भर में कुल छह ‘क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र’ (RSMC) हैं।

वैश्विक प्रेषण पर रिपोर्ट : विश्व बैंक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी विश्व बैंक के माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ के नवीनतम संस्करण के अनुसार, कोविड-19 प्रसार के बावजूद वर्ष 2020 में  प्रेषित धन का प्रवाह लचीला रहा, जो  पूर्व-अनुमानित आँकड़ो में कमी को  प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु 

भारत का प्रेषण प्रवाह:

  • विश्व अर्थव्यवस्था को  प्रभावित करने वाली कोविड महामारी के बावजूद वर्ष 2020 में भारत प्रेषित धन का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता  रहा है जिसने प्रेषित धन के रूप में 83 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्राप्त किया, जो पिछले वर्ष (2019) की तुलना में केवल 0.2 प्रतिशत कम है।
    • वर्ष 2020 में भारत को प्रेषित धन में केवल 0.2% की गिरावट आई है, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात से  प्रेषित धन में 17% की कमी के कारण सर्वाधिक गिरावट हुई, जो संयुक्त राज्य अमेरिका  और अन्य आयोजक देशों से लचीले प्रवाह को परिलक्षित करता है।
    • वर्ष 2019 में भारत को प्रेषित धन का 83.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुआ था।

वैश्विक प्रेषित धन या प्रेषण 

  • वर्ष 2020 में चीन का वैश्विक प्रेषित धन प्रवाह में दूसरा स्थान है।
    • वर्ष 2020 में चीन को  प्रेषित धन के रूप में 59.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए।
  • भारत और चीन के बाद क्रमशः मेक्सिको, फिलीपींस, मिस्र, पाकिस्तान, फ्राँस तथा बांग्लादेश का स्थान है।

प्रेषित धन का बहिर्वाह :

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (68 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से प्रेषित धन का बहिर्वाह सर्वाधिक था, इसके बाद यूएई, सऊदी अरब, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी तथा चीन का स्थान है।

प्रेषित धन के स्थिर प्रवाह का कारण:

  • राजकोषीय प्रोत्साहन के फलस्वरूप आयोजक देशों की आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत अधिक बेहतर हुई।
  • नकद या कैश से डिजिटल की ओर तथा अनौपचारिक से औपचारिक चैनलों के प्रवाह में बदलाव करना।
  • तेल की कीमतों और मुद्रा विनिमय दरों में चक्रीय उतार-चढ़ाव।

प्रेषित धन या रेमिटेंस (Remittance):

  • प्रेषित धन वह धन है जो किसी अन्य पार्टी ( सामान्यत: एक देश से दूसरे देश में) को भेजा जाता है।
  • प्रेषक आमतौर पर एक अप्रवासी होता है और प्राप्तकर्त्ता एक समुदाय/परिवार से संबंधित होता है। दूसरे शब्दों में रेमिटेंस से आशय प्रवासी कामगारों द्वारा धन अथवा वस्तु के रूप में अपने मूल समुदाय/परिवार को भेजी जाने वाली आय से है।
  • रेमिटेंस कम आय वाले और विकासशील देशों में लोगों के लिये आय के सबसे बड़े स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। यह आमतौर पर प्रत्यक्ष निवेश और आधिकारिक विकास सहायता की राशि से अधिक होता है।
  • रेमिटेंस परिवारों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और मूलभूत आवश्यकताओं  को पूरा करने में मदद करते हैं।
  • विश्व में प्रेषित धन या रेमिटेंस का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता भारत है।रेमिटेंस भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि करता है और इसके चालू खाते के घाटे के लिये धन जुटाने में मदद करता है।

दोषियों को उनके घरों में नजरबंद करने पर विचार करें: उच्चतम न्यायालय


संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने, विधायिका से जेलों में अत्याधिक भीड़भाड़ से बचने के लिए दोषियों को उनके घरों में नजरबंद करने पर विचार करने के लिए कहा है।

पृष्ठभूमि:

