1946 नौसेना विद्रोह UPSC NOTE

18 फरवरी, 1946 को तकरीबन 1,100 भारतीय नाविकों या HMIS तलवार के जहाज़ियों और रॉयल इंडियन नेवी ने भूख हड़ताल की घोषणा की, जो कि नौसेना में भारतीयों की स्थितियों और उनके साथ व्यवहार से प्रभावित थी। इस हड़ताल को एक “स्लो डाउन’ हडताल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ था कि जहाज़ी अपने कर्तव्यों को धीरे-धीरे पूरा करेंगे।

HMIS तलवार के कमांडर, F M किंग ने कथित तौर पर नौसैनिक जहाज़ियों को गाली देते हुए संबोधित किया, जिसने इस स्थिति को और भी आक्रामक रूप दे दिया।

इसे भारतीय इतिहास में ‘रॉयल इंडियन नेवी म्यूटिनी’ या ‘बॉम्बे म्यूटिनी’ के नाम से भी जाना जाता है.

बंबई (अब मुंबई) बंदरगाह से फैली विद्रोह की ये चिंगारी कराची से कलकत्ता (अब कोलकाता) तक फैल गई थी.

हालांकि इतिहास की किताबों में इस नौसैनिक विद्रोह का जिक्र कम मिलता है और अमूमन लोग 1857 के गदर के बारे में ही ज़्यादा बात करते हैं.

बॉम्बे म्यूटिनी’ में भाग लेने वाले नौसैनिकों के दल का हिस्सा रहे लेफ्टिनेंट कमांडर बीबी मुतप्पा ने एक बार बीबीसी को इसकी वजह बताई थी.

1946 नौसेना विद्रोह: हड़ताल और मांग

  • 18 फरवरी को शुरू हुई इस हड़ताल में धीरे धीरे तकरीबन 10,000-20,000 नाविक शामिल हो गए, इसका कारण यह था कि कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापत्तनम और अंडमान द्वीप समूह में स्थापित बंदरगाहों के चलते एक बड़ा वर्ग इस हड़ताल के प्रभाव में आ गया।
  • हालाँकि इस हड़ताल की तत्काल मांग बेहतर भोजन और काम करने की स्थिति भर थी, लेकिन इस आंदोलन को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की व्यापक मांग में परिवर्तित होने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा और देखते ही देखते इसने व्यापक रूप धारण कर लिया।
  • जल्द ही प्रदर्शनकारी नाविक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, कमांडर F M किंग द्वारा दुर्व्यवहार और अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के चलते कार्यवाही, RIN के कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते को उनके समकक्ष अंग्रेज़ कर्मचारियों के सममूल्य रखने, इंडोनेशिया में तैनात भारतीय बलों की रिहाई, और अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों के साथ बेहतर व्यहार करने जैसे मुद्दों की मांग करने लगे।

