जानिए कैसे एक झुग्गी में रहने वाला मजदूर का बेटा IAS OFFICER बना


दोस्तो आप अगर कुछ करना चाहते हैं तो उसे सिर्फ आप कर सकते हो और अगर आप ने मन बना लिया ह की आपको करना है तो आप को कोई भी मुसीबत नही रोक सकती ।
दोस्तो मेरा नाम है आदित्य कुमार मिश्र में आपको आज एक ऐसी ही पेरणादायक कहानी बताने जा रहा हूं।

“यह कहानी है एक जिद की, यह दास्तां है एकजुनून की, यह कोशिश है सपने देखने और उन्हें पूरा करने की । यह मिसाल है उस जज्बे की, जिसमें झुग्गी बस्ती में रहते हुए एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा IAS अफसर बन गया है । पिता एक दिहाड़ी मजदूर, मां दूसरों के घर-घरजाकर काम करने वाली बाई । कोई और होता तो शायद कभी का बिखर गया होता, लेकिन दिल्ली के 21 वर्षीय हरीश चंदर ने इन्हीं हालात में रहकर वह करिश्मा कर दिखाया, जो संघर्षशील युवाओं के लिए मिसाल बन गया । दिल्ली के ओट्रम लेन, किंग्सवे कैंप की झुग्गी नंबर208 में रहने वाले हरीश ने पहले ही प्रयास में IAS परीक्षा में 309वीं रैंक हासिल की है । संघर्ष की सफलता की कहानी, हरीश चंदर की जुबानी ।

दोस्तो आइये जानते हैं सर की सफलता की कहानी-

“मैंने संघर्ष की ऐसी काली कोठरी में जन्म लिया, जहां हर चीज के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी । जब से मैंने होश संभाला खुद को किसी न किसी लाइन में ही पाया । कभी पीने के पानी की लाइन में तो कभी राशन की लाइन में । यहां तक कि शौच जाने के लिए भी लाइन में लगना पड़ता था । झुग्गी में माहौल ऎसा होता था कि पढ़ाई कि बात तो दूर सुबह-शाम का खाना मिल जाए, तो मुकद्दर की बात मानी जाती थी ।


बाबा (पापा) दिहाड़ी मजूदर थे । कभी कोई काम मिल जाए तो रोटी नसीब हो जाती थी, नहीं तो घर पर रखे चने खाकर सोने की हमें सभी को आदत थी । झुग्गी में जहां पीने को पानी मयस्सर नहीं होता वहां लाइट की सोचना भी बेमानी है । झोपड़ी की हालत ऐसी थी कि गर्मी में सूरज, बरसात में पानी और सर्दी में ठंड का सीधा सामना हुआ करता था । मेरे मां-बाबा पूरी तरह निरक्षर हैं, लेकिन उन्होंने मुझे और मेरे तीन भाई-बहनों को पढ़ाने की हर संभव कोशिश की । लेकिन जिस घर में दो जून का खाना जुटाने के लिए भी मशक्कत होती हो, वहां पढ़ाई कहां तक चल पाती । घर के हालात देख मैं एक किराने की दुकान पर काम करने लगा । लेकिन इसका असर मेरी पढ़ाई पर पड़ा । दसवीं में मैं फेल होते-होते बचा । उस दौरान एक बार तो मैंने हमेशा के लिए पढ़ाई छोड़ने की सोच ली । लेकिन मेरी मां, जिन्हें खुद अक्षरों का ज्ञान नहीं था, वो जानती थीं के ये अक्षर ही उसके बेटे का भाग्य बदल सकते हैं। मां ने मुझे पढ़ाने के लिए दुकान से हटाया और खुद दूसरों के घरों में झाडू-पोंछा करने लगी। उनके कमाए पैसों को पढ़ाई में खर्च करने में भी मुझे एक अजीब सा जोश आता था । मैं एक-एक मिनट को भी इस्तेमाल करता था ।

मेरा मानना है कि आपको अगर किसी काम में पूरी तरह सफल होना है तो आपको उसके लिए पूरी तरह समर्पित होना पड़ेगा । एक प्रतिशत लापरवाही आपकी पूरी जिंदगी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है ।