कुछ समय पूर्व, कार्यकर्ता गौतम नवलखा द्वारा उच्चतम न्यायालय में ‘वैधानिक जमानत’ / डिफॉल्ट जमानत (Default Bail) याचिका दायर की गई थी।

  • याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा था, कि वह कई दिनों से घर में नजरबंद है, और इस आधार पर उन्हें ‘वैधानिक जमानत’ दी जानी चाहिए।
  • शीर्ष अदालत द्वारा सुनाया गया 206 पन्नों का फैसला इसी याचिका पर आधारित था।

नजरबंद मामले पर विचार करने की आवश्यकता:

  • जेलों में अत्याधिक भीड़भाड़- अर्थात, जेलों में कैदियों के रहने की दर, वर्ष 2019 में बढ़कर 5% हो गई।
  • वर्ष 2019 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 3,30,487 थी, जोकि कुल कैदियों की संख्या का 05% है।
  • बजट में एक बहुत बड़ी राशि (₹6818.1 करोड़) जेलों के लिए निर्धारित की गई थी।
  • कोविड-19 का प्रसरण।

ब्रिक्स रोजगार कार्य समूह (EWG) की बैठक


(BRICS Employment Working Group)

संदर्भ:

हाल ही में, ब्रिक्स देशों के मध्य ‘ब्रिक्स रोजगार कार्यसमूह’ (BRICS Employment Working Group– EWG) की पहली बैठक नई दिल्ली में, आभासी प्रारूप में, आयोजित की गई थी।

भारत ने इसी वर्ष ब्रिक्स समूह की अध्यक्षता ग्रहण की है।

वार्ता हेतु प्रमुख एजेंडा में शामिल विषय:

  • ब्रिक्स राष्ट्रों के बीच सामाजिक सुरक्षा समझौतों को बढ़ावा देना,
  • श्रम बाजारों का औपचारिककरण,
  • श्रमशक्ति के रूप में महिलाओं की भागीदारी, और
  • श्रम बाजार में घंटे अथवा पार्ट-टाइम के हिसाब से काम करने वाले गिग (Gig) वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की श्रम बाजार में भूमिका।

बैठक के परिणाम:

  • सामाजिक सुरक्षा समझौते (Social Security Agreement- SSA) के मुद्दे पर, सदस्य देशों द्वारा आपस में संवाद और चर्चा करने, तथा समझौतों पर हस्ताक्षर करने की दिशा में कदम बढाने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा एजेंसी (ISSA) ने अपनी ओर से इस तरह के समझौतों के निष्कर्ष को सुविधाजनक बनाने में तकनीकी सहायता प्रदान करने संबंधी रजामंदी व्यक्त की।

‘सामाजिक सुरक्षा समझौता’ (SSA) क्या हैं?

  • सामाजिक सुरक्षा समझौता (Social Security Agreement- SSA), भारत और किसी अन्य देश के बीच, सीमा पार श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए निर्मित किया गया एक द्विपक्षीय समझौता होता है।
  • यह समझौता, श्रमिकों के लिए ‘दोहरे कवरेज’ से बचाव का प्रावधान करता है और सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से दोनों देशों के श्रमिकों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करता है।

पृष्ठभूमि:

अब तक, भारत के द्वारा 18 देशों के साथ ‘सामाजिक सुरक्षा समझौतों’ (SSA) पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।

सामाजिक सुरक्षा समझौतों’ से मुख्यतः निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  1. श्रमिकों के लिए दोहरा सामाजिक सुरक्षा योगदान करने से बचाव (तटस्थता)
  2. श्रमिकों के लिए प्राप्त लाभों का आसान प्रेषण (निर्यात-सामर्थ्य)
  3. लाभों की होने वाली क्षति को रोकने के लिए योगदान अवधि (दो देशों में) को एकत्रित करना (एकत्रीकरण)
  4. विदेशों में काम कर रहे भारतीय नागरिकों को विकलांगता बीमा लाभ प्रदान करना।
MY NAME IS ADITYA KUMAR MISHRA I AM A UPSC ASPIRANT AND THOUGHT WRITER FOR MOTIVATION

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