शाही नौसेना विद्रोह का प्रारंभ

  • जनवरी 1946 में वायुसेना के 1100 से अधिक नाविकों ने नस्ली भेदभाव के खिलाफ और समान सुविधाओं की मांग को लेकर हड़ताल की थी
  • दुर्व्यवहार ,नस्ली भेदभाव और खराब भोजन की शिकायते नौ सेना के सैनिकों को भी थी
  •  फरवरी 1946 में एच. एम. आई. एस. तलवार नामक जलयान के नाविकों ने जब इन मुद्दों को विशेष कर भोजन के सवाल को अंग्रेज अफसरों के सामने उठाया तो उन्हें लताड़ दिया गया
  • क्षुब्ध नाविकों ने बैरक की दीवारों पर अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लिखे
  • इस कार्य के लिए रेडियो ऑपरेटर दत्त को जिम्मेदार मान कर उंहें गिरफ्तार कर लिया गया
  • नस्लवादी भेदभाव और खराब भोजन  के प्रतिवाद में साथ ही रेडियो ऑपरेटर दत्त की गिरफ्तारी का उत्तर नाविकों ने 18 फरवरी 1946 को हड़ताल करके दिया
  • तलवार जहाज पर आरंभ हुई है हड़ताल शीघ्र ही मुंबई के मौजूद अन्य जहाजों पर फैल गई
  • 19 फरवरी को कैसल और पोर्ट बैरक के नागरिक भी इस हड़ताल में शामिल हो गए और इस हड़ताल में सम्मिलित नाविकों की संख्या 20,000 के लगभग पहुंच चुकी थी
  • मुंबई में इस विद्रोह के समर्थन में जनता ने व्यापक पैमाने पर विरोध किया और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया
  •  मुंबई में आरंभ हुई नाविक संघर्ष की यह लहर मद्रास और कराची में भी फ़ैल गई
  • 19 फरवरी को कराची के नागरिकों ने भी हड़ताल कर दी कराची में जो जहाज हड़ताल में सम्मिलित हुए उनमें हिंदुस्तान मुख्य था
  • कोलकाता विशाखापट्टनम में मौजूद नागरिकों ने भी हड़ताल में हिस्सा लिया है
  • अंबाला और जबलपुर के सैनिकों ने सहानुभूति के रुप में हड़ताल कर दी
  • कराची में दमन पूर्वक आत्मसमर्पण कराया गया जिसमें 6 नागरिक मारे गए
  • मुंबई में सेना ने नाविको और उनके सहयोगियों को शांत करा दिया
  • आर्थिक मांगों को लेकर आरंभ हुआ यह संघर्ष शीघ्र ही क्रांतिकारी चेतना से युक्त राजनीतिक संघर्ष में बदल गया
  • नाविकों ने भोजन की गुणवत्ता का प्रश्न छोड़ दिया उनके प्रमुख नारे हो गए इंकलाब जिंदाबाद, ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद, हिंदू मुस्लिम एक हो ,जय हिंद ,राजनीतिक बंदी रिहा करो, हिंदेशिया से भारतीय फौजियों को वापस बुलाओ आदि नारे लगाये गये
  • 21 फरवरी तक स्थिति यह हो गई थी कि एक प्रकार से संपूर्ण  नौसेना में संघर्ष आरंभ हो गया था
  • नाविक हड़ताल के तेजी के साथ फैलने और उसे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त होने के कारण सरकार चिंतित हो गई
  • उसने हड़ताल का दमन क्रूर बल प्रयोग के द्वारा करने का निश्चय किया
  • 21 फरवरी को संघर्षशील नाविको और ब्रिटिश सेना के मध्य कैसिल बैरक की 7 घंटे की जंग हुई
  • इस जंग के दौरान नाविकों ने भारतीय राजनीति की प्रमुख शक्तियों कांग्रेस ,लीग और कम्युनिस्टों से सहायता मांगी
  • साम्यवादी ने उनके  संघर्ष का समर्थन किया और छात्रों ,मजदूरों और आम जनता को उनके पक्ष में लामबद्ध करना शुरू किया
  • 22 फरवरी को मुंबई में एक अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन किया इसमे 20 लाख मजदूरों ने हिस्सा लिया
  • उनके प्रदर्शनों में तीन झंडे एक साथ चलते थे कांग्रेस का तिरंगा, लीग का हरा और बीच में कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा
  •  इस देशव्यापी विस्फोटक स्थिति में सरदार वल्लभभाई पटेल ने हस्तक्षेप किया
  •  सरदार वल्लभभाई पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना ने नाविकों को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी
  • इस तरह एक अजीब स्थिति देखने को मिली सेनिक लड़ रहे थे और अधिक संख्या में लड़ाई में कूदने के लिए तैयार थे जनता उनके समर्थन में सड़क पर आ गई थी और 21 से 23 फरवरी के मध्य अकेले मुंबई में ही 250 लोग मारे गए थे
  • लेकिन देश के प्रमुख दल क्रांति कि इस मशाल को आगे ले जाने के लिए तैयार नहीं थे
  • उल्टे यह विश्वास करते थे कि किसी भी जनांदोलन या प्रत्यक्ष संग्राम का उपयुक्त अवसर नहीं था
  • अवसर उपयुक्त क्यों नहीं था इसे आसानी से समझा जा सकता है
  • यदि ध्यान में रखा जाए कि नाविक संघर्ष आरंभ होने के अगले ही दिन ब्रिटिश सरकार ने इन दलों के साथ सौदेबाजी के लिए कैबिनेट मिशन को नियुक्त कर दिया था
  •  बरहाल नाविकों ने देश के नेताओं की सलाह मानी और 23 फरवरी को विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण करते हुए कहा कि हम देश के समक्ष आत्मसमर्पण  कर रहे हैं  ना की  ब्रिटिश साम्राज्य के समक्ष नहीं

घटनाओं का महत्त्व

  • RIN विद्रोह आज एक किंवदंती बना हुआ है। यह एक ऐसी घटना थी जिसने ब्रिटिश शासन के अंत को देखने के भारतीय लोगों के दृढ़ संकल्प को मज़बूती प्रदान की। यह विद्रोह धार्मिक समूहों के बीच गहरी एकजुटता और सौहार्द का प्रमाण था, जो उस समय देश में फैलती साम्प्रदायिक घृणा और वैमनस्यता के प्रतिउत्तर के रूप में प्रस्तुत हुआ। हालाँकि दुखद बात यह है कि यह ऐसा समय था जब दो प्रमुख समुदायों के बीच एकता की तुलना में सांप्रदायिक एकता प्रकृति में अधिक संगठनात्मक थी। इसकी परिणति कुछ ही महीनों के भीतर नज़र भी आ गई, भारत इतिहास के एक बेहद भयानक सांप्रदायिक संघर्ष का गवाह बना।

नौसेना विद्रोह पर प्रतिक्रिया

  • नौसेना के इस संघर्ष का सम्मान करना तो दूर की बात इस संघर्ष की आलोचना की गई
  •  गांधीजी की नजर में इनका संघर्ष बुरा और भारत के लिए अशोभनीय दृष्टांत पेश करता था ​
  • वह तो यहां तक मानते थे कि हिंसात्मक कार्यवाही के लिए हिंदुओं और मुसलमानों का एक होना अपवित्र बात है

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