यूं तो मां मेरी सबसे बडी प्रेरणा रही है, लेकिन मैं जिस एक शख्स से सबसे ज्यादा प्रभावित हूं और जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया, वह है गोविंद जायसवाल । वही गोविंद जिसके पिता रिक्शा चलाते थे और वह 2007 में आईएएस बना । एक अखबार में गोविंद का इंटरव्यू पढ़ने के बाद मुझे लगा कि अगर वह आईएएस बन सकता है तो मैं क्यूं नहीं मैं बारहवीं तक यह भी नहीं जानता था कि आईएएस होते क्या हैं लेकिन हिंदू कॉलेज से बीए करने के दौरान मित्रों के जरिए जब मुझे इस सेवा के बारे में पता चला, उसी दौरान मैंने आईएएस बनने का मानस बना लिया था ।

परीक्षा के दौरान राजनीतिक विज्ञान और दर्शनशास्त्र मेरे मुख्य विषय थे । विषय चयन के बाद दिल्ली स्थित पतंजली संस्थान के धर्मेंद्र सर नेमेरा मार्गदर्शन किया । उनकी दर्शन शास्त्रपर जबरदस्त पकड़ है । उनका पढ़ाने का तरीका ही कुछ ऐसा है कि सारे कॉन्सेप्ट खुद ब खुद क्लीयर होते चले जाते हैं । उनका मार्गदर्शन मुझे नहीं मिला होता तो शायद मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता । मैंने जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष देखा है, लेकिन कभी परिस्थितियों से हार स्वीकार नहीं की । जब मां ने किराने की दुकान से हटा दिया, उसके बाद कई सालों तक मैंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया और खुद भी पढ़ता रहा । इस दौरान न जाने कितने लोगों की उपेक्षा झेली और कितनी ही मुसीबतों का सामना किया । लोग मुझे पास बिठाना भी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि मैं झुग्गी से था । लोग यह मानते हैं कि झुग्गियों से केवल अपराधी ही निकलते हैं । मेरी कोशिश ने यह साबित कर दिया कि झुग्गी से अफसर भी निकलते हैं । लोगों ने भले ही मुझे कमजोर माना लेकिन मैं खुद को बेस्ट मानता था । मेरा मानना है कि जब भी खुद पर संदेह हो तो अपने से नीचे वालों को देख लो, हिम्मत खुद ब खुद आ जाएगी । सही बात यह भी है कि यह मेरा पहला ही नहीं आखिरी प्रयास था । अगर मैं इस प्रयास में असफल हो जाता तो मेरे मां-बाबा के पास इतना पैसा नहीं था कि वे मुझे दोबारा तैयारी करवाते । मेरी जिंदगी में सबसे बड़ा खुशी का पल वह था, जब हर दिन की तरह बाबा मजदूरी करके घर लौटे और उन्हें पता चला कि उनका बेटा आईएएस परीक्षा में पास हो गया है । मुझे फख्र है कि मुझे ऐसे मां-बाप मिले,

जिन्होंने हमें कामयाबी दिलाने के लिया अपना सब कुछ होम कर दिया । मुझे आज यह बताते हुए फख्र हो रहा है कि मेरा पता ओट्रम लेन, किंग्सवे कैंप, झुग्गी नंबर 208 है । उस दिन जब टीवी चैनल वाले, पत्रकार बाबा की बाइट ले रहे थे तो उनकी आंसू भरी मुस्कुराहट के सामने मानों मेरी सारी तकलीफें और मेहनत बहुत बौनी हो गई थीं । मेरा मानना है कि एक कामयाब और एक निराश व्यक्ति में ज्ञान का फर्क नहीं होता, फर्क होता है तो सिर्फ इच्छा शक्ति का। हालात कितने ही बुरे हों, घनघोर गरीबी हो।बावजूद इसके आपकी विल पावर मजबूत हो, आप पर हर हाल में कामयाब होने की सनकसवार हो, तो दुनिया की कोई ताकत आपको सफल होने से रोक नहीं सकती। वैसे भी जब हम कठिन कार्यों को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं और उन्हें खुशी और उत्साह से करते हैं तो चमत्कार होते हैं। यूं तो हताशा- निराशा कभी मुझ पर हावी नहीं हुई, लेकिन फिर भी कभी परेशान होता था तो #नीरज की वो पंक्तियां मुझे हौसला देती हैं …”!

मैं तूफानों में चलने का आदी हु”।
दोस्तो अगर जो आप को मेरी ये पेरणादायक कहानी अच्छी लगी हो तो आप इसे शेयर ज़रूर कर देना ।
और कमेंट करके बताओ कि किसी को इससे मोटिवेशन मिला कि नही ।

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